talibaan तालिबान की कहानी काबुल मैं आतंकवादी | अफगानिस्तान

हाय मैं नासिर हुसैन आज के इस ब्लॉग में मैं आपको बताऊंगा तालिबान talibaan की कहानी काबुल में आतंकवादी और अफगानिस्तान के हारने की कहानी ‌। अफगानिस्तान इस जंग को क्यों हारा |


talibaan तालिबान कौन है.  और कैसे इतना मजबूत हुआ इतना पैसा इनके पास आया कहां से आया | जो इनके पास इतने बड़े बड़े हथियार थे ‌। इन सब चीजों की पीछे की कहानी में ईस आर्टिकल में आपको बताने की कोशिश करूंगा ‌‌। काबुल मैं तालिबान talibaan कैसे घुसे इतने बड़े शहर पर कैसे  इतनी जल्दी कब्ज़ा करलिया | किया यह आतंकवादी थे |

talibaan तालिबान
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तालिबान talibaan और अफगानिस्तान अमेरिका की बहुत लंबी कहानी है | इसको इसी एक आर्टिकल में तो लिखा नहीं जा सकता |  पर तालिबान के पास पैसा कैसे आया शुरुआत किसी से करते हैं ‌। इस कड़ी में मैंने दो आर्टिकल पहले और भी लिखे थे तालिबान कौन है‌। और कहां से आए थे ‌।


तालिबान talibaan के पास पैसा अफीम से आया है

आज जो आप तालिबान देख रहे हैं‌। अब से 20 साल पहले पहले भी तालिबान आया था‌। पर वह कमजोर था उसके पास पैसे नहीं थे ‌। अब का तालिबान काफी ज्यादा मजबूत और ताकतवर है ‌। अब इसके पास बेशुमार पैसा भी है ‌। और सबसे ज्यादा पैसे की इनकम इसकी अफीम की खेती से ही आती है ‌। 60% परसेंट सालाना इनकम ईसकी अफीम से होती है ‌। पर इसके विपरीत तालिबान अपना दावा दूसरा ही पेश करता रहता है ‌।
talibaan तालिबान का दावा है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान में अपने पिछले शासन के दौरान अफ़ीम की खेती पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी जिसके चलते ग़ैर-क़ानूनी ड्रग्स का कारोबार थम गया था.
हालांकि 2001 में अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम के उत्पादन में कमी ज़रूर देखी गई थी, लेकिन बाद के सालों में यह देखने को मिला है कि तालिबान नियंत्रित इलाकों में अफ़ीम की खेती बढ़ती गई.



सबसे ज्यादा अफीम कहां होती है


अफ़ीम को इस तरह से परिष्कृत किया जाता है कि उससे काफ़ी अधिक नशा देने वाले हेरोइन जैसे ड्रग्स तैयार होते हैं।
यूनाइटेड नेशंस ऑफ़िस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम्स (यूएनओडीसी) के मुताबिक़, अफ़ीम का सबसे बड़ा उत्पादक देश अफ़ग़ानिस्तान है‌।
दुनिया भर में अफ़ीम के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान में होता है.
2018 में यूएनओडीसी के आकलन के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान की कुल अर्थव्यवस्था में 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी अफ़ीम उत्पादन की थी.
अफीम के ऊपर तालिबान ने सरकार बनने के बाद कहा है ‌। तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा है, 
जब हमलोगों की सरकार रही है तब ड्रग्स का उत्पादन नहीं हुआ है. हम लोग एक बार फिर अफ़ीम की खेती को शून्य तक पहुंचा देंगे. कोई तस्करी नहीं होगी। 



तालिबान talibaan  का रिकॉर्ड अफीम की खेती में


मेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, तालिबान के शासन में अफ़ीम की खेती बढ़ी है. यह 1998 के 41 हज़ार हेक्टेयर से 2000 में 64 हज़ार हेक्टेयर तक पहुंच गयी थी‌‌।
दुनिया के कुल अफ़ीम उत्पादन का क़रीब 39% हिस्सा हेलमंद प्रांत में होता है और इस प्रांत के अधिकांश हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण रहा है। 
लेकिन जुलाई, 2000 में तालिबान ने अपने नियंत्रण वाले हिस्से में अफ़ीम की खेती पर पाबंदी लगा दी थी‌।
मई, 2001 की एक यूएन रिपोर्ट के मुताबिक़, 'तालिबान नियंत्रित इलाक़ों में अफ़ीम उत्पादन पर लगी पाबंदी पूरी तरह से कामयाब रही है‌‌।
तालिबान की पाबंदी के दौर में 2001 और 2002 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफ़ीम और हेरोइन पकड़े जाने के मामले भी कम देखने को मिले थे‌।
हालांकि इसके बाद स्थिति में काफ़ी बदलाव देखने को मिला है।
वैसे पिछली सरकार की ओर से नियंत्रित खेती किए जाने के बाद भी यह स्पष्ट है कि अधिकांश अफ़ीम तालिबान नियंत्रित इलाक़ों में उत्पादित हो रहा था।
उदाहरण के लिए हेलमंद दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान का प्रांत है. इसके अधिकांश ज़मीन पर 2020 में अफ़ीम की खेती हो रही थी, वह भी तब जब वहां तालिबान का नियंत्रण था‌।



अफीम से तालिबान talibaan की इनकम काबुल कीबर्बादी


अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम की खेती रोज़गार का सबसे अहम ज़रिया है,  यूएनओडीसी के अफ़ग़ानिस्तान के अफ़ीम सर्वे के मुताबिक़, क़रीब एक लाख 20 हज़ार लोग इस पर निर्भर थ‌‌।
अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक़, तालिबान को अफ़ीम पर टैक्स लगाने से आमदनी होती है इसके अलावा ग़ैर-क़ानूनी ढंग से अफ़ीम रखने और उसकी तस्करी करने पर भी अप्रत्यक्ष तौर पर आमदनी होती है. अफ़ीम उगाने वाले किसानों ने 10% टैक्स लिया जाता है‌।
अफ़ीम से हेरोइन बनाने वाले प्रोसेसिंग लैब से भी टैक्स वसूला जाता है और इसके कारोबारी भी टैक्स चुकाते हैं. एक आकलन के मुताबिक़, ग़ैरक़ानूनी ढंग से इस ड्रग्स के कारोबार से तालिबान को कम से कम 100 से 400 मिलियन डॉलर के बीच सालाना आमदनी होती है। 
अमेरिकी वॉचडॉग स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फ़ॉर अफ़ग़ान रिकंस्ट्रक्शन के मुताबिक़, तालिबान की सालाना आमदनी में 60% हिस्सा ग़ैरक़ानूनी ड्रग्स कारोबार से आता है‌।



talibaan तालिबान की कहानी काबुल मैं आतंकवादी | अफगानिस्तान 


अफ़ग़ान पत्रकार बिलाल सरवरी ने साल 2001 में तालिबान के पांव उखड़ते देखे और अपने देश को फिर से खड़ा होते देखा है‌।
अब वो मानते हैं कि अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति क़ायम करने का एक अच्छा मौका गंवा दिया‌।
पिछले दो हफ़्तों के दौरान उनके देश में घटनाओं ने एक भयावह मोड़ लिया है, 
जिससे ख़ुद की उनकी जान ख़तरे में पड़ गई. उनकी कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी।
मैं साल 2001 में पाकिस्तान के पेशावर के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल में कालीन बेचने वाला सेल्समैन था. काम के लिहाज़ से वो एक आम सा दिन था‌।
काम करते-करते अचानक टीवी पर नज़र गई और जो देखा उसे मैं कभी नहीं भू​ल सकता. मैंने न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से विमान टकराने का लाइव फ़ुटेज देखा और फिर एक अन्य विमान पेंटागन की इमारत से टकराया ‌।
उसके बाद हमारी ज़िंदगी ही बदल गई।
पूरी दुनिया का ध्यान अफ़ग़ानिस्तान पर टिक गया. तब अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का राज था. तालिबान पर आरोप लगा कि उसने हमले के प्रमुख संदिग्ध- ओसामा बिन लादेन और उनके सगंठन अल-क़ायदा को अपनी पनाह में रखा है‌।
अगले ही दिन होटल की लॉबी में अचानक विदेशी मीडिया के सैंकड़ो लोग जमा हो गए थे. उन्हें किसी ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश थी जो अंग्रेज़ी बोलना जानता हो और पास के बॉर्डर को पार करके जब वो अफ़ग़ानिस्तान जाएं तो उनके लिए दुभाषिए का काम कर सके. मैंने वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और तब से मेरी यात्रा लगातार जारी है‌।

talibaan तालिबान



दहशत के वह दिन रात को भी ना सोना


मैं बचपन से अफ़ग़ानिस्तान के बाहर रह रहा था. 1990 के दशक में सोवियत सेना के जाने के बाद गृह युद्ध भड़का और हमारा परिवार वहां से पलायन कर गया.
जब कई साल बाद मैं पहली बार काबुल पहुंचा तो वहां हुई बर्बादी देखकर दंग रह गया. इमारतें मलबे का ढेर बन चुकी थीं. उनमें लगाया गया लोहा कबाड़ बन गया था. काबुल की चहल-पहल गायब हो चुकी थी. चारों ओर गरीबी और डर फैला हुआ था‌।
शुरू में मैं अबू धाबी टीवी के साथ काम कर रहा था और पांच अन्य पत्रकारों के साथ इंटर कॉन्टिनेंटल होटल में रह रहा था. हर रोज मेरी नींद डर के साए में खुलती थी, क्योंकि काबुल अमेरिकी हवाई हमलों का मुख्य केंद्र बन गया था. अल-क़ायदा और तालिबान के लड़ाके हमारे होटल आते-जाते रहते थे. हमने उन्हें पास की गलियों में घूमते देखा. रात भर विस्फोट होते रहते थे. ऐसे में मुझे डर लगता था कि कहीं अगला नंबर हमारे होटल का न हो‌।



नया अफगानिस्तान भाग गए तालिबान


और फिर दिसंबर की एक सुबह, तालिबान काबुल छोड़कर चले गए.
इसके कुछ घंटे बाद, लोग अपनी दाढ़ी कटवाने के लिए नाई की दुकानों पर उमड़ पड़े. साथ ही, धमाकों से वीरान हो चुकी गलियों को सुरीले अफ़ग़ानी संगीत ने भर दिया. उस सुबह अफ़ग़ानिस्तान का फिर से जन्म हुआ था.
उस घटना के बाद, मैं आम अफ़ग़ानों के जीवन को गहराई से सीधे तौर पर देख रहा था, अब मैं अनुवादक की बजाय पत्रकार बन गया था. तोरा बोरा की लड़ाई कवर करने से लेकर, पख़्तिया में शाई कोट की लड़ाई तक, मैंने तालिबान को हारते देखा था‌।
उनके लड़ाके पहाड़ी ग्रामीण इलाकों में छिप गए, जबकि उनके नेता पाकिस्तान भाग गए. पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे लगता है कि वह मौका हाथ से निकल गया‌।
अमेरिका को उस समय तालिबान के साथ शांति समझौते के लिए बैठना चाहिए था. मैंने तालिबान के आम लड़ाकों के बीच अपने हथियार डालने और अपना जीवन फिर से शुरू करने की बेचैनी देखी थी
हालांकि अमेरिकी ऐसा नहीं चाहते थे. मेरी रिपोर्टिंग से, मुझे और कई दूसरे अफ़ग़ानों को ये महसूस हुआ था कि अमेरिका की इच्छा 9/11 की घटना का बदला लेने की थी‌।


फिर अमेरिका ने की गलतियां


गरीब और निर्दोष अफ़ग़ान ग्रामीणों पर बमबारी की गई. उन्हें हिरासत में लिया गया. विदेशी ताक़तों को युद्ध करते रहने की अनुमति देने की अफ़ग़ान सरकार की इच्छा ने उसके और आम लोगों के बीच एक खाई पैदा कर दी‌।
मुझे साफ तौर पर एक घटना याद है, जब अमेरिकी सैनिकों ने ग़लती से काबुल और गरदेज़ के बीच के राजमार्ग पर सैयद अबासिन नाम के एक टैक्सी ड्राइवर को गिरफ़्तार करके हिरासत में ले लिया था‌।
उनके पिता रोशन जो बुजुर्ग थे और एरियाना एयरलाइंस के एक नामी कर्मचारी थे‌।
 जब अमेरिकी सैनिकों की ग़लती सामने लाई तब अबासन को छोड़ दिया गया. हालांकि अन्य ऐसे लोग इतने भाग्यशाली नहीं थे‌।
अमेरिकियों ने काफी सख़्त रुख अपनाया था. इससे आम अफ़ग़ानों को जान-माल का काफी नुक़सान उठाना पड़ा‌।
हताहत होने वाले अमेरिकी सैनिकों की संख्या को कम करने के लिए अमेरिका ने जमीनी सैनिकों की बजाय बम और ड्रोन को प्राथमिकता दी‌।
 धीरे-धीरे लोगों के बीच अमेरिका को लेकर भरोसा लगातार कम होता गया और शांति वार्ता की उम्मीदें फीकी पड़ती गईं‌।
 कुछ सालों के लिए ही सही पर यह पता चला ​कि अफ़ग़ानिस्तान क्या बन सकता है? 
 उस समय मैं बिना मौत के डर के खुली सड़क पर हजारों किलोमीटर गाड़ी चला सकता था‌।
  मैंने देर रात या अहले सुबह काबुल से ख़ोस्त और पक्तिका प्रांतों के दूरदराज के गांवों के साथ पूरे देश का भ्रमण किया. 
  इस दौरान, अफ़ग़ानिस्तान के असाधारण ग्रामीण इलाकों को जानना भी संभव हो गया था‌।


2003 से फिर बदला अफगानिस्तान


उस समय विद्रोहियों ने नए सिरे से हमला करना शुरू कर दिया था‌। मुझे अच्छे से याद है कि एक दिन एक विशाल 'ट्रक बम' काबुल के बीचोबीच फट गया‌।
 इस धमाके ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया और खिड़कियों को चकनाचूर कर दिया‌।
  मैं घटनास्थल पर पहुंचने वाले कुछेक पत्रकारों में से एक था‌।
   मैंने वहां जो देखा था, उसके बारे में सोचकर अब भी सिहर जाता हूं. वहां चारों ओर खून, मांस और लाशें फैली थीं. वैसा मंज़र तब मैंने पहली बार देखा था‌।
और सब बर्बाद हो गया. बाद में हमें समझ में आया कि अफ़ग़ान और विदेशी सुरक्षा बलों के साथ निहत्थे नागरिकों के खिलाफ़ शहर के बीचोबीच ट्रक बमों और आत्मघाती धमाकों से हमला, संघर्ष के एक बहुत ही क्रूर अध्याय की शुरुआत के प्रतीक होंगे. इसके जवाब में, अमेरिका ने हवाई हमले बढ़ा दिए. उसके बाद, तालिबान को लक्ष्य बनाते हुए गांवों में होने वाली शादियों और अंतिम यात्राओं पर भी हवाई हमले होने लगे.
आम अफ़ग़ानी आसमान देखकर भी डरने लगे. ख़ुद को प्रसन्न रखने के लिए सूर्योदय, सूर्यास्त या तारों को देखने के दिन लद गए.
एक बार कंधार शहर के क़रीब, हरी-भरी अरगंडब नदी घाटी की यात्रा पर, मैं देश के सबसे प्रसिद्ध अनारों को देखने को बेचैन था‌।
 लेकिन जब मैं वहां पहुंचा तो पाया कि वहां अनार की बजाय लोगों का ख़ून बह रहा था‌।
  मैंने जो देखा था‌। वह देश के गांवों में जो हो रहा था, उसकी एक छोटी सी झलक थी‌।




अमेरिका और तालिबान में फिर हुई बमबारी


तालिबान अपने लड़ाकों को घाटी में धकेलने को बेताब था, लेकिन सरकारी बल उन्हें पीछे धकेलने की हरसंभव कोशिश कर रहे थे‌। इलाके पर दोनों पक्षों का नियंत्रण आगे-पीछे होता रहा‌।
इस माहौल में आम अफ़ग़ानी फंस गए थे‌।
उस दिन मैंने 33 अलग-अलग हवाई हमलों की गिनती की थी. इसके जवाब में, तालिबान के शुरू किए गए आत्मघाती कार बम हमलों की गिनती करनी मैंने छोड़ दी. घर, पुल और बाग़ सभी नष्ट हो गए.
अमेरिका के कई हवाई हमले तो ग़लत खुफ़िया जानकारी के आधार पर किए गए. ऐसी सूचनाएं किसी ऐसे इंसान ने दिए थे, जो गांव में अपनी निजी लड़ाई या भूमि विवाद को सुलझाना चाहता था. जमीन पर मौजूद सुरक्षा बलों और आम अफ़ग़ानों के बीच बढ़ रही भरोसे की कमी का यह मतलब था कि अमेरिकी सेना झूठ का सहारा लेकर सच नहीं बता सकती थी. तालिबान ने इन हमलों का इस्तेमाल अफ़ग़ानों को उनकी ही सरकार के खिलाफ करने के लिए किया. यह स्थिति उनके भर्ती अभियान के लिए उपजाऊ जमीन तैयार कर दी.
2001 से 2010 के बीच, अफ़ग़ानिस्तान की 9/11 पीढ़ी यानी भारत, मलेशिया, अमेरिका और यूरोप पढ़ने गए युवा अफ़ग़ानी, देश के पुनर्निर्माण के प्रयास में शामिल होने को अपने वतन लौट आए थे. इस नई पीढ़ी को एक महान राष्ट्रीय कायाकल्प कार्यक्रम का हिस्सा बनने की उम्मीद थी. इसकी बजाय, उन्होंने ख़ुद को नई चुनौतियों से घिरा पाया. वे देख रहे थे कि देश में अमेरिका द्वारा तैयार किए गए नए सरदार उभर आए थे. और उनके बीच घोर भ्रष्टाचार मौजूद था. जब किसी देश की वास्तविक दशा उसके आदर्शों से बहुत दूर चली जाती है, तो रोजमर्रा की व्यावहारिकता ही इंसान की मुख्य संचालक बन जाती है. अब देश में माफ़ी की संस्कृति प्रचलित होने लगी थी‌।



अफगानिस्तान के खूबसूरती का नजारा है मायावी


इसकी खूबसूरत घाटियां, नुकीली चोटियां, घुमावदार नदियों और छोटी बस्तियों का नज़ारा बेहद आम है. लेकिन इससे जो शांति देने वाली तस्वीर उभरती है, वाकई में इससे आम अफगानों को कोई शांति नहीं मिलती. आप अपने घर में सुरक्षा के बिना शांति नहीं पा सकते.
क़रीब चार साल पहले मैं वर्दाक प्रांत के एक छोटे से गांव में एक शादी में गया था. जब रात हुई और लोग इकट्ठे हुए तो बिल्कुल खुले आसमान के नीचे खाने लगे. अचानक ड्रोन और विमानों की आवाज से पूरा आसमान गूंज उठा. ज़ाहिर सी बात है कि पास में एक ऑपरेशन चल रहा था. इस शोरगुल ने शादी के जश्न को क़यामत के माहौल में बदल डाला था।
उस रोज़ मैंने बाद में, खुद को एक तालिबानी लड़ाके के पिता के साथ काबुली पुलाव, रोटी और गोश्त बांटते हुए पाया. उन्होंने हेलमंद में अपने बेटे की हत्या के बारे में विस्तार से बताया. उनका बेटा तब केवल 25 का था और अपने पीछे एक विधवा और दो छोटे बच्चों को छोड़ गया था।
मैं तब अवाक रह गया, जब उसके पिता ने उदासी भरे गर्व के साथ बताया था कि वह भले एक मामूली किसान है, पर उसका बेटा प्रतिभाशाली लड़ाका था, जो अलग जीवन के लिए लड़ने में विश्वास करता था. मैं उस बूढ़े शख़्स के चेहरे पर केवल दर्द और उदासी देख सकता था. तालिबान के नियंत्रण में, शादियों में भी संगीत की अनुमति नहीं थी. इसकी बजाय, गांव वालों की सभी बैठकें ऐसी ही दुखद कहानियों से भरी हुई थीं.
लोग अक्सर तालिबान को ख़त्म करने की चाह में इंसानी कीमत को नज़रअंदाज़ कर देते हैं. देश में विधवा औरतों, अपने बेटों को खोने वाले पिताओं और युद्ध में अपंग हो चुके युवाओं की भरमार हो गई.
जब मैंने तालिबानी लड़ाके के पिता से पूछा कि वे क्या चाहते हैं, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने कहा, "मैं लड़ाई का अंत चाहता हूं. अब बहुत हो गया. मैं एक बेटे को खोने का दर्द जानता हूं. अब अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रक्रिया शुरू करने और युद्धविराम लगाने की जरूरत है."

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सपने में भी नहीं सोचा काबुल पर भी कब्जा कर लेगा तालिबान


हमने बीते कुछ हफ़्तों में अपनी प्रांतीय राजधानियों को तालिबान के हवाले कर दिया. सुरक्षा बलों ने बिना लड़ाई किए आत्मसमर्पण कर दिया. हालांकि मैंने नहीं सोचा था कि वे काबुल में घुसकर शहर पर कब्जा कर लेंगे.
काबुल पर क़ब़्जा होने के एक रात पहले, जिन अधिकारियों से मेरी बात हुई थी, वे तब सोच रहे थे कि वे अमेरिकी हवाई हमलों की मदद से कब्ज़ा बनाए रख सकते हैं. वे कह रहे थे कि एक समावेशी सरकार बनाने के लिए सत्ता के शांतिपूर्ण परिवर्तन की बात चल रही है. लेकिन तभी पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी हेलीकॉप्टर से काबुल छोड़कर चले गए. और अचानक से तालिबान काबुल में आ गए. डर हवा में घूम रहा था कि तभी तालिबान को वापस आता देखकर सब बहुत डर गए.


तब मुझे बताया गया कि मेरी जान को ख़तरा है.


मैंने अपने कपड़े लिए. उसके बाद मुझे अपनी पत्नी, बेटी और माता-पिता के साथ एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया. एक ऐसा शहर, जिसके चप्पे-चप्पे से मैं वाकिफ़ था और अब यकीन नहीं हो रहा था कि वहां की कोई भी जगह मेरे लिए सुरक्षित नहीं थी.
मैंने अपनी बेटी सोला, जिसका अर्थ 'शांति' होता है, के बारे में सोचा. यह सोचना बहुत दर्दनाक था कि हम उसके जिस भविष्य की आशा कर रहे थे, वो अब बर्बाद हो गया है. मैं जैसे ही हवाई अड्डे के लिए निकला, मुझे याद आया कि मैं अपने जीवन में दूसरी बार अफ़ग़ानिस्तान छोड़ रहा हूं. वहां लौटने के बाद सालों किए काम की यादें मुझे अभिभूत कर गईं. मुझे अपनी यात्राएं याद आईं, जो मैंने अधिकारियों के साथ या एक पत्रकार के रूप में की थीं.
फिर मैंने काबुल में देखा कि तमाम लोग और परिवार भागने के लिए कतार में खड़े हैं. अफ़ग़ानों की एक पीढ़ी अपने सपनों और आकांक्षाओं को दफ़न कर रही है.
इस बार मैं वहां कोई स्टोरी कवर करने के लिए नहीं गया था. मैं भी उन्हीं की तरह देश छोड़ने जा रहा था.


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