आप सभी का एक बार फिर से हार्दिक स्वागत है। आज हम लेकर आए हैं अपनी श्रृंखला Top 5 Mewat Historical Palace का Part 3। जैसा कि हमने पहले भी कहा था, Mewat History इतनी विशाल और रोचक है कि इसे एक या दो लेखों में समेटना असंभव है। यही कारण है कि यह यात्रा लगातार आगे बढ़ रही है।
अब तक आपने हमारे Part 1 और Part 2 पढ़ लिए होंगे, जिनमें हमने नूंह, तावडू, तिजारा और फ़िरोज़पुर झिरका जैसे कई शानदार Mewat Heritage स्थलों का परिचय दिया। वहाँ के क़िले, मकबरे और मंदिर देखकर हमें यह एहसास हुआ कि असल में Mewat Historical Palace सिर्फ़ इमारतें नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और असली पहचान का प्रतीक हैं।
आज इस तीसरे भाग में हम आपको और गहराई में ले चलेंगे। यहाँ हम Dehra Mandir Bhond और रहस्यमयी Shad ki Baithak history को विस्तार से जानेंगे। साथ ही, हम आपको दिखाएँगे पिंगावा नगर की अनकही कहानियाँ, यानी Pingava history Mewat, और फिर कदम बढ़ाएँगे कामां की ओर जहाँ खड़े हैं भव्य 84 Khamba Kama history, जिन्हें लोग 84 Khamba mosque Mewat के नाम से भी जानते हैं।
यहाँ पर आपको न सिर्फ़ Mewati culture की झलक मिलेगी, बल्कि Mewat monuments और Mewat forts and temples की वास्तुकला भी देखने को मिलेगी। इन स्थलों में छिपी कहानियाँ हमें यह याद दिलाती हैं कि Mewat architecture अपने आप में बेजोड़ है और इसे जानना हमारे लिए गर्व की बात है।
इस यात्रा में हम धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों को भी समझेंगे जिन्हें लोग Mewat religious sites के नाम से जानते हैं। चाहे यह स्थलों का रहस्यमयी अतीत हो या यहाँ की संस्कृति की खूबसूरती, हर चीज़ हमें Unknown history of Mewat से जोड़ती है। और यही छिपी हुई धरोहरें आज भी हमें पुकारती हैं कि इस Hidden heritage of Mewat को दुनिया तक पहुँचाया जाए।
तो आइए, देर न करते हुए शुरुआत करते हैं Part 3 की – जहाँ हम फिरोज़पुर झिरका के देहरा मंदिर से लेकर शाद की बैठक, पिंगावा और 84 खंभों तक की यात्रा करेंगे।
Dehra Mandir Bhond – Mewat Historical Palace का भूला हुआ सच
Top 5 Mewat Historical Palace की इस सीरीज़ के तीसरे भाग की शुरुआत हम कर रहे हैं Firozpur Jhirka के सबसे रहस्यमयी और विवादित स्थल Dehra Mandir Bhond से। अगर आपने पार्ट 1 और पार्ट 2 पढ़े हैं तो आप समझ ही चुके होंगे कि Mewat history कितनी गहराई लिए हुए है। नूंह, तावडू, तिजारा और झिरका की पहाड़ियों और किलों से गुज़रने के बाद अब हम उस स्थान पर पहुँचे हैं, जहाँ इतिहास और वर्तमान की परतें आपस में टकराती हैं।
आज लोग इसे मंदिर मानते हैं। पुरातत्व विभाग (ASI) ने 2010 के आसपास यहाँ सर्वे करवाया और स्थानीय लोगों से जानकारी जुटाई। ज़्यादातर ने इसे “मंदिर” बताया और इसी आधार पर इसे Jain Mandir घोषित कर दिया गया। लेकिन इतिहास में इसकी कहानी कहीं ज़्यादा जटिल और गहरी है।
शाही अतीत और Dehra Mandir का रहस्य
आज जिसे Dehra Mandir कहते हैं, वह कभी एक शाही महल था। स्थानीय मान्यताओं और ऐतिहासिक कड़ियों से पता चलता है कि 1770 के आसपास यहाँ Raja Bhanwar Singh नाम का शासक रहा करता था।
अब नाम सुनकर आप चौंक सकते हैं कि “भंवर सिंह” तो हिंदू नाम है। लेकिन असलियत यह है कि वह शासक मूल रूप से मेव समाज से था। यही वो समय था जब मेव समुदाय ने धीरे-धीरे इस्लाम को अपनाना शुरू कर दिया था, लेकिन उनके नाम और रीति-रिवाज़ अभी भी पुराने ढर्रे पर ही चलते थे। यही कारण है कि “सिंह” जैसा नाम भी उस दौर में मेव सरदारों के साथ जोड़ा जाता था।
कुछ इतिहासकार इसे और भी पुराना मानते हैं। उनका कहना है कि यह स्थल असल में Firoz Khan Khanzada (जिसने 1419 में Firozpur Jhirka की नींव रखी थी) के समय का है। संभव है कि यह महल मेव सरदारों और घुड़सवारों का डेरा (Dehra) था, और समय के साथ “Dehra Mandir” नाम पड़ा।
मेव समाज और मुग़ल सल्तनत
Mewati culture हमेशा से साहस और संघर्ष के लिए जाना जाता है। मेव सरदार अपनी तेज़ घुड़सवारी, पहाड़ी इलाक़ों में अचानक हमले और दुश्मन को चकमा देने की कला के लिए मशहूर थे। दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों के लिए वे सिरदर्द बने रहते थे।
वे अक्सर क़िलों पर धावा बोलकर अनाज और सामान लूट लेते और अरावली की पहाड़ियों में छिप जाते। यही वजह थी कि सल्तनत उन्हें विद्रोही मानती थी लेकिन मुग़ल सम्राट Akbar ने उनकी इसी क्षमता को पहचान लिया।
अकबर ने डाक सेवा शुरू की, और उसमें 90% तक मेव घुड़सवारों को शामिल किया। उनकी फुर्ती और तेज़ी की वजह से डाक समय पर पहुँचने लगी और व्यवस्था सफल हो गई। यही वह मोड़ था जब मेव समाज धीरे-धीरे सत्ता का हिस्सा बना।
उनके कई सरदारों ने मुग़ल दरबार में उच्च पद पाए, और समय के साथ विवाह संबंध भी बनाए। यही वह दौर था जब उनके नाम बदलने लगे और वे इस्लामी पहचान में ढल गए। लेकिन उनके जीवन की मूल आदतें – जैसे घुड़सवारी, पहाड़ी जीवन और जज़्बा – आज भी Mewati culture में जिंदा हैं।
Dehra Mandir – खंडहर से मंदिर तक
कभी यह जगह शाही परिवार का महल थी। समय के साथ यह धीरे-धीरे खंडहर में बदल गई। सौ साल तक यह इमारत जर्जर हालत में खड़ी रही। किसी ने इसकी शुद्ध नहीं ली सदियों बाद इसकी शुद्ध हुई और शुद्ध की थी जैन पुजारी ने।
फिर 2000 के दशक में फ़िरोज़पुर झिरका के कुछ जैन पुजारियों ने यहाँ पूजा-अर्चना शुरू की। धीरे-धीरे इसे मंदिर का रूप दिया गया और आज यह आधिकारिक तौर पर Jain Mandir कहलाता है।
हालाँकि, स्थानीय लोग इसे अब भी “Dehra” के नाम से याद करते हैं, क्योंकि उनके अनुसार यह असल में एक “महल” या “डेरा” था, मंदिर नहीं।
स्थापत्य कला और महत्व
यह स्थल अरावली की पहाड़ियों के बीच स्थित है, और इसकी बनावट यह दर्शाती है कि यह कोई सामान्य इमारत नहीं थी। यहाँ पत्थर और चूने का इस्तेमाल है। कई जगहों पर पुराने गुम्बद और मेहराब के अवशेष दिखाई देते हैं। दीवारों पर नक्काशी की झलक मिलती है, जो इसे एक शाही इमारत साबित करती है।
कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि यहाँ पहले और भी इमारतें थीं, लेकिन समय और देखभाल की कमी ने उन्हें मिटा दिया। आज का मंदिर रूप इसकी असलियत को छिपा देता है, लेकिन वास्तुकला और खंडहरों की भाषा अभी भी बताती है कि यह एक Mewat Historical Palace था।
स्थानीय समाज और मान्यताएँ
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहाँ कभी मेव सरदार Ghudchali और Mevkha रहते थे, और उनके घोड़े व सैनिक इसी परिसर में टिकते थे।
“Dehra” शब्द भी इसी से जुड़ा है – यानी डेरा या ठिकाना। मेवाती भाषा में किसी एक जगह जहां उनकी गाय भैंस बकरिया और उनके पास उनके घर भी मौजूद रहता है उसी जगह को मेवाती भाषा में डेरा कहा जाता है और अगर उसके पास पानी का तालाब और कुआं हो तो उसको डहर कहा जाता है। लेकिन जब 2000 के बाद यहाँ पूजा शुरू हुई, तो अब यह धार्मिक स्थल बन चुका है।
यहाँ आने वाले श्रद्धालु अब इसे जैन मंदिर मानते हैं। जबकि इतिहास के जानकार इसे Hidden heritage of Mewat कहते हैं, जो धीरे-धीरे अपनी असल पहचान खो बैठा है।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ
आज Dehra Mandir का पुनर्निर्माण चल रहा है। कहा जा रहा है कि इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा, जहाँ टिकट लेकर लोग आ सकेंगे। पर सच बताऊंत मुझे ऐसा नहीं लगता। लेकिन असली सवाल यही है कि क्या इसे मंदिर ही रहने दिया जाएगा या इसके शाही अतीत को भी उजागर किया जाएगा? सरकार और ASI के पास इसे Mewat heritage के प्रतीक के रूप में संरक्षित करने का अवसर है। लेकिन फिलहाल ज़्यादा ध्यान सिर्फ़ धार्मिक रूप पर ही है।
Dehra Mandir Bhond कोई साधारण मंदिर नहीं, बल्कि Mewat monuments का वह हिस्सा है जिसने सदियों का इतिहास देखा है। यह स्थल हमें यह सिखाता है कि पहचान समय के साथ कैसे बदलती है – कभी शाही महल, फिर खंडहर और अब एक मंदिर। यह सिर्फ़ एक इमारत नहीं, बल्कि Unknown history of Mewat का जीवंत उदाहरण है।
अगर इसे सही तरह से संरक्षित किया जाए तो यह न केवल Mewati culture का गर्व बनेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सीख और प्रेरणा का स्रोत भी होगा।
Dehra Mandir Rules (डेरा मंदिर नियम)
Dehra Mandir Bhond, जिसे आजकल लोग जैन मंदिर के रूप में जानते हैं, अभी भी अपने पुनर्निर्माण (restoration) के दौर से गुजर रहा है। यही वजह है कि यहाँ कुछ खास नियम और सीमाएँ लागू की गई हैं, जिनका पालन हर आगंतुक के लिए ज़रूरी है।
प्रवेश और प्रतिबंध
सबसे पहले तो यह जान लें कि फिलहाल इस मंदिर के अंदर आम लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। पुनर्निर्माण कार्य लगातार चल रहा है, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से ASI और स्थानीय प्रबंधन ने दरवाज़े बंद रखे हैं। उम्मीद की जा रही है कि जब यह काम पूरा होगा, तब यहाँ आने वाले लोगों को अंदर जाने की अनुमति दी जाएगी।
अगर आप यहाँ जाते हैं, तो आपको मंदिर के बाहर ही रुकना पड़ेगा। जूते-चप्पल उतारकर ही मंदिर प्रांगण में कदम रखना होता है, भले ही अभी अंदर जाने की इजाज़त न हो। यह धार्मिक मान्यता और स्थानीय परंपरा का हिस्सा है।
फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी
अभी फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी दोनों की अनुमति नहीं है। पुनर्निर्माण के बाद संभव है कि कुछ नियम बदलें और फोटो व वीडियो लेने की अनुमति मिले, लेकिन फिलहाल यह सख़्ती से मना है।
अगर आप दस्तावेज़ीकरण या शोध के लिए विशेष अनुमति चाहते हैं तो स्थानीय प्रबंधन समिति या ASI से संपर्क करना होगा।
टिकट और फीस
इस समय यहाँ कोई टिकट या प्रवेश शुल्क नहीं है।
लेकिन भविष्य में इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है। अगर ऐसा होता है तो निश्चित ही टिकट प्रणाली लागू की जाएगी। जैसे ही इस पर कोई आधिकारिक जानकारी मिलेगी, हम उसे ज़रूर साझा करेंगे।
यहाँ कैसे पहुँचें?
डेरा मंदिर, फ़िरोज़पुर झिरका से कुछ किलोमीटर दूर Bhond गाँव में स्थित है।
अगर आप फ़िरोज़पुर झिरका शहर से आ रहे हैं तो ऑटो सबसे आसान साधन है, जिसका किराया लगभग ₹200 तक हो सकता है।
अगर आपके पास अपनी गाड़ी या बाइक है तो यात्रा और भी सुविधाजनक हो जाएगी।
सड़कें काफ़ी हद तक पहाड़ी और कच्ची हैं, इसलिए अपनी सुरक्षा और वाहन की तैयारी पर ध्यान देना ज़रूरी है।
👉 कुल मिलाकर, Dehra Mandir Bhond अभी भी एक Mewat Historical Palace के रूप में पुनर्जीवित हो रहा है। यहाँ के नियम सरल तो हैं, लेकिन उनका पालन हर आगंतुक के लिए आवश्यक है। आने वाले समय में जब यह पूरी तरह तैयार होगा, तब शायद यहाँ टिकट, फोटोग्राफी और पर्यटन संबंधी नई व्यवस्थाएँ लागू हो जाएँ।
Shad Ki Baithak – Mewat Historical Palace का अनोखा रत्न
अगर आप Top 5 Mewat Historical Palace की यात्रा पर निकले हैं और Shad Ki Baithak नहीं देखी, तो मान लीजिए कि आपने मेवात की आधी Mewat history मिस कर दी। यह स्थान न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से अनोखा है बल्कि इसकी बनावट, स्थान और स्थानीय मान्यताएँ इसे और भी रहस्यमयी बना देती हैं।
Shad Ki Baithak का नाम और महत्व
इस ऐतिहासिक स्थल का नाम इसके निर्माता शाद पर पड़ा। शाद कोई साधारण व्यक्ति नहीं था, बल्कि वह उस समय के 16 गाँवों का सरदार था। उसकी सरदारी आधे हरियाणा और आधे राजस्थान तक फैली हुई थी। यही वजह थी कि उसने अपना घर और बैठक अरावली की पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी पर बनवाया।
“बैठक” शब्द मेवाती संस्कृति में बेहद खास है। Mewati culture में हर घर के बाहर एक छोटी सी बैठक होती है जहाँ मेहमान बैठते हैं, रिश्तेदारों से मुलाकात होती है और गाँव के कामों पर चर्चा होती है। शाद ने भी इसी परंपरा को एक बड़े स्तर पर निभाया। उसकी यह बैठक दरअसल मेहमानों का महल थी, जहाँ पंचायत, सभा और स्वागत होता था। इसलिए इसे आज भी “बैठक” कहा जाता है और इसीलिए इसका नाम पड़ा Shad Ki Baithak।
भौगोलिक स्थिति – हरियाणा और राजस्थान के बीच यह स्थल अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण और भी खास बन जाता है। Shad Ki Baithak आधा हरियाणा और आधा राजस्थान में आता है।
- हरियाणा की ओर से: यहाँ पहुँचने के लिए फ़िरोज़पुर झिरका से लगभग 10–12 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। तोड़ी मदरसे के पास से सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर जाया जाता है।
- राजस्थान की ओर से: छपरा गंगोरा गाँव से एक कच्चा रास्ता सीधा पहाड़ी तक जाता है। आजकल इस रास्ते से बाइक या छोटी गाड़ियाँ भी ऊपर पहुँच जाती हैं, लेकिन सावधानी रखना ज़रूरी है क्योंकि यह पहाड़ी और सँकरी सड़क है।
यह खासियत कि यह स्थल दो राज्यों को जोड़ता है, इसे एक अद्वितीय Mewat heritage monument बना देती है।
स्थापत्य कला और संरचना
Shad Ki Baithak को चूना, गारा और अरावली के पत्थरों से बनाया गया था। इसकी बनावट एक छोटे किले जैसी है।
- यहाँ छह बड़े कमरे बने हैं, जो आज भी मौजूद हैं।
- एक मस्जिद और एक बावड़ी (स्टेपवेल) भी इसके परिसर का हिस्सा हैं।
इसके पास एक तालाब था, जो बरसाती पानी को जमा करता था। यह पानी एक खास फिल्टरिंग सिस्टम से गुजरकर बावड़ी में पहुँचता था। यह तकनीक इतनी पुरानी और अद्भुत है कि आज भी देखने वालों को हैरान कर देती है।
शाद ने न केवल अपने रहने के लिए जगह बनाई बल्कि अपनी गाय-भैंसों के लिए भी अलग हिस्से रखे। इससे यह साफ होता है कि यह बैठक दरअसल उसका पूरा “राजमहल” था।
सरदारी और राजनीतिक महत्व
शाद उस समय के 16 गाँवों का सरदार था। उसकी सरदारी 8 गाँव हरियाणा और 8 गाँव राजस्थान तक फैली हुई थी। इसलिए उसने अपना ठिकाना पहाड़ की चोटी पर बनाया, ताकि दोनों ओर के गाँवों पर नज़र रख सके और उन्हें आसानी से मैनेज कर सके।
यह केवल एक घर या बैठक नहीं थी, बल्कि यह power center था। यही कारण है कि इसे Unknown history of Mewat का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
लोक मान्यताएँ और सांस्कृतिक धरोहर
आज भी स्थानीय लोग इस जगह से कई कहानियाँ जोड़ते हैं। कुछ कहते हैं कि शाद का बेटा “लाल खान” अलौकिक शक्तियों वाला था, जिसने डूबते जहाज़ को अपने कंधे पर उठाकर बचाया। ऐसी लोककथाएँ इस स्थान को और भी रहस्यमयी बना देती हैं।
इसके अलावा, स्थानीय मिरासी (जग्गा गायक) आज भी अपने गीतों में शाद और उसकी बैठक का ज़िक्र करते हैं। यह Mewati culture का ज़िंदा सबूत है कि यह स्थान कभी कितना महत्वपूर्ण रहा होगा।
आज की स्थिति – एक भूली हुई धरोहर
आज Shad Ki Baithak जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। स्थानीय लोग चंदा इकट्ठा करके इसकी देखरेख करने की कोशिश करते हैं। कोई 50, कोई 100 और कोई 200 रुपये देता है ताकि कम से कम इसकी मरम्मत और सफाई हो सके। यहाँ एक बुज़ुर्ग रहते हैं जो जगह की देखभाल करते हैं। वे आगंतुकों को मार्गदर्शन भी करते हैं।
हालाँकि, सरकार या ASI की तरफ़ से अभी तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। यह स्थिति इस धरोहर को Hidden heritage of Mewat बना देती है, जो केवल स्थानीय प्रयासों के सहारे ज़िंदा है।
क्यों खास है Shad Ki Baithak?
- यह स्थल दो राज्यों (हरियाणा और राजस्थान) को जोड़ता है।
- यह मेव सरदारों की शक्ति और संगठन का केंद्र रहा।
- इसकी वास्तुकला में स्थानीय और इस्लामी दोनों झलक मिलती है।
- यहाँ बावड़ी और तालाब जैसी अनूठी जल प्रबंधन प्रणाली मौजूद थी।
- यह स्थान आज भी लोककथाओं और लोकगीतों में जिंदा है।
Shad Ki Baithak सिर्फ़ एक “बैठक” नहीं, बल्कि मेवात का जीवंत इतिहास है। यह हमें यह सिखाती है कि किस तरह स्थानीय सरदारों ने अपनी राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सुरक्षित रखा। आज यह जगह भले ही टूटी-फूटी हालत में हो, लेकिन इसकी आत्मा अब भी ज़िंदा है। यह सचमुच Mewat Historical Palace का वह हिस्सा है जिसे देखे बिना आपकी यात्रा अधूरी है।
Pingwa (Pinangwa) – Mewat Historical Palace का भूला खजाना
अगर आप Top 5 Mewat Historical Palace की यात्रा कर रहे हैं तो अगला पड़ाव है Pingwa (Pinangwa)। यह जगह अपने अंदर इतनी छिपी हुई कहानियाँ और धरोहरें समेटे हुए है कि इसे देखे बिना आपकी Mewat history अधूरी रह जाएगी।
Pingwa दरअसल फ़िरोज़पुर झिरका से जुड़ा हुआ इलाक़ा है और यहाँ फैले हुए कई मकबरे, बावड़ियाँ और मस्जिदें इस बात का प्रमाण हैं कि यह कभी एक बेहद अहम धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र रहा होगा। लेकिन दुख की बात यह है कि आज यह स्थान लगभग भुला दिया गया है। यही कारण है कि इसे सचमुच Hidden heritage of Mewat कहा जा सकता है।
Punhana Road के मकबरे
Pingwa के पास से निकलने वाली Punhana road पर दो शानदार मकबरे आज भी मौजूद हैं। इनकी बनावट से साफ़ झलकता है कि ये 15वीं–16वीं शताब्दी के आसपास के हैं। चूना-पत्थर और स्थानीय अरावली पत्थरों से बने ये मकबरे कभी मेव सरदारों या सूफी संतों के विश्राम स्थल रहे होंगे।
हालाँकि इनका इतिहास अभी धुँधला है और नाम तक पुख़्ता नहीं है, लेकिन इनके गुम्बद और मेहराबें आज भी प्राचीन Mewat architecture का जीवंत उदाहरण हैं।
Lahabas गाँव के मकबरे
Pingwa के पास ही Lahabas गाँव में तीन मकबरे मौजूद हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि ये मकबरे यहाँ के सरदारों और उनके परिवारों के हैं।
इनकी बनावट अपेक्षाकृत बड़ी है और इनमें से एक मकबरे की गुंबद अब भी intact खड़ी है। ये मकबरे शायद ही किसी किताब में दर्ज हों, लेकिन स्थानीय इतिहास के गवाह बनकर खड़े हैं। यहाँ खड़े होकर आपको सचमुच महसूस होगा कि यह स्थान एक बड़ा Mewat monument रहा होगा।
Akbarpur Road – मकबरे, बावड़ी और मस्जिद
Pingwa का सबसे दिलचस्प हिस्सा है Akbarpur road।
यहाँ आपको दो और मकबरे मिलते हैं, साथ ही एक प्राचीन बावड़ी और एक मस्जिद भी मौजूद है। मस्जिद की शैली में मुग़ल और राजपूताना वास्तुकला का अनोखा मिश्रण दिखाई देता है। बावड़ी गहरी और चौड़ी है, जिसमें कभी वर्षा का पानी इकट्ठा होता था और गाँव की प्यास बुझाता था।
मकबरे आज भी इस बात का सबूत हैं कि यहाँ पर कभी एक बड़ा प्रशासनिक या धार्मिक ठिकाना रहा होगा। यहाँ खड़े होकर आपको Mewati culture की वो झलक मिलती है जो किताबों में नहीं, सिर्फ़ ज़मीन पर जाकर ही समझी जा सकती है।
Sikrawar और Punhana Road की बावड़ियाँ
Pingwa के आसपास Sikrawar road और Punhana road पर दो प्राचीन बावड़ियाँ भी मौजूद हैं। दिलचस्प बात यह है कि Sikrawar road की बावड़ी हाल ही में मेरे द्वारा खोजी गई थी। यह खोज इस बात का सबूत है कि मेवात के कई हिस्सों में अभी भी अनदेखी धरोहरें छुपी पड़ी हैं।
इन बावड़ियों की तकनीक इतनी पुरानी है कि इनमें पानी को इकट्ठा करने और फिल्टर करने का सिस्टम मौजूद था। यह मेवात की प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली का जीता-जागता उदाहरण है।
क्यों खास है Pingwa?
- एक ही क्षेत्र में मकबरों, बावड़ियों और मस्जिदों का अनोखा समूह मौजूद है।
- यह स्थान हमें बताता है कि Mewat heritage केवल बड़े किलों या शहरों में ही नहीं, बल्कि छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों में भी बसी हुई है।
- यहाँ का हर पत्थर और हर गुंबद Unknown history of Mewat को बयान करता है।
- यह जगह हमें याद दिलाती है कि इतिहास केवल किताबों में नहीं, बल्कि ज़मीन पर बिखरी हुई विरासतों में भी जीवित है।
Pingwa (Pinangwa) दरअसल एक जीवित संग्रहालय है। यहाँ फैले हुए Mewat monuments और Mewat Historical Palace की परंपरा यह साबित करती है कि मेवात का इतिहास केवल बड़े राजाओं और सुल्तानों तक सीमित नहीं था, बल्कि गाँवों और कस्बों में भी उसकी झलक गहराई से दिखाई देती है।
आज यह स्थान भले ही टूटी-फूटी अवस्था में हो, लेकिन इसकी आत्मा और महत्व अभी भी उतना ही है। अगर आप वास्तव में Hidden heritage of Mewat को महसूस करना चाहते हैं, तो Pingwa ज़रूर आइए।
Kaman ke 84 Khambha – मेवात की छुपी हुई पहचान
राजस्थान का इतिहास हमेशा से भारत के गौरवशाली पन्नों में दर्ज है। वीरता, स्थापत्य और संस्कृति की मिसाल यहाँ हर जगह देखने को मिलती है। इन्हीं मिसालों में से एक है क़मान (Kaman) कस्बा, जो आज भरतपुर (पहले डीग) ज़िले में आता है। यह इलाका ऐतिहासिक रूप से मेवात (Mewat) का हिस्सा रहा है, और यहीं पर मौजूद है रहस्यमयी 84 खंभों वाली मस्जिद (Chaurasi Khambha)।
अगर आप Top 5 Mewat historical palace की यात्रा पर हैं तो इस जगह को देखना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि जब तक आप Kaman ke 84 Khambha को अपनी आँखों से नहीं देख लेते, तब तक आप Mewat history और उसकी असली विरासत को पूरी तरह महसूस नहीं कर सकते।
84 खंभे – रहस्य और आस्था
इस मस्जिद की सबसे बड़ी खासियत इसके 84 खंभे हैं। लेकिन यही 84 खंभे आज तक रहस्य बने हुए हैं।
कहा जाता है कि इन खंभों को कोई भी इंसान कभी ठीक से गिन नहीं पाया। हर बार गिनती करते समय नंबर बदल जाते हैं। इसी वजह से इसे “गिनती से परे खंभे” भी कहा जाता है। यहाँ जाने वाले हर व्यक्ति को कोई न कोई अलग कहानी सुनने को मिलती है।
कोई कहता है इसे विश्वकर्मा ने बनाया। कोई मानता है कि यह जिन्नों ने एक रात में तैयार कर दिया।कुछ इसे पांडवों से जोड़ते हैं। लेकिन इतिहासकार कहते हैं कि यह सब लोककथाएँ हैं। असलियत इससे कहीं ज़्यादा दिलचस्प है।
इतिहास – Tughrul का निर्माण
अगर हम वास्तविक इतिहास की बात करें तो यह मस्जिद लगभग 1192–1204 ईस्वी के बीच बनी मानी जाती है। इसे ग़ुरिद गवर्नर बहाउद-दीन तुघरुल (Baha-ud-Din Tughrul) ने बनवाया था, जो Bayana क्षेत्र का शासक था।
इस निर्माण में पास के पुराने हिंदू और जैन मंदिरों से लाए गए पत्थरों और स्तंभों का इस्तेमाल किया गया। यही वजह है कि आज भी कई खंभों पर मूर्तियों के टूटे हुए निशान और मंदिर जैसी नक्काशी साफ़ दिखाई देती है।
👉 लेकिन ध्यान रहे – यह मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर नहीं बनाई गई। बल्कि पुराने मंदिरों के टूटे-फूटे हिस्सों और स्तंभों को इकट्ठा करके इसे खड़ा किया गया। यही मेल Mewat architecture की खूबसूरती है, जहाँ हिंदू, जैन और इस्लामी स्थापत्य का संगम दिखता है।
लोककथाएँ और मान्यताएँ
1. 84 जातियों का प्रतीक स्थानीय मान्यता के अनुसार ये खंभे 84 जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। माना जाता है कि इनकी गिनती कभी पूरी नहीं होती, ठीक वैसे ही जैसे समाज की जातियाँ कभी खत्म नहीं होतीं।
2. जिन्न वाली कहानी कई लोग मानते हैं कि यह मस्जिद जिन्नों ने एक रात में बना दी थी। लेकिन जब सुबह होने लगी और चक्कियाँ पीसने की आवाज़ आई तो जिन्न भाग गए और काम अधूरा छोड़ दिया।
3. स्थापत्य की वजह असल में गिनती गड़बड़ होने का कारण इसकी वास्तुकला है। कुछ खंभे आधे दीवार में जुड़े हुए हैं। कुछ छोटे-बड़े हैं। courtyard और prayer hall दोनों जगह खंभे लगे हैं। इसीलिए sequence बिगड़ जाता है और लोग ठीक से गिन नहीं पाते।
मेरी सोच – 84 खंभों का असली मतलब
मैं, नासिर हुसैन (Nasir Buchiya), जब Chaurasi Khambha पहुँचा तो हर खंभा मुझे अपनी अलग कहानी सुनाता महसूस हुआ। मुझे लगा कि ये केवल पत्थर नहीं हैं, बल्कि ये मेव समाज की उस विविधता के प्रतीक हैं जो सदियों से यहाँ मौजूद रही है।
मेरा मानना है कि शायद Tughrul ने इन्हें सिर्फ़ इबादतगाह के लिए नहीं बनाया था, बल्कि यह 84 खंभे वास्तव में मेवात की 84 जातियों और समुदायों का प्रतीक हैं। यानी यह मस्जिद केवल स्थापत्य नहीं, बल्कि एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है।
स्थापत्य कला – पत्थरों में छुपा इतिहास चौकोर आकार की इस मस्जिद में चार बड़े और आठ छोटे प्रवेश द्वार बने हैं। गुंबद अर्धगोलाकार है, जो अष्टकोणीय आधार पर टिका हुआ है। दीवारों और मेहराबों पर आज भी अरबी लिपि में कुरान की आयतें और पुष्पाकृतियाँ दिखाई देती हैं। स्तंभों की बनावट में मंदिर और मस्जिद दोनों की झलक मिलती है। यह सब हमें उस दौर की Mewat monuments की वास्तविक तस्वीर दिखाते हैं।
Meo history से संबंध: Meo history में यह मस्जिद बहुत अहम है। Tughrul ने यहाँ जो लोग बसाए, उनमें कई स्थानीय मेव भी थे जिन्होंने समय के साथ इस्लाम स्वीकार किया। यही वजह है कि यह मस्जिद Meo संस्कृति और उनकी पहचान का भी हिस्सा बन गई।
Hidden heritage of Mewat: आज यह जगह टूटी-फूटी हालत में है और सही देखभाल न होने से धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो रही है। पर्यटन विभाग या सरकार ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है। यही कारण है कि यह सचमुच Hidden heritage of Mewat बन गई है। Kaman ke 84 Khambha सिर्फ़ एक मस्जिद नहीं, बल्कि यह इतिहास, आस्था और स्थापत्य कला का संगम है।
यहाँ की हर दीवार हमें Mewat history का हिस्सा सुनाती है। हर खंभा हमें Meo history और समाज की विविधता की झलक दिखाता है। और हर कहानी हमें बताती है कि यह जगह कितनी रहस्यमयी है।
- 👉 अगर आप कभी राजस्थान की यात्रा पर जाएँ तो भरतपुर ज़िले के इस कोने को ज़रूर देखें।
- 👉 और जब भी खंभे गिनने की कोशिश करें, तो याद रखिए – शायद आप भी 84 पूरे न कर पाएँ। 😉
चील महल (Cheel Mahal)
राजस्थान के डीग ज़िले के कामां (जो पहले भरतपुर ज़िले का हिस्सा था) में स्थित चील महल (Cheel Mahal) एक प्राचीन और ऐतिहासिक इमारत है, जिसे आज भी लोग उसकी स्थापत्य शैली, रहस्य और इतिहास के लिए याद करते हैं। यह स्थल न केवल Mewat historical palace की श्रृंखला का हिस्सा है, बल्कि Mewat monuments और Mewat architecture का एक शानदार उदाहरण भी है। चील महल की भव्यता और इसके आसपास की अरावली की पहाड़ियाँ इसे और भी आकर्षक बनाती हैं।
चील महल का पता है – आदर्श कॉलोनी, कामां, डीग, राजस्थान। यह इलाका ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि कामां ब्रज क्षेत्र का हिस्सा है, जो भगवान कृष्ण के जीवन से गहराई से जुड़ा हुआ है। कामां में कई प्राचीन मंदिर मौजूद हैं और यही कारण है कि इसे Meo history और धार्मिक संस्कृति दोनों के संगम के रूप में देखा जाता है।
इतिहासकार मानते हैं कि चील महल को रणनीतिक कारणों से ऊँचाई पर बनाया गया था ताकि आसपास के पूरे क्षेत्र पर नज़र रखी जा सके। यहाँ से अरावली घाटियों का अद्भुत नज़ारा दिखाई देता है। समय के साथ यह महल खंडहर में तब्दील हो चुका है, लेकिन इसकी दीवारें और स्थापत्य कला अब भी यह बताती हैं कि कभी यह स्थान मेव शासकों की शक्ति और वैभव का प्रतीक था। यही कारण है कि आज भी यह स्थल Hidden heritage of Mewat कहलाता है।
धार्मिक दृष्टि से भी चील महल का महत्व कम नहीं है। कामां का इलाका ब्रज मंडल का हिस्सा होने के कारण विशेष रूप से जाना जाता है और यहाँ मानसून के मौसम में परिक्रमा मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और यहाँ का धार्मिक वातावरण इसे और खास बना देता है।
चील महल का महत्व केवल स्थापत्य और धार्मिक दृष्टि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्थान पर्यटन और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी अहम है। यहाँ आने वाले यात्रियों को न सिर्फ़ Mewat history और मेवात की गौरवशाली धरोहरों का अनुभव होता है, बल्कि यह स्थल उन्हें उस दौर की याद दिलाता है जब मेवात अपनी शक्ति और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध था। कामां शहर के आसपास भी कई अन्य प्राचीन स्थल मौजूद हैं, जो इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता और महत्व को और गहराई से उजागर करते हैं।
संक्षेप में कहा जाए तो चील महल एक ऐसा स्थल है जो Mewat historical palace, Mewat monuments और Mewat architecture की धरोहर को अपने भीतर समेटे हुए है। यह न केवल मेवात की शान है बल्कि राजस्थान के इतिहास का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहाँ धर्म, स्थापत्य और लोककथाएँ एक साथ जीवंत दिखाई देती हैं।
❓ Frequently Asked Questions (FAQ) – Top 5 Mewat Historical Palace Part 3
Q1. क्या Mewat historical palace सच में घूमने लायक हैं?
👉 जी हाँ, बिल्कुल। Mewat history से जुड़े ये स्थल न सिर्फ स्थापत्य कला और पुरानी कहानियों का प्रतीक हैं, बल्कि यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता भी आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
Q2. Dehra Mandir Firozpur Jhirka की असली पहचान क्या है?
👉 Dehra Mandir को आज Jain Mandir घोषित कर दिया गया है, लेकिन इसके पीछे का इतिहास बहुत गहरा है। माना जाता है कि यह कभी स्थानीय शासकों का महल था और बाद में धार्मिक स्थल में बदल गया।
Q3. Shad ki Baithak को खास क्यों माना जाता है?
👉 Shad ki Baithak इसलिए खास है क्योंकि यह आधा हरियाणा और आधा राजस्थान में फैला हुआ है। यह 16 गाँवों के सरदार शाद का निवास और बैठक स्थल था, जहाँ पंचायत और मेहमानों की मेजबानी होती थी।
Q4. Pingwa और आसपास की खोजों में क्या मिलता है?
👉 Pingwa और इसके आसपास कई प्राचीन makbara, baoli और mosque मौजूद हैं। हाल ही में यहाँ की एक बावड़ी की खोज भी हुई है, जो Mewat architecture की अनूठी मिसाल है।
Q5. Kaman ke 84 Khambha का रहस्य क्या है?
👉 84 खंभों वाली मस्जिद लोगों के लिए एक पहेली बनी हुई है। कहा जाता है कि कोई भी इन खंभों को गिन नहीं पाता। असलियत में यह Tughrul द्वारा बनवाई गई मस्जिद है, जिसमें मंदिरों से लाए गए स्तंभों का पुनः उपयोग किया गया।
Q6. Cheel Mahal क्यों प्रसिद्ध है?
👉 Cheel Mahal कामां का एक ऐतिहासिक किला है, जो अरावली की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ से पूरे इलाके का शानदार दृश्य दिखता है। साथ ही, ब्रज क्षेत्र का हिस्सा होने के कारण इसका धार्मिक महत्व भी है।
Q7. क्या Mewat के ये सभी ऐतिहासिक स्थल सुरक्षित हैं?
👉 अभी तक तो अधिकतर स्थल खंडहर अवस्था में हैं और मरम्मत की ज़रूरत है। अगर सरकार या स्थानीय संस्थाएँ समय पर ध्यान न दें, तो आने वाले वर्षों में ये धरोहरें पूरी तरह नष्ट हो सकती हैं।
Q8. क्या इन जगहों पर कोई ticket या entry fee लगती है?
👉 ज़्यादातर जगहों पर कोई ticket नहीं है, जैसे Shad ki Baithak या Dehra Mandir। लेकिन कुछ जगहों (जैसे Tijara Fort, Part 2 में) ticket के बिना entry संभव नहीं। Cheel Mahal और 84 Khambha पर फिलहाल free entry है।
Q9. Mewat historical palace घूमने का सबसे अच्छा मौसम कौन सा है?
👉 मानसून और सर्दियों का मौसम (जुलाई से फरवरी) सबसे अच्छा है। गर्मियों में अरावली की पहाड़ियाँ बहुत गर्म और सूखी हो जाती हैं, जिससे यात्रा कठिन हो सकती है।
Q10. क्या Mewat architecture और Meo history का आपस में संबंध है?
👉 हाँ, बिल्कुल। Mewat architecture सिर्फ पत्थरों की इमारत नहीं, बल्कि Meo history की झलक है। ये वो धरोहरें हैं जहाँ से मेव समाज की संस्कृति, जीवनशैली और संघर्ष झलकते हैं।
समापन – Top 5 Mewat Historical Palace Part 3
आज की इस लंबी यात्रा में हमने Mewat history के और भी गहरे पन्ने खोले।
हमने देखा कि कैसे Dehra Mandir सिर्फ एक मंदिर नहीं बल्कि अपने भीतर एक महल, एक रियासत और मेवात के बदलते दौर की पूरी कहानी समेटे हुए है।
कैसे Shad ki Baithak आधे हरियाणा और आधे राजस्थान पर राज करने वाले सरदार शाद की शक्ति और दूरदर्शिता का प्रमाण है।
कैसे Pingwa जैसे गाँव अपने भीतर कई छुपे हुए खजाने रखते हैं – बावड़ियाँ, मकबरे और मस्जिदें जो आज भी अनदेखी हैं।
कैसे Kaman ke 84 Khambha अपनी स्थापत्य कला और रहस्यमयी कहानियों से हर आने वाले को सोचने पर मजबूर कर देते हैं।
और आखिर में Cheel Mahal जो ब्रज की धरती और मेवात की धरोहर का संगम है।
यहाँ की हर ईंट, हर पत्थर, हर खंभा हमें यह एहसास कराता है कि Mewat historical palace सिर्फ धरोहर नहीं बल्कि हमारी पहचान और हमारी जड़ों का आईना हैं।
लेकिन यह सफर यहीं खत्म नहीं होता।
जैसे Part 1 और Part 2 में हमने कई अद्भुत जगहें देखीं, वैसे ही Part 3 में भी बहुत कुछ जान लिया। फिर भी अभी मेवात के पन्ने पूरे नहीं खुले।
आगे Part 4 में हम आपको लेकर चलेंगे और गहराई से जानेंगे Dehra Mandir की बाकी अनकही कहानियाँ,
Shad ki Baithak से जुड़ी लोककथाएँ,
Pingwa की खोज,
और सबसे खास – 84 Khamba aur Cheel Mahal से जुड़ी रहस्यात्मक बातें और उनका वास्तुशिल्प।
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