क्या लोहड़ी का नायक दुल्ला भट्टी मुसलमान नहीं, एक सिख था!
लोहड़ी के बधाई संदेशों के साथ इस बार एक ऐसा संदेश भी साझा किया जा रहा है जिसके मुताबिक इस त्योहार का पंजाबी नायक दुल्ला भट्टी मुसलमान नहीं, एक सिख था
आज 13 जनवरी है यानी लोहड़ी का दिन है. पंजाब और पंजाबी समुदाय द्वारा मनाए जाने वाले इस त्योहार के पीछे कई कहानियां हैं. हमें स्कूलों में बताया जाता रहा है कि रबी की फसल पकने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है. लोहड़ी की शाम लोग इकट्ठे होकर उपले और लकड़ियों के ढेर में आग जलाते हैं, उसमें हाल में पके अनाज की बालियां, मूंगफली और तिल डालते हुए उसके आस-पास नाच गाना करते हैं और एक-दूसरे को बधाइयां देते हैं. वैसे लोहड़ी की बधाइयां देने का सिलसिला कल रात से वॉट्सएप, फेसबुक और ट्विटर पर शुरू हो चुका है, लेकिन इस बार इन बधाइयों के साथ एक झूठ भी फैलाया जा रहा है. उस झूठ की पोलपट्टी खोलने से पहले आप को बता दें कि सरहद के उस पार हो या इस पार, लोहड़ी के दिन पंजाबी सुंदरी-मुंदरी का यह गाना ज़रूर गाया जाता है :
सुंदर मुंदरिए - हो
तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
तेरा कौन विचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
इस गाने में सुंदरी और मुंदरी नाम की दो बहनों के अलावा एक तीसरे शख्स का भी ज़िक्र आता है. वो शख्स है दुल्ला भट्टी. इस पंजाबी राजपूत मुसलमान लोकनायक का असली नाम है अब्दुल्ला भट्टी. वे मुगल बादशाह अकबर के समय के एक विद्रोही किसान नेता थे.
अब्दुल्ला भट्टी के जिक्र से जुड़ी लोहड़ी की एक कहानी पंजाब और आसपास के क्षेत्र में काफी प्रचलित है. इसके मुताबिक उस दौर में पंजाब में एक ब्राह्मण हुआ करता था. उसकी दो बेटियां थीं - सुंदरी और मुंदरी. इन दोनों की शादी तय हो चुकी थी कि इस बीच मुगलिया सल्तनत के एक अफसर की नजर इन पर पड़ गई. इससे इनका पिता बड़ा परेशान हुआ और उसने लड़कियों की ससुराल पक्ष से दरख्वास्त की कि वे शादी तय तारीख से पहले करने को तैयार हो जाएं. लेकिन सल्तनत के अफसर का डर उनको भी था, सो उन्होंने इसके लिए न कर दी. कहते हैं कि जब यह बात दुल्ला भट्टी को पता चली तो उसने लोहड़ी के दिन दोनों पक्षों को बुलाकर लड़कियों की शादी करवा दी और तब से लोहड़ी का यह गीत लोकप्रिय हुआ जिसमें दुल्ला भट्टी का जिक्र है.
अब इसे लेकर यह झूठ फैलाया जा रहा है कि दुल्ला भट्टी एक सिख था जिसने हिंदुओं को बचाने के लिए अकबर से दुश्मनी मोल ली. ऊपर मौजूद संदेश की भाषा धार्मिक पूर्वाग्रहों से भरी है. ऐसे झूठ कौन फैला रहा है? कहने की ज़रूरत नहीं कि ये वही लोग हैं जिन्हें इतिहास को नए रंग से लिखना है. जिनके लिए मुसलमान बाहर से आए आक्रांताओं की संतानें हैं और ऐसे में उनके बीच से कोई नायक कैसे हो सकता है?
तमाम किताबें मौजूद हैं जो इस झूठ की किरकिरी करती हैं. आप डोर्लिंग किंडर्सले (इंडिया) द्वारा 2008 में छापी गई ‘पॉपुलर लिट्रेचर एंड प्री मॉडर्न सोसाइटीज़ इन साउथ एशिया’ उठाकर देख लें, या फिर एरिक हॉब्सबॉम की बेंडिट्स. आपको इन किताबों में दुल्ला भट्टी के किरदार का पूरा लेखा-जोखा मिल जाएगा. सिर्फ यही नहीं आप अगर यूं ही यूट्यूब पर देखना चाहें तो पाकिस्तान के एक्सप्रेस न्यूज़ चैनल का बड़ा मज़ेदार सा वीडियो भी देख सकते हैं जो दुल्ला भट्टी की कहानी सुनाता है
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