भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में जब हम Mewat Historical Palace और राजस्थान के स्थापत्य को साथ-साथ देखते हैं, तो हमारी यात्रा और भी रोचक हो जाती है। आज की इस यात्रा की शुरुआत हम करेंगे गुलाबी नगरी जयपुर से और धीरे-धीरे बढ़ेंगे मेवात की ओर, जहाँ इतिहास और संस्कृति अपने आप में कई अनकही कहानियाँ समेटे हुए हैं।
जयपुर, राजस्थान की राजधानी, न सिर्फ अपने राजसी किलों और महलों के लिए मशहूर है, बल्कि इसे स्वर्ण त्रिभुज (Golden Triangle) का अहम हिस्सा भी माना जाता है। यहाँ की इमारतों का गुलाबी रंग इसे एक अलग ही पहचान देता है। हवा महल, आमेर किला, सिटी पैलेस और जंतर-मंतर जैसे स्थल हर साल लाखों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
लेकिन हमारी यात्रा यहीं खत्म नहीं होती। Mewat History हमें बताती है कि इस क्षेत्र ने कई राजवंशों, संघर्षों और सांस्कृतिक मेल-जोल का साक्षी बनकर भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को मजबूत किया। मेवात अक्सर अपनी नकारात्मक छवि के कारण सुर्खियों में रहता है, लेकिन सच्चाई यह है कि यहाँ की विरासत बेहद समृद्ध और आकर्षक है।
आज हम इस यात्रा में Top 5 Mewat Historical Place की खोज करेंगे। इनमें शामिल हैं तावडू की प्राचीन धरोहरें, फ़िरोज़पुर झिरका का ऐतिहासिक किला, शाह चौखा दरगाह का रूहानी वातावरण, पिनागंवा बावड़ी की अनोखी बनावट और नूह शहर की ऐतिहासिक गलियाँ। ये सभी स्थल हमें बताते हैं कि मेवात केवल एक भूगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि एक जीवित इतिहास है।
तो आइए, जयपुर की भव्यता से प्रेरणा लेते हुए बढ़ते हैं उस ओर, जहाँ Mewat Historical Palace और धरोहरें आज भी हमारे अतीत की अमूल्य कहानियों को सहेजे खड़ी हैं।
Nuh Mewat
जब आप जयपुर से नूंह के लिए यात्रा करेंगे या फिर दिल्ली से नूंह की ओर आएँगे, तो दोनों रास्तों में दूरी अलग-अलग पड़ती है। दिल्ली से नूंह लगभग 100 किलोमीटर से भी कम है, जबकि जयपुर से यह सफ़र लगभग 250 किलोमीटर का हो जाता है। नूंह शहर अपनी भौगोलिक स्थिति और ऐतिहासिक महत्व दोनों के कारण विशेष पहचान रखता है।
आज जिसे हम मेवात जिला कहते हैं, उसका असली केंद्र और मुख्यालय यही नूंह है। Mewat History के पन्नों में दर्ज है कि मध्यकालीन भारत में नूंह नमक के व्यापार के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध था। यहाँ बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन और व्यापार होता था, जो आस-पास के राज्यों तक पहुँचाया जाता था। बदलते समय और आर्थिक परिस्थितियों के चलते अब नूंह में नमक का कारोबार नहीं है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व आज भी बरकरार है।
2011 की जनगणना के अनुसार नूंह जिले की कुल जनसंख्या 10,89,406 थी। इनमें से पुरुषों की संख्या 5,71,480 (लगभग 52.45%) और महिलाओं की संख्या 5,17,926 (लगभग 47.54%) दर्ज की गई। मुस्लिम जनसंख्या यहाँ लगभग 79% (8,62,647) है, जबकि लिंगानुपात 1000 पुरुषों पर 912 महिलाओं का है।
नूंह शहर सिर्फ़ आँकड़ों और व्यापारिक इतिहास के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहरों और ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी जाना जाता है। यही कारण है कि जब हम Top 5 Mewat Historical Place की बात करते हैं, तो नूंह का नाम सबसे पहले आता है। यहाँ मौजूद कई पुराने मक़बरे, मस्जिदें और किले जैसे Mewat Historical Palace इस क्षेत्र के गौरवशाली अतीत की झलक कराते हैं।
Sheikh Musa Dargah
मेवात की धरती पर कई ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरें मौजूद हैं, लेकिन उनमें से सबसे लोकप्रिय और रहस्यमयी जगह है Sheikh Musa Dargah। यह दरगाह हरियाणा राज्य के नूंह जिले के पल्ला गाँव में अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है और यहाँ तक पहुँचना बेहद आसान है। अगर आप दिल्ली से अपनी गाड़ी या बाइक लेकर आ रहे हैं तो नूंह पहुँचने के बाद सीधा इस दरगाह तक जा सकते हैं। जिनके पास अपनी सवारी नहीं होती, वे नूंह बस स्टैंड से सीधे ऑटो लेकर पहुँच सकते हैं। आम तौर पर ऑटो का किराया 200 से 300 रुपये के बीच होता है।
यह दरगाह 14वीं सदी के सूफी संत हज़रत शेख मूसा से जुड़ी है। वे चिश्ती सिलसिले के संत थे और माना जाता है कि उन्होंने पूरे मेवात क्षेत्र में इस्लाम के प्रचार–प्रसार और भाईचारे का संदेश दिया। दरगाह के आस–पास आज भी हर साल “हादसा उर्स” का मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से लोग शामिल होने आते हैं। इस मेले के दौरान माहौल रूहानी और सांस्कृतिक दोनों रंगों से भर जाता है।
इस दरगाह की सबसे बड़ी खासियत इसकी हिलती मीनारें हैं। कहा जाता है कि अगर कोई एक मीनार को हिलाता है, तो दूसरी मीनार में भी कंपन महसूस होता है। यह अजूबा आज तक वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बना हुआ है। यही वजह है कि यह जगह न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि स्थापत्य कला और इतिहास के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। दरगाह की मीनारों और वास्तुकला में मुग़ल, राजपूताना और मेवाती शैली का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है। यही कारण है कि जब भी कोई इतिहास प्रेमी Mewat History को समझना चाहता है, तो इस दरगाह को देखना उसके लिए ज़रूरी हो जाता है।
दरगाह परिसर में एक और चीज़ मशहूर है, जिसे लोग “जादुई पानी” कहते हैं। स्थानीय मान्यता है कि यहाँ बने गड्ढे का पानी खास तौर पर चर्म रोग यानी मस्सों आदि को ठीक करने की शक्ति रखता है। यही वजह है कि श्रद्धालु यहाँ आकर पानी छूते हैं और इसे उपचारात्मक मानते हैं।
Sheikh Musa Dargah सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखती बल्कि यह क्षेत्र के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी अहम हिस्सा है। यहाँ हिंदू–मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आते हैं और यह भाईचारे की मिसाल पेश करता है। यही कारण है कि जब हम Top 5 Mewat Historical Place की बात करते हैं, तो इस दरगाह का नाम सबसे पहले लिया जाता है। यह दरगाह वास्तव में एक ऐसा Mewat Historical Palace है, जहाँ धार्मिक आस्था और स्थापत्य कला दोनों का अनूठा संगम दिखाई देता है।
इतिहासकारों का मानना है कि यह दरगाह हमें उस दौर की याद दिलाती है जब मेवात के संतों और सूफियों ने यहाँ की संस्कृति को आकार दिया। दरगाह के स्थापत्य में हमें यह साफ़ दिखाई देता है कि किस तरह अलग–अलग शैलियाँ जैसे मुगल, राजपूत और मेवाती वास्तुकला एक साथ मिलकर एक शानदार संरचना का निर्माण करती हैं। यही कारण है कि यह दरगाह न सिर्फ धार्मिक स्थलों की सूची में, बल्कि Mewat Historical Palace और स्थापत्य धरोहरों की सूची में भी एक अहम स्थान रखती है।
आज जब पर्यटक और इतिहास प्रेमी मेवात की यात्रा पर निकलते हैं, तो वे यहाँ के किलों, बावड़ियों और मकबरों को तो देखते ही हैं, लेकिन Sheikh Musa Dargah उनके लिए एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाती है। यही वजह है कि जो भी Mewat History को गहराई से जानना चाहता है, उसे इस दरगाह की यात्रा ज़रूर करनी चाहिए।
Sheikh Musa Dargah Niyam
हर धार्मिक स्थल की तरह Sheikh Musa Dargah में भी कुछ नियम और परंपराएँ हैं, जिनका पालन हर आगंतुक को करना चाहिए। ये नियम दरगाह की पवित्रता और अनुशासन बनाए रखने के लिए ज़रूरी हैं।
सबसे पहले, दरगाह परिसर में प्रवेश करने से पहले जूते-चप्पल बाहर उतारने होते हैं। यह न सिर्फ़ परंपरा है, बल्कि सम्मान का प्रतीक भी है। यहाँ आने वाले लोग अक्सर सिर पर रूमाल या दुपट्टा रखकर प्रवेश करते हैं, ताकि श्रद्धा और आदर का भाव बना रहे।
फोटोग्राफी की अनुमति यहाँ है, लेकिन बेहतर यही है कि आप तस्वीरें लेने से पहले दरगाह से जुड़े लोगों या वहाँ मौजूद मौलवी से इजाज़त ले लें। इससे आप समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हैं और किसी तरह की असुविधा भी नहीं होती।
महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए यहाँ एक मर्यादित और सभ्य पहनावा रखना आवश्यक माना जाता है। दरगाह में ऊँची आवाज़ में बात करना, अशोभनीय व्यवहार करना या किसी भी तरह की अशांति फैलाना मना है। उर्स मेले के दौरान विशेष भीड़ होती है, इसलिए उस समय अनुशासन और भी अहम हो जाता है।
लोग यहाँ अक्सर चादर चढ़ाने, अगरबत्ती जलाने और फातिहा पढ़ने की परंपरा निभाते हैं। यह सब न सिर्फ़ आस्था का प्रतीक है, बल्कि इस दरगाह की पहचान का हिस्सा भी है।
इन नियमों के पालन से दरगाह का माहौल शांत, पवित्र और अनुशासित बना रहता है। यही कारण है कि जब कोई पर्यटक या श्रद्धालु यहाँ आता है, तो वह न सिर्फ़ एक धार्मिक स्थल देखता है, बल्कि एक अनोखी सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करता है। यही अनुभव इस जगह को Top 5 Mewat Historical Place में शामिल करता है और इसे वास्तविक रूप से एक Mewat Historical Palace बनाता है।
इस दरगाह के नियम हमें यह भी बताते हैं कि Mewat History सिर्फ़ किताबों में लिखी हुई बातें नहीं है, बल्कि यह जीवंत संस्कृति है जो आज भी यहाँ सांस ले रही है। इसलिए जो भी व्यक्ति इस दरगाह की यात्रा करता है, उसे इन नियमों का पालन करते हुए यहाँ की पवित्रता और परंपरा का सम्मान करना चाहिए।
Palla Kila
मेवात की ऐतिहासिक धरोहरों में एक ऐसा किला भी शामिल है जो आज खंडहरों में तब्दील हो चुका है, लेकिन फिर भी इसकी वास्तुकला और रहस्यमय कहानियाँ इसे खास बनाती हैं। यह है Palla Kila, जो नूंह जिले में स्थित है और मशहूर Sheikh Musa Dargah के पास ही अरावली की पहाड़ियों पर बसा हुआ है।
आज यह किला जर्जर हालत में है और धीरे-धीरे मिट्टी में मिल रहा है। अनुमान है कि लगभग 40% हिस्सा पहले ही टूट चुका है और यदि जल्द देखरेख नहीं की गई तो आने वाले वर्षों में यह पूरी तरह बिखर जाएगा। इसके बावजूद, जब आप यहाँ पहुँचते हैं, तो टूटे-फूटे दरवाजे, विशाल पत्थरों की दीवारें और रहस्यमयी सुरंगें आपको राजसी एहसास कराती हैं। यही कारण है कि Mewat History को समझने वाले लोग इस किले का ज़िक्र ज़रूर करते हैं।
कहा जाता है कि इस किले का निर्माण एक स्थानीय शासक ने करवाया था। मजबूत चूना, पत्थर और अरावली की चट्टानों से बने इस किले की बनावट इतनी मज़बूत थी कि इसे एक समय अजेय माना जाता था। लेकिन लोककथाओं के अनुसार, जब इसका पानी पास ही बनी Sheikh Musa Dargah तक पहुँचता था, तो संत ने इसे बद्दुआ दे दी कि यह किला एक दिन खंडहर बन जाएगा। समय के साथ यह भविष्यवाणी सच होती नज़र आई और आज यह किला टूटकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।
इस किले की सबसे दिलचस्प बात इसकी रहस्यमयी सुरंगें हैं। कहा जाता है कि ये सुरंगें कभी युद्ध या आपात स्थिति में शासकों द्वारा इस्तेमाल की जाती थीं। इनमें से कुछ आज भी मौजूद हैं और इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो आप किसी रहस्यमय राजमहल में प्रवेश कर रहे हों। यही वजह है कि जब भी Top 5 Mewat Historical Place की सूची बनाई जाती है, तो इस किले का नाम उसमें शामिल होता है।
किले तक पहुँचने का सफर भी अपने आप में एक अनुभव है। गाँव से किले तक गाड़ी नहीं जाती, इसलिए आपको अपनी बाइक या कार गाँव में ही किसी दुकान या सुरक्षित स्थान पर पार्क करनी होती है। आमतौर पर लोग 10 से 50 रुपये देकर पार्किंग की व्यवस्था कर लेते हैं। इसके बाद लगभग आधे घंटे की चढ़ाई आपको पैदल करनी होती है। यह चढ़ाई थकाने वाली ज़रूर है, लेकिन जैसे-जैसे आप ऊपर बढ़ते हैं, चारों तरफ फैली अरावली की पहाड़ियाँ और हरे-भरे नज़ारे आपकी थकान उतार देते हैं।
चढ़ाई के दौरान आपको पानी और हल्का-फुल्का खाना साथ रखना चाहिए, क्योंकि ऊपर किसी तरह की दुकान या व्यवस्था नहीं मिलती। गर्मियों में यहाँ का तापमान और भी कठिनाई पैदा कर सकता है। लेकिन एक बार जब आप ऊपर पहुँचते हैं, तो किले का नज़ारा और इसकी शांति आपको सब भूलने पर मजबूर कर देती है।
यह किला आज भी बिना किसी शुल्क के पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए खुला है। यहाँ फोटो खींचने की भी अनुमति है। हालाँकि, यह सलाह दी जाती है कि आप अकेले न जाएँ। बेहतर होगा कि आप दोस्तों या परिवार के साथ जाएँ। पहाड़ी इलाक़ा होने के कारण जंगली जानवरों का डर बना रहता है और साथ ही अंजान जगह पर अकेले होने से असुरक्षा का एहसास भी हो सकता है।
Palla Kila अपने टूटे–फूटे रूप में भी एक शानदार Mewat Historical Palace है। यह जगह हमें न सिर्फ मेवात के स्थापत्य की झलक देती है बल्कि यह भी याद दिलाती है कि हर ऐतिहासिक धरोहर की एक जीवन यात्रा होती है – निर्माण से लेकर उत्थान और अंततः पतन तक। यही कारण है कि इतिहासकार और पर्यटक दोनों इस जगह को Mewat History का अहम हिस्सा मानते हैं।
Palla Kila Rules
किसी भी ऐतिहासिक स्थल की तरह Palla Kila में भी कुछ सावधानियाँ और अनकहे नियम हैं, जिन्हें हर आगंतुक को ध्यान में रखना चाहिए। भले ही यहाँ कोई आधिकारिक टिकट काउंटर या प्रबंधन समिति नहीं है, लेकिन स्थानीय लोग और अनुभवी यात्री मानते हैं कि इन नियमों का पालन करना बेहद ज़रूरी है।
सबसे पहला नियम है – सुरक्षा। किला ऊँचाई पर स्थित है और रास्ता पथरीला है, इसलिए आरामदायक जूते पहनकर ही जाएँ। पहाड़ की चढ़ाई के दौरान पानी, टोपी और हल्का-फुल्का खाना साथ रखें। अकेले न जाना ही बेहतर है, क्योंकि यह इलाक़ा वीरान रहता है और जंगली जानवरों का भी ख़तरा हो सकता है।
दूसरा, यहाँ का वातावरण शांत और पवित्र माना जाता है। दीवारों पर नाम लिखना, पत्थर तोड़ना या किसी भी तरह की तोड़फोड़ करना गलत है। इस किले की असली पहचान इसकी वास्तुकला और रहस्य हैं, जिन्हें संरक्षित करना हर आगंतुक की ज़िम्मेदारी है।
तीसरा, स्थानीय लोगों का सम्मान करें। जब आप गाँव में गाड़ी पार्क करते हैं, तो वहाँ के लोगों को कुछ शुल्क देना सामान्य प्रथा है। यह सिर्फ पार्किंग का किराया नहीं, बल्कि गाँव की मदद का तरीका भी है।
फोटोग्राफी यहाँ पूरी तरह अनुमति प्राप्त है, लेकिन ध्यान रखें कि यह जगह ऐतिहासिक धरोहर है। फोटो खींचते समय सावधानी रखें और किसी भी हिस्से को नुकसान न पहुँचाएँ।
इन नियमों का पालन न सिर्फ आपकी सुरक्षा के लिए ज़रूरी है, बल्कि इससे आप इस जगह की पवित्रता और महत्व को भी बनाए रखते हैं। यही वजह है कि Palla Kila आज भी Top 5 Mewat Historical Place में शामिल होता है और इसे एक असली Mewat Historical Palace माना जाता है। यहाँ के नियम हमें यह याद दिलाते हैं कि Mewat History सिर्फ कहानियों में नहीं, बल्कि इन धरोहरों की रक्षा और सम्मान में भी जीवित रहती है।
Chuimal Talab History
नूंह शहर के बीचों-बीच बसा हुआ Chuimal Talab और उसकी छतरी मेवात के अनदेखे लेकिन बेहद महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। यह जगह न सिर्फ धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से, बल्कि स्थापत्य कला और इतिहास के लिहाज़ से भी विशेष महत्व रखती है। यही वजह है कि जब हम Top 5 Mewat Historical Place की बात करते हैं, तो इस तालाब और छतरी का नाम ज़रूर लिया जाता है।
इस तालाब और छतरी का निर्माण 18वीं से 19वीं शताब्दी के दौरान किया गया था। इसे मशहूर व्यापारी सेठ चूहीमल ने बनवाया था, जो उस समय नमक के व्यापार में बहुत प्रसिद्ध थे। नमक का व्यापार मेवात में बड़ी पहचान रखता था और नूंह इस कारोबार का मुख्य केंद्र था। सेठ चूहीमल ने न सिर्फ व्यापार में नाम कमाया बल्कि अपनी याद में यह विशाल तालाब और सुंदर छतरी भी बनवाई।
छतरी की बनावट बेहद शानदार है। इसे भरतपुर के लाल पत्थर और चूना–गारा से तैयार किया गया है। दो मंज़िला इस छतरी पर की गई नक्काशियाँ और पुष्प शिलालेख इसे स्थापत्य कला का एक अनोखा नमूना बनाते हैं। छतरी का निर्माण बाद में सेठ चूहीमल के पुत्र ने अपने पिता की याद में करवाया था। यही वजह है कि यह स्मारक न सिर्फ एक स्थापत्य धरोहर है, बल्कि मेवात के व्यापारी समाज की समृद्धि का प्रतीक भी है।
इस परिसर में मौजूद आयताकार तालाब अपनी रहस्यमय गहराई के कारण आज भी लोगों के बीच चर्चा का विषय है। कहा जाता है कि इस तालाब का पानी कभी सूखा नहीं। यहाँ के स्थानीय लोग मानते हैं कि पानी का स्रोत आज तक कोई खोज नहीं पाया है। इस तालाब के पास एक भूमिगत सुरंग भी मौजूद है, जो इसे चूहीमल की हवेली से जोड़ती थी। इस सुरंग का इस्तेमाल प्राचीन समय में स्नान और पानी की आपूर्ति के लिए किया जाता था। यह व्यवस्था उस समय की इंजीनियरिंग और स्थापत्य कला की उत्कृष्टता को दर्शाती है।
Chuimal Talab की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह मेवात की पुरानी जीवन शैली और आर्थिक समृद्धि की गवाही देता है। Mewat History का अध्ययन करने वाले शोधकर्ता मानते हैं कि यह स्थान हमें 18वीं शताब्दी के मेवात समाज और उनके जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देता है। यहाँ के लोग आज भी इस तालाब और छतरी को श्रद्धा और गर्व की नज़र से देखते हैं।
यहाँ तक पहुँचना भी एक छोटा सा रोमांच है। अगर आपके पास अपनी बाइक या कार है, तो तीन अलग-अलग रास्तों से आप यहाँ पहुँच सकते हैं। पहला रास्ता हनुमान मंदिर के पास से जाता है, जहाँ आप गाड़ी पार्क करके आसानी से छतरी तक पहुँच सकते हैं। दूसरा रास्ता शहर की तरफ से है, लेकिन वहाँ अक्सर पानी भरा रहता है। अगर किस्मत साथ दे और पानी कम हो, तो गाड़ी को सीधे छतरी के पास ले जाया जा सकता है। तीसरा रास्ता पास की गली से होकर जाता है, जहाँ आप किसी घर के बाहर गाड़ी खड़ी करके अंदर पहुँच सकते हैं। अगर आप ऑटो से आना चाहते हैं तो नूंह बस स्टैंड से सीधा ऑटो लेकर आ सकते हैं, जिसका किराया लगभग 100 रुपये लगता है।
यह जगह न सिर्फ स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यहाँ के शांत वातावरण और तालाब के चारों ओर फैली नीरवता में एक अलग ही आध्यात्मिक अनुभूति होती है। यही कारण है कि इसे अक्सर Mewat Historical Palace की श्रेणी में भी रखा जाता है, क्योंकि यह सिर्फ एक स्मारक नहीं, बल्कि इतिहास, वास्तुकला और संस्कृति का संगम है।
आज भी जब लोग नूंह घूमने आते हैं, तो Chuimal Talab और छतरी उन्हें उस दौर में ले जाती है, जब मेवात व्यापार, संस्कृति और स्थापत्य के मामले में उन्नति के शिखर पर था। यही कारण है कि यह स्थल Top 5 Mewat Historical Place की सूची में अपनी खास जगह बनाए हुए है और हमेशा बनाए रखेगा।
Chuimal Talab Rules
किसी भी ऐतिहासिक स्थल की तरह Chuimal Talab और इसकी छतरी में भी कुछ सावधानियाँ और नियम हैं, जिनका पालन हर आगंतुक को करना चाहिए। यहाँ कोई आधिकारिक टिकट या गार्ड व्यवस्था नहीं है, लेकिन स्थानीय अनुभव और लोगों की सलाह इस स्थल को सुरक्षित और पवित्र बनाए रखते हैं।
सबसे पहला नियम है – पार्किंग और सुरक्षा। जब आप मंदिर या गली के रास्ते से आते हैं, तो अपनी गाड़ी सुरक्षित जगह पर पार्क करना ज़रूरी है। स्थानीय लोगों को पार्किंग के बदले कुछ पैसे देना सामान्य है और इससे उनकी मदद भी होती है।
दूसरा, यहाँ चारों ओर पानी भरा रहता है। तालाब की गहराई बेहद अधिक है और कहा जाता है कि इसकी असली गहराई आज तक कोई नाप नहीं पाया। इसलिए तालाब के किनारे ज़्यादा न झुकें, बच्चों को अकेले पास न जाने दें और पानी में उतरने की कोशिश बिल्कुल न करें। यहाँ गिरने का मतलब सीधा जीवन का खतरा है।
तीसरा नियम है – सम्मान और अनुशासन। यह स्थल सिर्फ एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों की भावनाओं से भी जुड़ा हुआ है। दीवारों पर नाम लिखना, कूड़ा फेंकना या तोड़फोड़ करना बिल्कुल गलत है।
फोटोग्राफी यहाँ अनुमति प्राप्त है, लेकिन फोटो खींचते समय सावधानी बरतें। विशेष रूप से छतरी और तालाब के पास, जहाँ पत्थर गीले और फिसलन भरे हो सकते हैं।
इन नियमों का पालन करके आप न सिर्फ अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे, बल्कि इस धरोहर के संरक्षण में भी योगदान देंगे। यही वजह है कि Chuimal Talab आज भी Top 5 Mewat Historical Place में शामिल है और इसे वास्तविक रूप से एक Mewat Historical Palace माना जाता है।
इन नियमों से यह भी साफ़ होता है कि Mewat History केवल किताबों में लिखी बातें नहीं है, बल्कि इन धरोहरों की देखभाल और सम्मान में भी जीवित है। जब भी कोई यात्री यहाँ आता है और इन नियमों का पालन करता है, तो वह इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने में मदद करता है।
Kotla Fort History
हमारी यात्रा का अगला पड़ाव है Kotla Fort, जो नूंह शहर से लगभग 5–6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा यह किला न सिर्फ मेवात की शान रहा है बल्कि यही वह जगह है जहाँ से Mewat History का एक नया अध्याय शुरू हुआ।
कहा जाता है कि मेवाती सल्तनत की नींव यहीं से रखी गई थी। इतिहासकार मानते हैं कि जब फ़िरोज़ शाह तुगलक के शासन काल में सामरपाल ने इस्लाम धर्म अपनाया, तब फ़िरोज़ शाह ने उसे यह किला इनाम में दिया। इसके बाद सामरपाल यहीं से अपनी सल्तनत चलाने लगा। धीरे-धीरे यह खांज़ादों की सत्ता का केंद्र बना और यहीं से आगे इंडोरी, तिजारा, फ़िरोज़पुर झिरका और अलवर तक खांज़ादों का विस्तार हुआ।
Kotla Fort की भौगोलिक स्थिति इसे रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बनाती थी। यह एक संकरी घाटी में बना था, जिसके पूर्वी हिस्से में दाहर झील थी। जब झील पूरी तरह पानी से भरी रहती थी, तो किले तक पहुँचने का सिर्फ़ एक संकरा रास्ता बचता था। यह प्राकृतिक सुरक्षा किले को लगभग अभेद्य बना देती थी। यही वजह है कि इसे मेवात की सबसे मज़बूत किलों में गिना जाता था और इसे एक महत्वपूर्ण Mewat Historical Palace माना जाता है।
आइन-ए-अकबरी में भी कोटला का ज़िक्र मिलता है। उसमें इसे तिजारा सरकार के तहत एक परगना बताया गया है, जो लगभग 15,52,196 दाम का राजस्व मुग़ल ख़ज़ाने को देता था और 700 पैदल सैनिक व 30 घुड़सवार सेना की आपूर्ति करता था। इसमें यह भी दर्ज है कि “यहाँ एक ईंटों का किला है, जो पहाड़ी पर बना है और जिसमें चार कोस परिधि का तालाब मौजूद है।”
आज यह किला लगभग 70% टूट चुका है। हालांकि, इसका मुख्य द्वार और चारों तरफ की दीवारें अब भी मजबूती से खड़ी हैं। किले के भीतर बने महल और इमारतें ज़्यादातर खंडहर में तब्दील हो चुकी हैं। फिर भी, जब आप यहाँ पहुँचते हैं, तो टूटी हुई दीवारों और विशाल गेट को देखकर उस समय की भव्यता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
किले तक पहुँचने के लिए पहाड़ी की चढ़ाई करनी पड़ती है। यह सफ़र आसान नहीं है, इसलिए अक्सर सलाह दी जाती है कि कोई स्थानीय व्यक्ति आपके साथ हो। चढ़ाई के दौरान एक जगह ऐसी भी आती है जहाँ कभी राजाओं और सैनिकों के घोड़ों का अस्तबल हुआ करता था। आज भी वहाँ से एक छोटा-सा झरना बहता है। गर्मियों में पानी कम हो जाता है और कभी-कभी सूख भी जाता है, लेकिन ज़्यादातर समय यह झरना जीवित रहता है और स्थानीय लोग इसका उपयोग पीने और नहाने के लिए करते हैं।
पर्यटकों के लिए यह अनुभव रोमांच से भरपूर होता है। जब आप ऊपर चढ़ते हैं, तो चारों ओर की घाटियाँ और अरावली की हरी-भरी पहाड़ियाँ मन मोह लेती हैं। यही कारण है कि Top 5 Mewat Historical Place में कोटला फ़ोर्ट का नाम शामिल किया जाता है।
कोटला गाँव के भीतर आज भी उस समय की एक भव्य मस्जिद मौजूद है। यहाँ आज भी अज़ान और नमाज़ होती है। बाहर से आने वाले सैलानी मस्जिद देख सकते हैं और अधिकतर मामलों में फोटो खींचने की अनुमति भी मिल जाती है, हालांकि स्थानीय लोगों की इजाज़त लेना आवश्यक होता है।
Kotla Fort सिर्फ़ खंडहर नहीं है, बल्कि यह मेवात की वीरता, सत्ता और स्थापत्य कला का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि किस तरह से खांज़ादों ने यहाँ से सत्ता की शुरुआत की और मेवात का गौरवशाली इतिहास लिखा। यह किला भले ही आज टूट चुका है, लेकिन अब भी यह एक शानदार Mewat Historical Palace की तरह हमारी धरोहर बना हुआ है।
Kotla Niyam
जब आप Kotla Fort घूमने जाएँ, तो कुछ नियमों और सावधानियों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। यह जगह पूरी तरह ऐतिहासिक और प्राकृतिक है, इसलिए यहाँ आपकी सुरक्षा और इस धरोहर का संरक्षण दोनों मायने रखते हैं।
सबसे पहला नियम – पहाड़ की चढ़ाई। यह रास्ता कठिन और पथरीला है, इसलिए मजबूत और आरामदायक जूते पहनकर ही जाएँ। अपने साथ पर्याप्त पानी और हल्का-फुल्का खाना रखें, क्योंकि किले तक पहुँचने के बाद आपको ऊपर कोई सुविधा नहीं मिलेगी।
दूसरा, यहाँ अकेले न जाना ही बेहतर है। हमेशा दोस्तों या स्थानीय गाइड को साथ लें। इससे रास्ता आसान होगा और सुरक्षा भी बनी रहेगी। जंगली जानवरों का खतरा यहाँ रहता है और सुनसान जगह पर अकेले जाना कभी-कभी ख़तरनाक साबित हो सकता है।
तीसरा, मस्जिद और गाँव के आसपास के इलाक़े में स्थानीय परंपराओं का सम्मान करें। खासकर ध्यान रखें कि महिलाओं की तस्वीरें न खींचें। यह नियम यहाँ की सामाजिक मान्यताओं और भावनाओं का हिस्सा है। अगर मस्जिद या गाँव में फोटो लेना चाहें तो पहले अनुमति ज़रूर लें।
चौथा, किले और उसके आसपास की दीवारों या संरचनाओं से छेड़छाड़ न करें। नाम लिखना, पत्थर तोड़ना या किसी भी तरह की तोड़फोड़ इस धरोहर का अपमान है।
फोटोग्राफी की अनुमति किले के भीतर और आसपास मिल जाती है, लेकिन सुरक्षा का ध्यान रखना ज़रूरी है। खासकर खाई और झरने के पास खड़े होकर फोटो खींचते समय सतर्क रहें।
इन नियमों का पालन करके आप न सिर्फ अपनी यात्रा को सुरक्षित और सुखद बनाएँगे, बल्कि इस धरोहर के संरक्षण में भी योगदान देंगे। यही कारण है कि Kotla Fort आज भी Top 5 Mewat Historical Place में अपनी जगह बनाए हुए है और इसे एक वास्तविक Mewat Historical Palace कहा जाता है।
और शायद यही इस किले की सबसे अनोखी बात है – यह हमें सिखाता है कि इतिहास सिर्फ़ देखने की चीज़ नहीं, बल्कि उसका सम्मान और सुरक्षा करना भी उतना ही ज़रूरी है। जब आप इस किले पर खड़े होकर अरावली की वादियों को निहारते हैं, तो लगता है मानो Mewat History की कहानियाँ अब भी इन दीवारों से फुसफुसा रही हों।
Indore Fort Mewat
हमारी यात्रा का अगला पड़ाव है Indore Fort, एक ऐसी जगह जो कोटला से भी अधिक भव्य और रहस्यमयी रही है। हैरानी की बात यह है कि आज मेवात के ही लगभग 80% लोग इस किले के बारे में नहीं जानते, तो बाहर के लोगों के लिए इसका गुमनाम रह जाना कोई बड़ी बात नहीं। कोटला के बारे में तो इतिहास प्रेमी और स्थानीय लोग अक्सर चर्चा करते हैं, लेकिन इंदौर किले का नाम अब धीरे-धीरे धुंधला पड़ गया है।
कभी यह किला इतना विशाल और अद्भुत था कि कहा जाता है कि जब इसे बनाया गया था, उस समय दिल्ली में भी इतना बड़ा किला मौजूद नहीं था। इतिहासकारों का मानना है कि यह किला अपनी भव्यता में अलवर के बाला किले से भी आगे था। यह सोचकर ही रोमांच होता है कि मेवात की धरती पर कभी ऐसा किला खड़ा था जिसकी तुलना किसी और किले से नहीं की जा सकती थी। लेकिन समय की करवट ने सब कुछ बदल दिया और आज यह किला खंडहर बनकर अरावली की पहाड़ियों पर अपनी दास्तान कह रहा है।
Indore Fort का शुरुआती निर्माण निकुंभ राजाओं ने करवाया था। अरावली की ऊँचाइयों पर बसा यह गढ़ रणनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। 15वीं शताब्दी तक निकुंभ राजाओं की सत्ता यहाँ से समाप्त हो गई और इसके बाद खांज़ादा शासक जलाल खान (जल्लू खान) ने इस किले को अपने नियंत्रण में लिया। जलाल खान ने इस किले को पूरी तरह नया स्वरूप दिया और इसे मेवात की राजधानी बना दिया।
यही वह दौर था जब Mewat History में एक नया अध्याय जुड़ा। जलाल खान ने इंदौर को इतना मजबूत और विशाल गढ़ बना दिया कि पूरे मेवात और आसपास के इलाकों में इसकी बराबरी का कोई किला नहीं था। यहाँ तक कि उस समय फ़िरोज़पुर झिरका का किला और अलवर का किला भी इसके सामने छोटा और फीका लगता था। बाद में जलाल खान के वंशज राजा हसन खान ने अलवर किले को मज़बूत और विशाल बनाया, लेकिन उससे पहले तक इंदौर का किला ही सबसे बड़ा और शानदार Mewat Historical Palace माना जाता था।
जलाल खान ने अपनी राजधानी कोटला से स्थानांतरित करके इंदौर में स्थापित की और यहीं से मेवात की सत्ता चलती रही। यह किला सिर्फ सत्ता का केंद्र ही नहीं था, बल्कि इसमें राजा–रानी के महल, सैनिकों के ठिकाने, घोड़ों के अस्तबल, बाज़ार और बावड़ियाँ सब कुछ मौजूद थे। किले का क्षेत्रफल लगभग 2 से 3 किलोमीटर में फैला हुआ था और केवल 500 मीटर के अंदर ही महलों और संरचनाओं की इतनी अधिकता थी कि कोई भी देखकर हैरान रह जाता।
दुर्भाग्यवश अंग्रेज़ों के समय इस किले पर तोपों और बमबारी से हमला किया गया। दीवारें और महल बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए। उसके बाद से इस किले को किसी ने पुनर्निर्मित करने की कोशिश नहीं की। धीरे-धीरे हवेलियाँ, महल और बावड़ियाँ ढह गईं और आज यह एक खंडहर बनकर रह गया है। यही कारण है कि यह भव्य किला अब गुमनाम होता चला गया और मेवात की जनता भी इसे भूलने लगी।
लेकिन जो लोग यहाँ पहुँचते हैं, वे इस किले की विशालता देखकर दंग रह जाते हैं। टूटी–फूटी इमारतें, झुकी हुई दीवारें और अरावली की चोटियों पर फैला हुआ यह गढ़ अब भी उस गौरवशाली इतिहास की झलक दिखाता है। यही कारण है कि जब भी Top 5 Mewat Historical Place की बात होती है, तो इस किले का नाम अवश्य आता है।
किले तक पहुँचने का अनुभव भी अपने आप में अद्भुत है। यह पहाड़ की चोटी पर बना है, इसलिए यहाँ जाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। रास्ता कठिन और पथरीला है, लेकिन जब आप ऊपर पहुँचते हैं, तो चारों ओर फैली अरावली की वादियाँ और खुले आसमान के नीचे खड़े इस गढ़ का नज़ारा आपकी सारी थकान मिटा देता है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि किले के अंदर आज भी राजा और रानियों के महलों के अवशेष, घोड़ों के अस्तबल, बावड़ियाँ और बाज़ार के निशान मौजूद हैं। हालाँकि यह सब टूटी–फूटी हालत में है, लेकिन कल्पना कीजिए जब ये जगह अपनी पूरी भव्यता में होगी तो कितनी अद्भुत लगती होगी।
इतिहासकार मानते हैं कि यह किला मेवात की पहचान था और यहाँ से खांज़ादा शासकों ने अपनी शक्ति को चरम पर पहुँचाया। आज यह जगह चाहे खंडहर बन चुकी है, लेकिन यह हमें यह याद दिलाती है कि Mewat History केवल दिल्ली या अलवर तक सीमित नहीं है, बल्कि मेवात के हर कोने में फैली हुई है।
Indore Fort Mewat इस बात का जीवंत उदाहरण है कि समय चाहे कितना ही बदल जाए, लेकिन इतिहास अपनी गवाही हमेशा छोड़ जाता है। यह किला आज भी पर्यटकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है और एक गुमनाम होते हुए भी यह एक असली Mewat Historical Palace है, जो आने वाली पीढ़ियों को मेवात की शौर्य गाथाएँ सुनाता रहेगा।
Indore Fort Rules
जब आप Indore Fort Mewat की यात्रा करें, तो कुछ महत्वपूर्ण नियमों और सावधानियों का पालन करना बेहद ज़रूरी है। यह किला अरावली की ऊँचाइयों पर स्थित है और खंडहर अवस्था में है, इसलिए यहाँ सुरक्षा और अनुशासन दोनों आवश्यक हैं।
सबसे पहले, यहाँ जाते समय अपने साथ पर्याप्त पानी और हल्का-फुल्का भोजन रखें। ऊपर किसी भी तरह की सुविधा उपलब्ध नहीं है। धूप और पहाड़ी चढ़ाई थकाने वाली हो सकती है, इसलिए तैयारी के साथ जाना ज़रूरी है।
दूसरा, कभी अकेले न जाएँ। हमेशा दोस्तों, परिवार या किसी स्थानीय गाइड को साथ लें। अरावली के जंगलों में जंगली जानवरों के दिखने की संभावना रहती है, इसलिए समूह में जाना ही सुरक्षित है।
तीसरा, किले की टूटी दीवारों और संरचनाओं के पास बहुत सावधानी रखें। ये पुरानी और कमजोर हो चुकी हैं, इसलिए उन पर चढ़ना या ज़ोर देना खतरनाक साबित हो सकता है।
चौथा, स्थानीय परंपराओं और लोगों का सम्मान करें। यहाँ के गाँव वालों से मदद लेना पड़ सकता है, जैसे रास्ता दिखाना या गाड़ी पार्क करना। उनका सम्मान करना और कृतज्ञ रहना आपकी ज़िम्मेदारी है।
पाँचवाँ, यहाँ फोटोग्राफी की अनुमति है, लेकिन फोटो खींचते समय सावधानी रखें। खासकर बच्चों को खाई या ढलान के पास न जाने दें।
याद रखें कि यह किला सिर्फ एक खंडहर नहीं है, बल्कि एक धरोहर है। इसे सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। जब आप यहाँ नियमों का पालन करते हैं, तो आप न सिर्फ अपनी यात्रा को सुरक्षित बनाते हैं, बल्कि इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने में भी योगदान करते हैं। यही वजह है कि Indore Fort आज भी Top 5 Mewat Historical Place में शामिल है और इसे सही मायनों में एक Mewat Historical Palace कहा जाता है।
और शायद यही इस किले का सबसे बड़ा संदेश है – इतिहास सिर्फ देखने की चीज़ नहीं, बल्कि उसे सँभालने और सम्मान देने की जिम्मेदारी भी हमारी है। जब आप इस किले की ऊँचाई पर खड़े होकर अरावली की घाटियों में बहती हवा को महसूस करते हैं, तो लगता है मानो सदियों पुरानी Mewat History अब भी इन खंडहरों के बीच साँस ले रही हो।
समापन
तो दोस्तों, हमारी अब तक की ऐतिहासिक यात्रा में हमने नूंह शहर और इसके आसपास की कुछ बेहद महत्वपूर्ण धरोहरों को देखा। चाहे बात हो Sheikh Musa Dargah की रहस्यमयी मीनारों की, Palla Kila की रोमांचक चढ़ाई की, Chuimal Talab की अनोखी गहराई की, Kotla Fort की रणनीतिक अहमियत की या फिर Indore Fort की भव्यता और उसके गुमनाम हो जाने की—हर स्थल ने हमें मेवात की अनूठी विरासत से परिचित कराया। यह सब मिलकर हमें बताते हैं कि Mewat History सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि इन धरोहरों की दीवारों, झरनों और खंडहरों में आज भी सांस लेती है।
अब तक हमने देखा कि कैसे Mewat Historical Palace केवल किलों और मकबरों का नाम नहीं, बल्कि मेवात के समाज, संस्कृति और गौरव का जीवित प्रतीक है। यही कारण है कि जब भी कोई पर्यटक या शोधकर्ता Top 5 Mewat Historical Place की बात करता है, तो इन स्थलों का नाम अनिवार्य रूप से शामिल होता है।
लेकिन यह सफ़र यहीं समाप्त नहीं होता। यह तो बस शुरुआत है।
आर्टिकल के अगले भाग में हम और भी रोमांचक और महत्वपूर्ण जगहों को जानेंगे—
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Firozpur Jhirka का इतिहास
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Shad ki Baithak की रहस्यमयी गाथाएँ
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84 Khambha का रहस्य और स्थापत्य
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और Tadu ka Tomb का ऐतिहासिक महत्व
यकीन मानिए, ये सभी स्थल न सिर्फ़ मेवात बल्कि पूरे भारत की ऐतिहासिक धरोहरों में खास स्थान रखते हैं।
👉 इसलिए जुड़े रहिए, क्योंकि इस श्रृंखला का अगला भाग और भी ज्यादा रोचक और जानकारीपूर्ण होगा। वहीं से हम इस आर्टिकल को आगे बढ़ाएंगे और आपको सीधे लिंक भी उपलब्ध कराया जाएगा ताकि पढ़ना आपके लिए आसान रहे।