नमस्कार दोस्तों मैं एक बार फिर से आप सभी का स्वागत करता हूं | Hindi Kahani पर | दोस्तों हम अपने शहीदों को बहुत याद करते हैं | और बहुत बार याद करते हैं | History of India in Hindi | मैं आपको Aaj बताने WALA Hun काले पानी की सजा |
काला पानी एक ऐसी सजा होती थी, जिसका ख्याल आने भर से उस वक्त के लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। हालांकि अब देश में सजा ए काला पानी का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है | फिर भी लोगों को इसके बारे में जानने की दिलचस्पी लगातार बनी रहती है। आइए चलते हैं काला पानी और याद करते हैं हमारे वीर शहीदों को। History of India in Hindi main
2, अंग्रेजों के दमन चक्र के खिलाफ जब भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना विरोध किया तो ब्रिटिश सरकार ने भी यातना देने के नए-नए तरीके ईजाद किए। इसी में से एक था काला पानी जिसके तहत उन्होंने सेल्यूलर नाम से एक जेल बनाएं जिसमे स्वतंत्रता सेनानियों को कैदी बना कर रखा जाता था। इन जेलों में प्रकाश का कोई इंतजाम नहीं होता था साथ ही समय-समय पर इन्हे यातनाएं दी जाती थी। जानकारों की माने तो इन जेलों में भारतीय कैदियों के साथ बहुत बुरा बर्ताव होता था। उन्हें गंदे बर्तनों में खाना दिया जाता था पीने का पानी भी सीमित मात्रा में गंदा मिलता था। यहां तक कि जबरदस्ती नंगे बदन पर कोड़े बरसाए जाते थे और जो ज्यादा विरोध करता था उसे तोप के सामने खड़ा कर उड़ा दिया जाता था।
वैसे तो भारतीय कैदी आम जिलों में भाग निकलते थे | बावजूद इसके ब्रिटिश सरकार ने काला पानी के लिए बनाई जेल की चारदीवारी बहुत मोटी बनवाई थी क्योंकि इस जेल का निर्माण जिस जगह हुआ था वह स्थान चारो ओर से समुद्र के गहरे पानी से घिरा हुआ था। ऐसे में किसी भी कैदी का भाग पाना असंभव था | फिर भी भारतीय तो भारतीय थे।
4, जिससे नाराज होकर जेल अधीक्षक वॉकर ने 87 लोगों को फांसी पर लटकाने के आदेश दे दिए थे। बावजूद इसके हमारे स्वतंत्रा सेनानी भारत माता की जय बोलने से कभी पीछे नहीं हटे।
5, जानकारी के अनुसार काला पानी की इस जेल का प्रयोग अंग्रेज सिर्फ भारतीय कैदियों के लिए ही नहीं करते थे | यहां बर्मा और दूसरी जगहों से भी सेनानियों को कैद करके लाया जाता था।
6, ब्रिटिश अधिकारियों के लिए यह जगह पसंदीदा थी क्योंकि यह द्वीप, एकांत और दूर था। इस कारण आसानी से कोई आ नहीं सकता था और ना ही यहां से निकल सकता था। अंग्रेज यहां कैदियों को लाकर उनसे विभिन्न तरह के काम भी करवाते थे। आपको हम बता दें कि 200 द्रोहियों को यह सबसे पहले अंग्रेज अधिकारी डेविड बैरी की देखरेख में सबसे पहले लाया गया था।
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6, ब्रिटिश अधिकारियों के लिए यह जगह पसंदीदा थी क्योंकि यह द्वीप, एकांत और दूर था। इस कारण आसानी से कोई आ नहीं सकता था और ना ही यहां से निकल सकता था। अंग्रेज यहां कैदियों को लाकर उनसे विभिन्न तरह के काम भी करवाते थे। आपको हम बता दें कि 200 द्रोहियों को यह सबसे पहले अंग्रेज अधिकारी डेविड बैरी की देखरेख में सबसे पहले लाया गया था।
8, वीर सावरकर के अलावा उनके बड़े भाई बाबूराम सावरकर, बटुकेश्वर दत्त, डॉक्टर जीवन सिंह, योगेंद्र शुक्ला, मौलाना अहमदुल्लाह, मौलवी अब्दुल रहीम रायपुरी, भाई परमानंद, मौलाना शौजालयहक़ खैराबादी, सदन चंद्र चटर्जी, सोहन सिंह, वामन राव जोशी, नंद गोपाल और महावीर सिंह जैसे आधी वीरों को काला पानी के दंशका झेलना पड़ा था।
9, अंग्रेज अधिकारियों का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों पर यातना का सिलसिला बढ़ा दिया था। उनकी क्रूरता इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी की अब बर्दाश्त से बाहर थी, लेकिन सवाल यह था कि आखिर किया क्या जाए। ऐसे में हमारे वीर भगत सिंह के दोस्त कहे जाने वाले महावीर सिंह जेल में भूख हड़ताल पर बैठ गए। जब अंग्रेज अधिकारियों को इसकी सूचना हुई तो उन्होंने महावीर पर जुल्म बढ़ा दिए। उनकी भूख हड़ताल को खत्म करने के सभी प्रयास किए गए लेकिन महावीर कभी टूटा नहीं। अंत में उनके दूध में शहद मिलाकर उन्हें जबरन पिलाया गया जिससे उनकी तुरंत ही मौत हो गई। मौत के बाद महावीर के मृत शरीर में पत्थर बांधकर समुद्र में फेंक दिया गया था ताकि किसी को भी इस बारे में कभी कोई खबर ना लगे, लेकिन इसकी खबर जल्द ही पूरे जेल में फैल गई जिसके परिणाम स्वरुप जेल के सारे कैदी भूख हड़ताल पर बैठ गए। बाद में महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के चलते 1937 और 1938 में इन कैदियों को वापस भारत की जेलों में भेज दिया गया।
10, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को पूरी तरह से नाकाम करने के इरादे से अंग्रेजों ने काला पानी के लिए खास किस्म की जेल तैयार की थी। इस जेल के मुख्य भवन में लाल ईंटों का प्रयोग किया गया है जो बर्मा से मंगाई गई थी। जेल के बीचोबीच एक टावर भी बनाया गया है जहां से कैदियों पर हमेशा चौबीसो घंटे नजर रखी जाती थी। इस जेल में कुल 698 कोठरिया थी प्रत्येक कोठरी में 3 मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान हुआ करता था। जेल में बेड़ियों का प्रबंध भी था ताकि कैदियों को चौबीसो घंटे इनसे बांधकर रखा सके।
11, 1942 में अंडमान पर जापानियों का अधिकार को गया था इसलिए जापानियों ने वहां से ग़ौरो को मार-मार कर भगाया और साथ ही इस जेल में अलग अलग बने 7 भागों में से 2 भागों को नष्ट कर दिया गया। बाद में आजादी के बाद भारत ने इसके दो हिस्सों को गिरा दिया। इसके बाद बचे हुए एक हिस्से में अस्पताल का निर्माण कराया गया और बाकी भाग को मुख्य टावर के रूप में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दे दिया।
12, धन्य है भारत माता के वो वीर सपूत जिन्होंने काला पानी के रूप में अंग्रेजों की प्रताड़ना को झेला और उन पर ढेर सारे सितम भी हुए फिर भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और आज़ादी की अलख जगा कर देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया।
Q, लेकिन क्या आज हम पूरी तरीके से आजाद हैं। क्या हमारे इन वीर सपूतों की कुर्बानी कुछ रंग लाई है। देश में चलते हालातों को देखकर तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा जा सकता कि आज भी यह देश आजाद हो पाया है यह कहानी भी पढ़ें क्या भविष्य में हम सच में जा सकेंगे
Paise kamane ka Kayda par kya hua fayda जाने कोन है ये, hindi kahani, history of india
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nice
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