आज के इस पोस्ट में हम बात करेंगे history of timur in hindi ग्रेट महान चंगेज खान के वंशज history of timur के बारे में तैमूर चंगेज खान का वंशज था या नही. उसी के तरीके को अपनाकर उन्होंने भी एशिया मध्य एशिया और कुछ यूरोप को हिस्से को भी जीत लिया था. इनमें शामिल था तैमूर का भारत आक्रमण।
लेकिन पोस्ट में आगे बढ़ने से पहले हमें तैमूर के बारे में जानना होगा। परिचय तैमूर का जन्म 1336 ईस्वी में ट्रांस -ऑकिसयाना (Transoxiana) प्रदेश के कैच या शहरे शब्ज नामक स्थान पर हुआ था। जो आज उज्बेकिस्तान में है। इसके पिता का नाम अमीर तूगई था जो तुर्कों की चुगताई शाखा प्रमुख था।
तैमूर एक एक बहुत प्रतिभावान और महत्व काशी व्यक्ति था वह महान चंगेज खान और ग्रेट सिकंदर की तरह पूरी दुनिया फतेह करने की इच्छा भी रखता था। अपनी इस दिग्विजय के लिए उसने मध्य एशिया यूरोप और भारत पर भी आक्रमण किया। पर हम यहां history of timur in hindi विजय के बारे में अभी ज्यादा बात ना करते हुए यहां हम बात करेंगे तैमूर का भारत आक्रमण।
तैमूर का कबीला समरकंद के आसपास के क्षेत्र पर वह शासन करता था। बाल्यावस्था में तैमूर की शिक्षा की समुचित व्यवस्था भी की गई थी उसे अरबी, फारसी, के अलावा अन्य भाषाओं की शिक्षा दी गई थी। साथ-साथ ही उसे युद्ध कलाओं में जैसे तलवार चलाना भला चलाना और तीर कमान आदि चलाने के साथ-साथ उसे शासन व्यवस्था चलाने की भी शिक्षा दी गई थी।
33 वर्ष की आयु में सन 1369 ईस्वी में अपने पिता की मृत्यु के बाद वह समरकंद का शासक बन गया। वह एक कुशल सैनिक तथा महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। कहां जाता है कि एक बार शत्रु से बचने के प्रयास में उसकी एक टांग टूट गई थी जिसके कारण वह हमेशा लंगड़ा कर चलने लगा था। यह भी कहा जाता है कि उसके क्रूर होने का यह भी एक बड़ा कारण था।
history of timur in hindi साम्राज्य वृद्धि करना
तैमूर को जब समरकंद का स्वामी बनाया गया तो उसने भी बाकी और राजाओं की तरह अपने राज्य में बढ़ोतरी करनी चाही। वैसे भी तैमूर ग्रेट चंगेज़ खान और ग्रेट सिकंदर को अपना आदर्श मानता था. ऐसे में यह जाहिर है कि वह अपने साम्राज्य में वृद्धि करता हि। समरकंद का स्वामी बनते ही उसने ट्रांस -ऑकिसयाना, को तो जीत ही इसके अलावा तुर्किस्तान, अफगानिस्तान, फारस, सीरिया, कुर्दिस्तान, और एशिया माइनर का कुछ भाग जीत लिया।
इतनी बड़ी विशाल सल्तनत उसने सिर्फ 7 साल में बना ली थी यह उसने 1380 से 1387 तक जीत लिए थे। थोड़े समय में इतनी बड़ी विशाल सल्तनत बनाना कोई छोटी बात नहीं है। तैमूर एक अत्यंत महत्वाकांक्षी व्यक्त था और इसी वजह से उसने भारत पर आक्रमण करने के बारे में भी मन बनाया लेकिन history of timur के अनुसार शुरुआत में इसको वह पूरा नहीं कर सका।
1393 में उसने बगदाद की ओर रुक किया और उसे भी जीत लिया। इसके अलावा, मेसोपोटामिया पर अधिपत्य स्थापित किया। जब इतनी विजय तैमूर ने हासिल कर ली तब उसने पक्का निश्चित कर लिया कि अब भारत पर आक्रमण किया जाए।
भारत पर तैमूर का आक्रमण (1398 ई.
history of timur in hindi के तहत भारत आक्रमण के पीछे दो कारण बताए जाते हैं कहा जाता है कि एक तो था भारत की अपार संपत्ति को लूटना। और दूसरी थी भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार करना। भारत के ज्यादातर इतिहासकार इसी को लिखते हैं पर वर्ल्ड वाइड हिस्ट्री एक बार स्पष्ट करती है कि उसका इस्लाम का प्रचार करने का तो बिल्कुल भी मकसद नहीं था। हम दुनिया के इतिहासकारों ने जो तैमूर के बारे में लिखा है उनको भी हम आगे चलकर जरूर दिखाएंगे।
हां यह बात सही है कि उसने कत्ले आम किया एक-एक समय में एक एक लाख गुलामों के सर कलम कर दिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वह इस्लाम धर्म का प्रचार करने में लगा था। उसने इस तरह की कुरूर्ता हर किसी के लिए अपनाई थी।
तैमूर ने 1398 में पहले अपने पोते पीर मोहम्मद को भारत पर आक्रमण के लिए भेजा था। पर उसको ज्यादा सफलता नहीं मिली। अप्रैल 98 में तैमूर खुद एक बड़ी फौज लेकर भारत के लिए रवाना हुआ सितंबर में उसने झेलम सिंधु और रवि नदी को पार कर लिया था। अक्टूबर में उसने मुल्तान से 70 मील दूर उत्तर 25 में तुलुंबा नगर पहुँचे उस पर आक्रमण किया और उसे पूरी तरीके से नष्ट कर दिया जिस तरीके से चंगेज खान क्या करते थे।
इसके बाद तैमूर बैनर नगर पहुंचा उसको भी उसने बुरी तरह लूटा और नष्ट कर दिया फिर इसी तरह रास्ते में उसने बहुत सारे शहरों को लूट और लोगों का कत्ल आम करता हुआ दिल्ली तक आ पहुंचा उसे समय दिल्ली पर तुगलक वंश का शासन था। फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत काफी मजबूती लेकिन उसके बाद दिल्ली सल्तनत काफी कमजोर से पड़ गई थी और यह भी एक बड़ी वजह थी तैमूर का भारत पर आक्रमण करने की। जब तक फिरोज शाह तुगलक थे तब तक तैमूर की हिम्मत नहीं थी क्योंकि फिरोज शाह तुगलक भी एक प्रतिवान और महत्व काशी शासक था।
तैमूर का भारत आक्रमण दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध अभियान।
14वीं शताब्दी के शुरुआत में तुगलक वंश की दिल्ली सल्तनत में स्थापना हुई 1320 ई में दिल्ली सल्तनत में तुलग्नक वंश अस्तित्व में आया था। लेकिन फिर वही चौधरी शताब्दी के अंत तक इसका पतन भी हो गया। अधिकांश प्रांतीय गवर्नरों ने अपनी स्वतंत्रता का दावा पेश किया और सल्तनत अपनी पूर्व सीमा से केवल एक हिस्से तक ही सीमित कर रह गई थी।
यह एक बड़ा कारण था. history of timur in hindi का ध्यान आकर्षण करने के लिए दिल्ली की तरफ। 1398 में सुल्तान नसरुद्दीन मोहम्मद शाह तुगलक के शासनकाल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया था. तैमूर में। 1398 को तैमूर ने 90000 की एक विशाल सी लेकर सिंधु घाटी को पार करते हुए भारत में जो भी शहर उसे मिला उन सभी को वह लुटाता आया और नष्ट करता आया यहां तक जिसने भी उसके खिलाफ आवाज उठाई उसको तो उसने बिल्कुल जड़ से मिटा दिया।
इतना होने के बाद जब तैमूर दिल्ली के लिए और आगे बढ़ा तो उसे समय उनका सामना जाट किसानों द्वारा विरोध किया गया जाट किसानों का काम था. जो कारवां उनके जंगल से गुजरा उनको लुटते और फिर जंगल में गायब हो जाते हैं। वही काम उन्होंने तैमूर के साथ भी किया. लेकिन यह गलती उनके लिए भारी पड़ गई history of timur in hindi ने हजारों जाटों को मरवा दिया क्यों को बंदी बना लिया गया।
history of timur in hindi दिल्ली पर कब्जा
सुल्तान नसरुद्दीन महमूद साहब तुगलक को जब यह पता चला कि तैमूर दिल्ली में घुसने को तैयार है तो उसने अपनी सेना को तैयार किया और पानीपत के मैदान में फिर से पहुंच गया. दिल्लीदिल्ली आने के लिए यह पानीपत का ही रास्ता था। history of timur in hindi में मोजूद है मोहम्मद शाह तुगलक और मालू इकबाल की सेना के पास युद्ध के हाथी थे और वह काफी खूंखार थे. साही हाथी भी खूंखार माना करते थे, जिनकी वजह से उनको जंजीर से बाँध कर रखे जाते थे।
इन हाथियों के दांत में जहर भी लगा होता था. history of timur in hindi इन हाथियों से तैमूर की सेना काफी डरी हुई थी। इसी वजह से तैमूर के पास लगभग जो 1 लाख के आसपास कैदी थे इन सभी को उसने कत्ल करवा दिया। history of timur in hindi के मुताबिक इसके पीछे दो कारण थे, एक तो था मोहम्मद शाह तुगलक और मल्लू इकबाल की सेना में खूंखार हाथी, जिनसे उनकी सेवा पहले ही डरी हुई थी। दूसरा डर तैमूर को यह भी था कहीं यह कैदी विद्रोह ना कर दें जंग के बीच में जिससे उनके लिए और समस्या खड़ी हो जाती।
इस कटले आम में खास बात यह है जो लोग कहते हैं कि एक लाख हिंदुओं का कत्ल किया वोह यह नही बताते उनमें मुस्लिम लोग भी थे। और जब आगे इस आर्टिकल को आप पढ़ेगे तो आप और जान जाएंगे कि मुसलमानों का भी उसने कटले आम किया था इसके साथ-साथ मंगोल का भी किया था।
तैमूर ने एक चाल चली उसने एक खाई खुदवाई अपने आदमियों के ठिकाने के सामने। फिर उसने अपने ऊँटो पर लकड़ी और घास ला दी इतनी लड़ी जितनी वह ले जा सकते थे। 17 दिसंबर 1998 को जब युद्ध शुरू हुआ तो पहले मोहम्मद शाह तुगलक और मल्लू इकबाल की सेना भारी पड़ रही थी, क्योंकि उनके हाथी काबू में नहीं आ रहे थे तैमूर की सेना के। तैमूर ने जब देखा तो उसने ऊँटो पर लगी लकड़ी और घास में आग लगवा दी और लोहे की छड़ियों से उन ऊँटो को उकसाया जिससे उन्हें काफी दर्द हुआ और बहुत दर्द से चिल्लाते हुए हाथियों पर हमला करने लगे।
तैमूर यह बात अच्छी तरह से जानता था की हाथी आसानी से घबरा जाते हैं. ऊँटो के सीधे अपनी और आने और उनकी पीठ में लपेट निकालने के अजीब नजारे देखकर हाथी पलट गए और अपनी ही सेना को कुचलते हुए बाहर निकल आए। यह मौका पाकर तैमूर की सेना भी टूट पड़ी और मोहम्मद साहब तुगलक की सेवा को बुरी तरह प्राप्त कर दिया। history of timur in hindi के इतिहास के हिसाब ये इतिहास का भयंकर युद्ध था जो कुछ ही घंटोंमें ख़तम हो गया.
तैमूर का आक्रमण दिल्ली पर कब्जा
पानीपत में महमूद शाह तुगलक और मालू इकबाल की सेना को परस्त कर वह दिल्ली की तरफ चला। मोहम्मद शाह तुगलक गुजरात की ओर चुप कर भाग गया. मल्लू इकबाल राजस्थान की और भाग गया था। दिल्ली पहुंचकर उसने इस नगर को काफी बुरी तरीके से लूट और खंडहर में बदल दिया साथ ही आबादी को उसने गुलाम बना लिया।
जब इस तरह शहर की हालत हो गई तो तुर्क के लोगों ने मंगोल के खिलाफ इसके नागरिकों द्वारा विद्रोह शुरू हो गया. जिसमें शहर की दीवारों के भीतर जवाबी खूनी नंदसंहार हुआ. तैमूर ने भी अपने सैनिकों को खुली छूट दी जिसको चाहे मार दो काट दो जो आवाज उठा उसका सर कलम कर दो। उस समय दिल्इली की ज्सयादा आबादी मुस्लिम की थी. इस बात का तो history of timur in hindi गवाह है दिल्ली को तैमूर के सिपाहियों ने इतना लूट के उसका एक भी सिपाही गरीब ना रहा।
यहां एक और खास बात है जिस समय तेमूर ने हिंदुस्तान को लूटा उस समय दिल्ली दुनिया का सबसे अमीर शहर हुआ करता था। दिल्ली शहर पर कब्जा करना तैमूर की सबसे विनाशकारी जीत कही जाती है। ऐसा नहीं है कि उसने नरसंहार और जगह नहीं किया लेकिन यहां दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में तो सबसे ज्यादा किया था।
तैमूर का परिचय
history of timur in hindi का भारत आक्रमण तो आपने जान लिया है अब यह भी जान लीजिए कि तैमूर कौन था। यह बिल्कुल भी सच नहीं है कि तैमूर एक मुसलमान था और यह भी सच नहीं है कि तैमूर चंगेज खान का वंशज था। भारतीय इतिहास कार ऐसा ही लिखते हैं बल्कि खुद उनके इतिहासकार उसको ना चंगेज खान के वंसज मानते हैं ना मुसलमान मानते हैं. और भारत के इतिहासकार उसको मुसलमान मानने पर लगे हुए हैं।
यह बात बिल्कुल सही है कि उसका नाम तैमूर था। तैमूर का 'अर्थ' चगताई भाषा में 'लोहा' है जो उसकी मृत भाषा है। इस बात का भी अभी संदेह है कि उसका जन्म 1336 में हुआ उसके जीवन काल के अधिकांश स्रोत उम्र देते हैं जो 1320 के दशक के अंत में जन्मतिथि की और इशारा करते हैं। तैमूर के पिता तारागाई जो इस जनजाति के एक छोटे कुलीन के रूप में वर्णित किया गया था।
भारतीय इतिहासकार जिस वजह से तैमूर को मुसलमान मानते हैं इसकी वजह एक यह भी है. अपनी विजय को वैध बनाने के लिए, तैमूर ने इस्लामी प्रतीकों और भाषा पर भरोसा किया, खुद को "इस्लाम की तलवार" के रूप में पेश किया. पर यहां एक बात और बता दे तैमूर के बारे में कहा जाता है कि उसकी मां चंगेज खान की वंशज में थी. खुद तैमूर तुर्किक काबिले का. जिससे कई अभिलेखों में इस बात को साफ किया गया है. इस वजह से तैमूर तुर्किक और मंगोल दोनों वंशों का था. history of timur in hindi इसको सही मानती है.
जन्म और परिवारिक पृष्ठभूमि
तैमूर का जन्म 1336 ईस्वी में "कैश" या "शहरे-शब्ज़" नामक स्थान पर हुआ, जो आज के आधुनिक उज़्बेकिस्तान में स्थित है। यह क्षेत्र उस समय "ट्रांस-ऑक्सियाना" (Transoxiana) कहलाता था। उसके पिता का नाम अमीर तराघाई था, जो चुगताई तुर्क मंगोल जनजाति का एक प्रमुख था।
हालाँकि उसका परिवार बहुत बड़ा शासक नहीं था, लेकिन समाज में उनकी स्थिति मजबूत थी। तैमूर बचपन से ही अलग सोच रखने वाला बच्चा था। उसने जल्दी ही यह ठान लिया था कि वह केवल एक जनजाति प्रमुख का बेटा बनकर नहीं रहेगा, बल्कि पूरी दुनिया को जीतने की कोशिश करेगा। कहा जाता है कि उसका नाम "तैमूर" चगताई भाषा के शब्द "लोहे" (Iron) से लिया गया था। यही कारण है कि उसे बाद में "लोहे का आदमी" भी कहा गया।
शिक्षा और प्रारंभिक प्रशिक्षण
तैमूर को बचपन से ही एक शासक और योद्धा बनाने की तैयारी कराई गई। उसे अरबी और फ़ारसी जैसी भाषाओं की शिक्षा दी गई। इसके अलावा उसे तीरंदाजी, तलवारबाज़ी और घुड़सवारी का गहन अभ्यास कराया गया। यही नहीं, उसे प्रशासन और राज्य संचालन की भी शिक्षा दी गई, ताकि वह भविष्य में एक बड़ा शासक बन सके।
इतिहासकार लिखते हैं कि तैमूर ने धार्मिक शिक्षा भी ली, लेकिन उसका झुकाव अधिकतर शक्ति और सत्ता की ओर था। उसने चंगेज खान और सिकंदर महान को अपना आदर्श माना। दोनों की तरह विश्व-विजेता बनने की उसकी इच्छा बचपन से ही पनप चुकी थी।
तैमूर की शारीरिक विकलांगता और उसके परिणाम
किशोरावस्था में ही तैमूर एक लड़ाई में घायल हो गया। कहा जाता है कि एक तीर उसकी टांग पर लगा और वह हमेशा के लिए लंगड़ा हो गया। इसी कारण से उसे "तैमूर-ए-लंग" (Timur the Lame) भी कहा जाने लगा, जिससे अंग्रेज़ी में उसका नाम Tamerlane प्रचलित हुआ।
उसकी यह शारीरिक कमजोरी उसके व्यक्तित्व पर गहरा असर डाल गई। कई इतिहासकार मानते हैं कि यही कारण था कि तैमूर में असामान्य क्रूरता और महत्वाकांक्षा आई। वह अपने शत्रुओं पर केवल विजय पाना ही नहीं चाहता था, बल्कि उन्हें इस तरह नष्ट करना चाहता था कि वे कभी उसके खिलाफ न उठ सकें।
तैमूर का अंतिम जीवन और मृत्यु
अंतिम अभियान और चीन की ओर बढ़ना
तैमूर की महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं था। उसने एशिया, मध्य एशिया, फारस, सीरिया, मेसोपोटामिया और भारत तक अपने साम्राज्य को फैला लिया था। लेकिन इसके बाद भी उसकी नजरें चीन पर थीं। उस समय चीन एक विशाल और समृद्ध साम्राज्य था, और तैमूर चाहता था कि उसकी जीत की सूची में चीन भी शामिल हो।
1404 ईस्वी में उसने चीन पर चढ़ाई की तैयारी शुरू की। उसने एक विशाल सेना तैयार की और जनवरी 1405 में चीन के लिए कूच किया। लेकिन यात्रा कठिन थी और मौसम बेहद ठंडा। इस कठिनाई के बीच तैमूर की सेहत बिगड़ गई।
1405 ई. में तैमूर की मृत्यु
तैमूर ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वह चीन की धरती पर कदम रखने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। 19 फरवरी 1405 ई. को ओत्रार (Otrar, कजाकिस्तान) नामक स्थान पर ठंड और बीमारी से उसकी मौत हो गई।
तैमूर की मौत ने उसकी विजय यात्रा को अधूरा छोड़ दिया। उसकी योजनाएँ अधूरी रह गईं और चीन उसकी महत्वाकांक्षा से बाहर ही रह गया।
मौत के बाद साम्राज्य का बंटवारा
तैमूर के बाद उसका साम्राज्य स्थायी नहीं रह सका। उसके बेटे और पोते आपस में सत्ता के लिए लड़ने लगे। धीरे-धीरे उसका साम्राज्य बिखर गया।
हालाँकि, तैमूरिड वंश ने मध्य एशिया और फारस में लंबे समय तक शासन किया। इसी वंश से बाबर निकला, जिसने भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। इस तरह तैमूर की विरासत अप्रत्यक्ष रूप से भारत के भविष्य से जुड़ गई।
तैमूर को लेकर इतिहासकारों की राय
भारतीय इतिहासकारों की दृष्टि
भारतीय इतिहासकार तैमूर को एक निर्दयी और क्रूर विजेता मानते हैं। उन्होंने विशेषकर दिल्ली के नरसंहार का वर्णन करते हुए तैमूर को भारत के सबसे बड़े विध्वंसक आक्रमणकारियों में गिना है।
उनके अनुसार, तैमूर का आक्रमण केवल भारत की दौलत लूटने और आतंक फैलाने के लिए था। धर्म का प्रचार उसका असली उद्देश्य नहीं था।
पश्चिमी इतिहासकारों की राय
पश्चिमी इतिहासकारों की राय थोड़ी मिश्रित है। कुछ ने उसे एक महान रणनीतिकार और सेनापति कहा, जिसने युद्धकला में नए आयाम जोड़े। वहीं कई इतिहासकारों ने उसकी क्रूरता और कत्लेआम की निंदा की।
पश्चिमी लेखों में उसे "Tamerlane the Conqueror" (विजेता) और "Tamerlane the Destroyer" (विनाशक) दोनों नामों से याद किया जाता है।
तैमूर – विजेता या विनाशक?
असल में तैमूर का व्यक्तित्व दो पहलुओं से भरा था। एक तरफ वह एक कुशल सेनापति और महान विजेता था, जिसने अपनी रणनीति और शक्ति से अजेय साम्राज्य बनाए। दूसरी तरफ वह एक निर्दयी विनाशक था, जिसकी सेनाएँ शहरों को खंडहर और आबादी को गुलाम बनाकर छोड़ जाती थीं।
इसलिए इतिहासकार उसे न तो पूरी तरह महान मानते हैं और न ही केवल दुष्ट। वह एक ऐसा शासक था जिसकी महत्वाकांक्षा और क्रूरता ने इतिहास की धारा बदल दी।
निष्कर्ष
तैमूर का इतिहास केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस दौर की हकीकत भी है जब ताकतवर शासक केवल शक्ति और आतंक के बल पर दुनिया पर राज करना चाहते थे।
उसका जन्म 1336 में एक साधारण परिवार में हुआ, लेकिन उसने अपनी महत्वाकांक्षा, युद्धनीति और निर्दयी स्वभाव से दुनिया के बड़े हिस्से को अपने अधीन कर लिया। वह खुद को चंगेज खान का उत्तराधिकारी कहता था, लेकिन असलियत में उसकी पहचान एक ऐसे विजेता के रूप में हुई जिसने आतंक और विनाश को हथियार बनाया।
भारत पर उसका 1398 का आक्रमण भारत के इतिहास में सबसे बड़ा आघात साबित हुआ। दिल्ली की समृद्धि और वैभव को उसने खंडहर में बदल दिया और हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
तैमूर की मौत 1405 ई. में हुई, लेकिन उसकी विरासत उसके वंशजों के जरिए लंबे समय तक जीवित रही। बाबर के रूप में उसकी विरासत भारत तक पहुँची और मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
तैमूर का नाम इतिहास में हमेशा भय और विजय दोनों का प्रतीक बनकर दर्ज रहेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. तैमूर का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
तैमूर का जन्म 1336 ईस्वी में कैश (शहरे-शब्ज़), ट्रांस-ऑक्सियाना (आधुनिक उज्बेकिस्तान) में हुआ था।
2. क्या तैमूर वास्तव में चंगेज खान का वंशज था?
नहीं, तैमूर सीधे तौर पर चंगेज खान का वंशज नहीं था। उसने केवल खुद को वैधता देने के लिए यह दावा किया था।
3. तैमूर ने भारत पर कब आक्रमण किया था?
तैमूर ने भारत पर 1398 ईस्वी में आक्रमण किया और दिल्ली को लूटकर खंडहर बना दिया।
4. तैमूर को 'तैमूर लंग' क्यों कहा जाता था?
युवावस्था में एक युद्ध में उसकी टांग घायल हो गई थी, जिससे वह लंगड़ा कर चलता था। इसी कारण उसे "तैमूर-ए-लंग" यानी "लंगड़ा तैमूर" कहा जाने लगा।
5. तैमूर का साम्राज्य उसके बाद किसके हाथ में गया?
1405 ई. में तैमूर की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य बंट गया। लेकिन उसके वंशजों ने तैमूरिड साम्राज्य चलाया और बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की।