Tuesday, November 22, 2022

mewat history मेवात में घूमने के लिए 5 Best अच्छी जगह

 

आज की यात्रा सूरू करते हैं जयपुर 2 मेवात तक चाहे आप राजपूतों के इतिहास में रुचि रखते हों या mewat history अरावली पहाड़ों के दृश्य में, राजस्थान राज्य में देश में घूमने के लिए कुछ बेहतरीन स्थान हैं। जयपुर, या गुलाबी शहर, राजस्थान राज्य की राजधानी है और अपनी यात्रा शुरू करने के लिए एक शानदार जगह है। जयपुर को इसकी इमारतों की प्रमुख रंग योजना के कारण गुलाबी शहर के रूप में भी जाना जाता है। 

जयपुर पश्चिमी भारतीय राज्य राजस्थान के जयपुर क्षेत्र में भी स्थित है। जयपुर शहर पुलिस विभाग राजस्थान राज्य के राज्य विभाग द्वारा प्रशासित है। जयपुर भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और स्वर्ण त्रिभुज का हिस्सा है।

जयपुर कई आश्चर्यजनक वास्तुशिल्प संरचनाओं का घर है, जिनमें तीन किले, कई मंदिर और आश्चर्यजनक सिटी पैलेस शामिल हैं। हजारों मंदिरों के कारण वाराणसी को "मंदिरों का शहर" कहा जाता है। 400 साल पहले निर्मित, स्वर्ण मंदिर वास्तव में सुनहरा है और हमेशा पूरे देश और दुनिया के बाकी हिस्सों से आने वाले सिखों से भरा होता है। 

mewat history अब हम मेवात के नूंह शहर से अपनी यात्रा सूरू करते हैं  । अपनी अद्भुत मीनारों, राजपूत और मुस्लिम वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध शेख मूसा के मकबरे पर जाएँ। शेख मूसा का मकबरा नूंह क्षेत्र में एक और शानदार आकर्षण है जिसे हम चूक गए क्योंकि हमारे अन्वेषण के तरीके ने भीषण गर्मी में पीछे की सीट ले ली। इसका इतिहास और खूबसूरती देखने के लायक है, अगर आप नूंह शहर आ रहे हैं, तो एक बार मूसा के मकबरा पै जरूर जाएं।

 

चूयमल तालाब Chuimal Taalab Ka Itihaas mewat history

Chuimal Taalab Ka Itihaas


नूंह की हमारी यात्रा का अगला पड़ाव चुय मल (Chuimal Taalab) का तालाब था (जिसे चुय मल सेनोटाफ या चुय मल तालाब के नाम से भी जाना जाता है)। चुई मल तालाब वास्तव में बहुत सुंदर है (यहां तक     कि कचरा और शैवाल तैरते हुए भी) और यदि आप नुह क्षेत्र में हों तो यह देखने लायक है। चुय मल का तालाब हरियाणा के मेवात जिले के नुखा में स्थित कब्रों वाला एक पत्थर का तालाब है। इसका इतिहास सेठ चूयमल ने लोगों की प्यास बुझाने के लिए बनाया था। ईस तलाब को आज 500 साल के आसपास हो चुके हैं। ईसमें Shiv Temple, Hanuman Mandir, भी मोजूद है। इस तालाब के पास ही एक भव्य छतरी बनी हुई है, जिसे सेठ चूहीमल के देहांत के बाद उसके पुत्र स्वर्गीय सेठ हुकम चंद ने उनकी याद में बनवाया इस छतरी पर दुर्लभ मीनाकारी चित्रित की गई है। इसके अतिरिक्त इस तालाब के साथ मंदिर का निर्माण कराया गया था जिसमें शिव, हनुमान और दुर्गामां की मूर्तियां स्थापित हैं। इस तालाब के मालिक और सरकार की उपेक्षा के चलते यह ऐतिहासिक c huimal taalab तालाब अब खण्डहर हो रहा है। कस्बे के लोग इसमें कपड़े धोते हैं। अब यह तालाब बदहाल हो चुका है। नूंह के नन्हे, अक्षय कुमार, साकिर आदि लोगों का कहना है कि अगर सरकार इस तालाब को अपने कब्जे में लेकर इसको विकसित करे तो यह खूबसूरत पर्यटन स्थल बन सकता है। ग्रामीणों ने बताया कि सेठ चूहीमल की हवेली से एक सुरंग सीधी तालाब तक आती है। बताया जाता है कि उस दौरान सेठानी इस सुरंग के जरिये स्नान करने आती थी। इस बात की तसदीक सेठ चूड़ीमल की सातवीं पीढ़ी के वंशज वेद प्रकाश करते हैं। उन्होंने बताया कि जब वह छोटे थे, उस समय उनके पिता ने यह सुरंग का दरवाजा बंद करा दिया था। उनका कहना है कि इस सुरंग में पानी भरा रहता था और सांप व अन्य जानवरों के घर में घुसने का खतरा बना रहता था। 

नूंह हरियाणा के मेवात जिले में स्थित है, जो कई स्मारकों और स्थलों वाला एक शहर है, जो इसे एक दिलचस्प दिन की यात्रा बनाता है। हरियाणा के नूंह क्षेत्र में करने के लिए चीजों की एक त्वरित ऑनलाइन खोज और नूंह क्षेत्र में मुख्य आकर्षण एक सुंदर मंदिर द्वार और पृष्ठभूमि में अरावली के साथ एक सुंदर तालाब बन गया। हरियाणा के नूंह जिले में सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक mewat history सदियों  पुराना शिव मंदिर है, जहां पांडव पांडव के निर्वासन के दौरान रुके थे। VIDEO

 

Firozpur Jhirka का इतिहास क्या है mewat history

हमारी यात्रा का अगला पड़ाव है। फिरोजपुर झिरका। राजधानी दिल्ली से 110 और गुडग़ांव से लगभग 70 और नूंह से 40 किलोमीटर की दूरी पर मेवात के कस्बा फिरोजपुर झिरका की अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित प्राचीन शिव मंदिर का अनूठा इतिहास है। मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस रमणीक स्थल पर पूजा-अर्चना कर शिवलिंग की स्थापना की थी। 

 


अनूठा है इस प्राचीन मंदिर का इतिहास, जानिए कैसे बना था शिवलिंग mewat history

mewat history मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान इस रमणीक स्थल पर पूजा-अर्चना कर शिवलिंग की स्थापना की थी। तभी से यह जगह तपोभूमि के रूप में विख्यात है। इस पांडवकालीन मंदिर में वर्ष में दो बार शिव रात्रि पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश सहित दिल्ली से बहुत अधिक संख्या में शिव भक्त यहां आते हैं। िव मंदिर के बारे में अनेक कहावतें भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि यहां पवित्र गुफा में शिव लिंग के दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के दुखों का निवारण हो जाता है। यहां की पर्वत मालाओं से बहते प्राकृतिक झरने में स्नान करने से सभी तरह के चर्म रोग भी दूर हो जाते हैं। इसके अलावा शिव लिंग पर जलाभिषेक करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की हरियाली सैलानियों व भक्तों का मन मोह लेता है। वहीं, कल-कल की ध्वनि के साथ बहता प्राकृतिक झरना असीम शांति देता है।

mewat history सन् 1846 के तत्कालीन तहसीलदार जीवन लाल शर्मा को अरावली की पर्वत श्रृंखलाओं में शिव लिंग का सपना आया था। इसका अनुसरण करते हुए तहसीलदार ने पवित्र शिवलिंग खोज निकाला। इसके बाद उस स्थान पर पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई। धीरे-धीरे श्रद्धालुओं का जमघट लगना शुरू हो गया। यहां शिव रात्रि के मौके पर मेले में श्रद्धालु नीलकंठ, गौमुख व हरिद्वार से पवित्र कांवड़ लेकर यहां आते हैं। इसके अलावा क्षेत्र की नवविवाहित महिलाएं पुत्र प्राप्ति के लिए शिव लिंग पर दोघड़ चढ़ाती हैं।

शिव मंदिर विकास समिति के अध्यक्ष अनिल गोयल के मुताबिक यहां आने वाले श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हैं। वर्ष भर इस धार्मिक स्थल पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि शिव रात्रि पर भोले भंडारी किसी न किसी रूप में अपने भक्तों को अवश्य दर्शन देते हैं। आस्था-प्राचीन समय से यहां एक कदम का वृक्ष है। मान्यता है कि इसपर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए जो सच्चे मन से रिबन, धागा बांधता है, उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने पर भक्तजन यहां मंदिर परिसर में भंडारा करते हैं। दूर तक पेट के बल बच्चे, महिलाएं व पुरुष (दंडोती) लगा कर अपनी मन्नतें मांगते हैं। mewat history मंदिर के महंत मौनी बाबा के नाम से विख्यात हैं, जिन्होंने लगातार 12 वर्ष तक मौन व्रत रख कठोर तपस्या की थी।

 

Shah Chokha Ki Dargah शाह चोखा की दरगाह 

Shah Chokha Ki Dargah शाह चोखा की दरगाह


नूंह: जिले के कस्बा पिनगवां से सटे गांव खोरी शाह चोखा के पहाड़ की चोटी में बनी वर्षों पुरानी दादा चौखा की दरगाह अपने आप में अनूठा mewat history समेटे हुए है. मेवात में ना जाने कितने किस्से हैं,  जिसने भारत के इतिहास को अहम किरदार दिए।  ऐसे ही कुछ किस्सों  और इतिहास को ढूंढते हुए हिंदी मेवाती मैं हम आ गए हैं विभाग के एक छोटे से गांव शाह चोखा में। इस गांव में 500 साल पूरानी दादा चौखा शाह की मजार है। यह मजार इतनी ऐतिहासिक है के यहां बड़े-बड़े लोग दूर-दूर से आते हैं। इस मजार के बारे में हमने यहां सुना था के बादशाह अकबर भी यहां अक्सर आया जाया करते थे, और यहीं उन्होंने मन्नत मांगी थी, अपने बेटे के लिए। old mewat history

बड़कली-पुन्हाना मार्ग पर बसा शाह चौखा गांव की ये मजार सैकड़ों फीट ऊंचाई पर बनी है. इलाके में हिन्दू-मुस्लिम के साथ सभी धर्मों के लोग यहां मुराद मांगने और चादर चढ़ाने आते हैं. इस दुर्गम जगह पर बनी शाह चौखा की मजार के पीछे भी एक कहानी है. गांव वाले बताते हैं कि 500 साल पहले जब दादा शाह चौखा इसी जगह पहाड़ पर बैठे थे, तो कुछ लोग उनसे पूछने लगे कि आप कौन हो..? कहां से आये हो..? शाह चौखा ने उनसे बात की तो ग्रामीण उनसे संतुष्ट हुए और गांव में लोगों को बताया कि पहाड़ पर चोखो आदमी है, यानी बढ़िया शख्सियत है। उसी दिन से उनका नाम दादा शाह चौखा पड़ गया।

 

Shad Ki Bethak साद की बैठक का इतिहास

Shad Ki Bethak साद की बैठक का इतिहास


दिल्ली से 125 और फिरोजपुर झिरका से 15 किलोमीटर दूर इब्राहिम बास में मौजूद है साद की बैठक। साद वैसे तो ज्यादा mewat history हमें कहीं मिला भी नहीं है। जब ग्रामीणों से हमने इनके बारे में जानकारी इकट्ठी की, तो उन्होंने बताया के 600 साल पहले mewat history 15 छोटे-छोटे कबीले हुआ करते थे जो आज तो एक बड़े गांव का रूप ले चुके हैं। 15 कबीले के सरदार का नाम था साद। लेकिन इन 15 कबीलो मैं सबसे अलग बात यह थी, कि यह अरावली पर्वत की संख्या, यानी जो अरावली का पहाड़ है।  7 कबीले एक् साइड हैं तो 8 कबीले दूसरी साइड हैं। सरदार साद को एक कबीले से दूसरे कबीले मैं जाने के लिए 20 से 30 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता था। जो बहुत मुश्किल भरा कार्य हुआ था। बाद में फिर सरदार ने खुद अरावली के पर्वत पर एक ऐसी बैठक बनाई जो बहुत ही भव्य और खूबसूरत थी, इसके लिए उन्होंने पहाड़ के दोनों साइड।  ऊपर तक सीढ़ी बना डाली थी। जो आज तक भी मौजूद है। इन सीडीओ की खास बात यह है। इनके ऊपर से आज भी ऊंट घोड़े हाथी या कोई भी आप भारी-भरकम सामान अपने सर के ऊपर रखकर ले जा सकते हैं आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप सीढ़ियों के ऊपर चल रहे हैं क्योंकि इनको डिजाइन इस तरीके से किया गया है। अगर आप फिरोजपुर के साइड आ रहे हैं तो आपको साद की बैठक ( Shad Ki Bethak )जरूर देखनी चाहिए।


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