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क्या लोहड़ी का नायक Lahori Dulla Bhatti 1 मुसलमान नहीं एक सिख था




लोहड़ी और दुल्ला भट्टी: एक लोककथा की गहराई

जनवरी के दूसरे हफ्ते में जब ठंड और हवाओं का संगम होता है, तब पंजाब के धरती पर एक अनोखी गरमाहट उठती है—लोहड़ी का त्यौहार। यह त्यौहार सिर्फ रबी की फसल की खुशी नहीं है, बल्कि इसमें छुपा है बहुत कुछ लोककथा, न्याय, सम्मान और सांस्कृतिक विरासत का मेल। आज मैं आपको ‘सेम टू सेम’ रूप में इस पर्व के पीछे की कहानी बताता हूँ — जिसमें रबी की फसलों की खुशियाँ तो हैं ही, साथ में दुल्ला भट्टी जैसे लोकनायक की कहानी भी।


(१) रबी की फसल और लोहड़ी का मूल स्वरूप

लोहड़ी वसंत आने से पहले की इस ठंडी रात को मनाई जाती है—जब रातें लंबी और तेज ठंडी होती है। किसानों के लिए यह समय थकान भरा होता है, लेकिन रबी की फसल को देखकर जो उमंग होती है, वह इस पर्व का मुख्य भाव है। खेतों में गेहूं, सरसों और जौ अब तैयार हैं, और लोग उपलों और लकड़ियों का विकराल गर्भ लेकर ढेर लगाते हैं, उसमें गन्ने, मूंगफली, तिल-मिठाई, रेवड़ी डालते हुए उसे आग में झोंकते हैं। यह अग्निकुंड एक जीवनदायिनी ऊर्जा बनकर भूमि और समुदाय को एक साथ पिरोता है—एक दूसरे से बधाइयां, गाने और नृत्य का यह अनोखा मेल पंजाब की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बनता है।


(२) दुल्ला भट्टी—लोकनायक की भूमिका

यहाँ पर एक लोकगाथा जुड़ जाती है—दुल्ला भट्टी की। उनका असली नाम था राय अब्दुल्ला खान भट्टी, जो एक मुस्लिम राजपूत थे। वे अकबर के ज़माने में मुगल शासनों के केंद्रीकृत कर नीति और अन्य अत्याचारों के खिलाफ विद्रोह करने वाले एक मजबूत नेता बने।

उनके पिता और दादा—दोनों—मुगल कर नीति का विरोध करने के चलते मारे गए थे। इस पीड़ा ने दुल्ला भट्टी को अत्याचार के विरुद्ध उठने के लिए प्रेरित किया। वे सिर्फ विद्रोही ही नहीं थे, बल्कि लोकनायक भी: उन्होंने गरीबों से जो लिया, उसे गरीबों में ही बाँटा—इसलिए ‘पंजाब का रॉबिन हुड’ कहा जाने लगा MALKIAT SINGH DUHRAOnePanjabAl Haqeeqa


(३) सुंदरी—मुंदरी और लोकगीत “सुंदर मुंदरिये...”

लोहड़ी के गीतों में अगर आप सुने—“सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो”—तो इसमें सुंदरी और मुंदरी नामक दो बहनों का जिक्र मिलता है। कथा कहती है कि मुगल अफ़सर उनके शौर्य और सुंदरता के चक्कर में शादी तय होने से पहले ही उन्हें चुन लेना चाहते थे। लेकिन दुल्ला भट्टी ने सबक सिखाया—उन्होंने लोहड़ी के दिन दोनों बहनों की शादी दोनों पक्षों की मौजूदगी में करवा दी—और तब से यह गीत लोकगीत बनकर हर लोहड़ी की शाम में गाया जाता है


(४) माहौल का संगम: धात, धर्म, संस्कृति

यह कहानी सिर्फ सामाजिक न्याय की नहीं, बल्कि संस्कृति, धर्म और मानवता का संगम बनकर उभरती है। दुल्ला भट्टी मुस्लिम थे, सुंदरी-मुंदरी हिंदू ब्राह्मण कन्याएँ थीं—और उन्होंने धर्म की परवाह किए बिना उनकी रक्षा की, उन्हें शादी कराए और उनका मान-सम्मान बचाया। यह पंजाब की संयुक्त संस्कृति (composite culture) की जीवंत मिसाल है, जहाँ हर धर्म के लोग एक दूसरे के त्यौहारों में अपनी आत्मा जोड़ते हैं—और लोहड़ी इसका सुंदर उदाहरण है DawnEnroute Indian History


(५) सामजिक धारा का प्रतिबिंब

कई स्थानों पर यह कहानी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की दृष्टि से बदलकर सिख या हिंदू नायक की तरह प्रस्तुत की गई—लेकिन ऐतिहासिक और लोकगाथा स्रोत स्पष्ट करते हैं कि वह मुस्लिम राजपूत थे और धर्म की इस कहानी में कोई बाधा नहीं थी—उनके कार्य और लोकमान्यता ही उन्हें अमर बनाते हैं TwoCircles.netDawn


(६) लोहड़ी में दुल्ला भट्टी की विरासत आज भी

आज भी पंजाब—चाहे वह भारत में हो या पाकिस्तान में—लोहड़ी की आग में दुल्ला भट्टी की याद को संजोए रखता है। लोहड़ी गीत, लोकगीत, नृत्य और नगमा, मूल्यवान पकवान और समुदाय का मेल—यह सब उस पुरानी लोकगाथा की आंच को जीवित रखता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि समाज में इंसानियत, सम्मान और बहादुरी धर्म से ऊपर होती है।


संक्षेप में:

  • लोहड़ी: सिर्फ फसल का त्यौहार न होकर राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और लोकगाथिक भावनाओं का उत्सव है।

  • दुल्ला भट्टी: एक मुस्लिम राजपूत जो न्याय के लिए खड़े हुए; लोकनायक, विद्रोही, प्रेम, सम्मान और बहादुरी का प्रतीक।

  • लोकगीत (सुंदर मुंदरिये...): सुंदरी और मुंदरी की अग्निमंडित कथाओं का गीतात्मक स्वरूप—लोहड़ी की आग के चारों ओर गाया जाने वाला लोकगीत।

  • सांस्कृतिक समरसता: यह कहानी हमें धर्म-भेद से ऊपर उठकर इंसानियत का संगीत गाने की प्रेरणा देती है।


अब इसे लेकर यह झूठ फैलाया जा रहा है कि दुल्ला भट्टी एक सिख था जिसने हिंदुओं को बचाने के लिए अकबर से दुश्मनी मोल ली. ऊपर मौजूद संदेश की भाषा धार्मिक पूर्वाग्रहों से भरी है. ऐसे झूठ कौन फैला रहा है? कहने की ज़रूरत नहीं कि ये वही लोग हैं जिन्हें इतिहास को नए रंग से लिखना है. जिनके लिए मुसलमान बाहर से आए आक्रांताओं की संतानें हैं और ऐसे में उनके बीच से कोई नायक कैसे हो सकता है?
तमाम किताबें मौजूद हैं जो इस झूठ की किरकिरी करती हैं. आप डोर्लिंग किंडर्सले (इंडिया) द्वारा 2008 में छापी गई ‘पॉपुलर लिट्रेचर एंड प्री मॉडर्न सोसाइटीज़ इन साउथ एशिया’ उठाकर देख लें, या फिर एरिक हॉब्सबॉम की बेंडिट्स. आपको इन किताबों में दुल्ला भट्टी के किरदार का पूरा लेखा-जोखा मिल जाएगा. सिर्फ यही नहीं आप अगर यूं ही यूट्यूब पर देखना चाहें तो पाकिस्तान के एक्सप्रेस न्यूज़ चैनल का बड़ा मज़ेदार सा वीडियो भी देख सकते हैं जो दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाता है|
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क्या लोहड़ी का नायक Lahori Dulla Bhatti 1 मुसलमान नहीं एक सिख था क्या लोहड़ी का नायक  Lahori Dulla Bhatti 1  मुसलमान नहीं एक सिख था Reviewed by Hindi Mewati Blogs Nasir Mewati on शनिवार, जनवरी 13, 2018 Rating: 5

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