Top 5 Mewat Historical Palace – आज हमारी इस श्रृंखला का दूसरा भाग है। पिछले भाग (Part 1) में हमने नूंह शहर और उसके आसपास के ऐतिहासिक स्थलों को गहराई से समझा था। वहाँ हमने Mewat History के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर रोशनी डाली और देखा कि किस तरह से नूंह की दरगाहें, किले और बावड़ियाँ हमें मेवात की विरासत से जोड़ती हैं। साथ ही उन स्थलों के rules और सावधानियाँ भी जानीं, ताकि आने वाले यात्री सुरक्षित और सम्मानजनक ढंग से इस विरासत का अनुभव कर सकें।
लेकिन दोस्तों, नूंह सिर्फ़ मेवात का एक छोटा सा हिस्सा है। Mewat Historical Palace की पहचान केवल नूंह तक सीमित नहीं है। असली मेवात तो पहाड़ों, घाटियों और गाँवों की गहराइयों में बसा हुआ है, जहाँ आज भी सैकड़ों साल पुराने किले, मक़बरे और रहस्यमयी धरोहरें मौजूद हैं। यही वजह है कि हम इस भाग में नूंह से आगे बढ़ते हुए Mewat Heritage और Mewat Mountains की तरफ़ रुख करेंगे।
मेवात का यह हिस्सा हमें बताता है कि यहाँ की कहानी सिर्फ़ राजाओं और किलों तक सीमित नहीं, बल्कि यहाँ का समाज, संस्कृति और प्राकृतिक वातावरण भी उतना ही अनोखा है। Top 5 Mewat Historical Place को समझने के लिए यह ज़रूरी है कि हम मेवात की पहाड़ियों और गाँवों में उतरें, जहाँ हर पत्थर और हर चट्टान हमें अतीत की कोई न कोई दास्तान सुनाता है।
पिछले भाग में हमने Indore Fort, Kotla Fort और नूंह के आस-पास के स्थलों को देखा। अब इस नए भाग में हम और भी रोचक जगहों को जानेंगे, जैसे Firozpur Jhirka का इतिहास, Shad ki Baithak की गाथा, रहस्यमयी 84 Khambha और Taudu का Tomb। यह सब स्थान मेवात की आत्मा हैं और इन्हें जाने बिना मेवात की पूरी तस्वीर अधूरी रहती है।
इस भाग में आपको मेवात की संस्कृति की झलक भी देखने को मिलेगी। Mewati Culture नूंह के आधुनिक होते परिवेश से थोड़ा अलग है। नूंह ज़िला मुख्यालय होने के कारण आधुनिकता को अपनाता जा रहा है, लेकिन जैसे-जैसे हम पहाड़ों और दूरस्थ गाँवों की ओर बढ़ते हैं, वहाँ की संस्कृति और परंपराएँ हमें और भी ताज़गी और मौलिकता का एहसास कराती हैं। यहाँ का लोकगीत, खानपान, पहनावा और जीवनशैली हमें बताती है कि मेवात सिर्फ़ ऐतिहासिक धरोहरों का क्षेत्र नहीं, बल्कि जीवित संस्कृति का भी घर है।
यही कारण है कि हम कह सकते हैं कि Mewat History को समझने के लिए नूंह से बाहर निकलना अनिवार्य है। पहाड़ों पर बने किले, रहस्यमयी बावड़ियाँ और पुरानी दरगाहें हमें उस समय में ले जाती हैं जब मेवात का नाम दिल्ली और आगरा के दरबारों में गूंजता था।
इस लेख के दूसरे भाग में हम कोशिश करेंगे कि इन धरोहरों की झलक आपको विस्तार से दिखा सकें। हालांकि, मेवात इतना विशाल है कि संभव है इस भाग में भी सभी स्थानों को कवर करना मुश्किल हो जाए। अगर कुछ स्थान छूट जाते हैं, तो आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं – क्योंकि हम इस श्रृंखला को आगे भी जारी रखेंगे और आपको Part 3 में शेष धरोहरों से परिचित कराएंगे।
तो आइए, बिना समय गँवाए इस यात्रा को आगे बढ़ाते हैं और जानते हैं उन धरोहरों के बारे में जो न सिर्फ़ Mewat Historical Palace की पहचान हैं, बल्कि हमारे गौरवशाली अतीत और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी हैं।
Taoru Shahar ka Fort (Tauru Fort)
नूंह शहर के बाद हमारी अगली मंज़िल है Taoru Shahar, जिसे आज तावडू के नाम से जाना जाता है। यह शहर न सिर्फ़ प्राचीन है, बल्कि अपने भीतर एक गहरा और भावनात्मक इतिहास भी समेटे हुए है। जब आप यहाँ के किले की ओर नज़र डालेंगे, तो मानो आपको अतीत से आती आवाज़ें सुनाई देंगी—जाटों के शोर-शराबे की गूंज, उनकी तलवारों की टकराहट और घोड़ों की टापों की धुन। यही एहसास इस जगह को और भी जीवंत बना देता है।
Mewat History के पन्नों में तावडू का किला एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह किला 16वीं शताब्दी में बनाया गया था और माना जाता है कि इसका संबंध बलूच और जाट शासकों से रहा है। यही वजह है कि यह सिर्फ़ एक किला नहीं, बल्कि उस समय की राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों की गवाही देता है।
आज यह किला आधुनिक बहुमंजिला इमारतों के बीच छिपा हुआ है। बाहरी नज़र से देखने पर यह आपको एक साधारण-सा खंडहर लगेगा, लेकिन जब आप इसके पास पहुँचेंगे तो इसकी टूटी दीवारें और जर्जर ढांचा आपको उस बीते दौर की कहानी सुनाने लगेंगे।
स्थान और स्थिति:
यह किला नूंह जिले के तावडू शहर में, पुलिस स्टेशन के पास स्थित है। दुर्भाग्यवश अब इसके अवशेष ही बचे हैं और पूरा किला लगभग गुमनामी में खो गया है।
इतिहास और महत्व:
16वीं शताब्दी में बने इस किले ने कई शासकों का उत्थान और पतन देखा। यह जाटों की वीरता और संघर्ष का प्रतीक था। इतिहासकार मानते हैं कि यह किला मेवात में जाटों का अंतिम गढ़ था। लेकिन धीरे-धीरे यह वंश और इसकी विरासत धुंधली होती चली गई।
आज हालत यह है कि किले का लगभग 90% हिस्सा ज़मींदोज़ हो चुका है। केवल कुछ अवशेष बचे हैं, जो हमें याद दिलाते हैं कि कभी यहाँ एक विशाल और भव्य किला खड़ा था। अगर आने वाले वर्षों में इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह धरोहर भी पूरी तरह मिट जाएगी और सिर्फ़ किताबों और यादों में ही रह जाएगी।
Mewat Heritage और Haryana Heritage दोनों ही इस किले पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे। यदि इस धरोहर को सही तरह से पुनर्निर्मित और संरक्षित किया जाए, तो यह न सिर्फ़ स्थानीय पहचान बनेगा बल्कि एक महत्वपूर्ण Mewat Historical Palace के रूप में पर्यटकों को भी आकर्षित कर सकता है।
आज यह किला हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि इतनी समृद्ध धरोहरें हमारी आँखों के सामने खत्म हो रही हैं और हम उन्हें बचाने के लिए कुछ कर नहीं पा रहे। यही वजह है कि तावडू का यह किला केवल खंडहर नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—अगर हमने अब भी अपनी धरोहरों को महत्व नहीं दिया, तो आने वाली पीढ़ियाँ सिर्फ़ तस्वीरों और किताबों से ही Top 5 Mewat Historical Place को जान पाएँगी।
Tauru Tombs
Tauru Shahar, यानी तावडू, न सिर्फ अपने किले के लिए बल्कि अपने प्राचीन मकबरों के लिए भी मशहूर है। यहाँ मौजूद Tauru Tombs मेवात की समृद्ध धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। नूंह ज़िले के मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की ओर, नूंह–बिलासपुर मार्ग पर स्थित यह स्थल 14वीं–15वीं शताब्दी की इस्लामी स्थापत्य कला का एक शानदार उदाहरण है।
यह मकबरा परिसर तावडू कस्बे के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में फैला हुआ है और इसे देखकर साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह किसी स्थानीय शासक परिवार का शाही कब्रिस्तान रहा होगा। यहाँ कुल सात मकबरे मौजूद हैं—जिनमें तीन विशाल और चार छोटे मकबरे शामिल हैं। इन मकबरों के बीच एक सीढ़ीदार बावली भी है, जो इस जगह की सुंदरता और महत्व को और बढ़ा देती है।
Mewat History के अनुसार, इन मकबरों का निर्माण उस दौर में हुआ जब तुगलक, लोदी और शुरुआती मुग़ल स्थापत्य शैलियाँ विकसित हो रही थीं। यही कारण है कि यहाँ आपको स्थापत्य कला का मिश्रण दिखाई देगा—दीवारों पर तुगलक की सादगी, लोदी की मज़बूती और मुग़लों की कलात्मक बारीकियाँ सब मिलकर इसे एक अद्वितीय Mewat Historical Palace का रूप देती हैं।
स्थानीय परंपराओं और किवदंतियों के मुताबिक, यहाँ दफन लोग मेवात के उस दौर से जुड़े रहे हैं जब दिल्ली सल्तनत और मेवात के शासकों के बीच संघर्ष और तालमेल दोनों चलते थे। यही वजह है कि यह मकबरा परिसर मेवात की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को समझने में अहम भूमिका निभाता है।
तावडू के मकबरों में से कुछ अब भी मज़बूत हालत में हैं, जबकि कई धीरे-धीरे खंडहर में बदलते जा रहे हैं। मस्जिद की दीवारों पर मौजूद चित्रकारी और नक्काशी अब धुंधली पड़ चुकी है, लेकिन उनकी झलक अब भी यह बताने के लिए काफी है कि कभी यह जगह कितनी शानदार रही होगी।
यहाँ तक पहुँचना बहुत मुश्किल नहीं है। अगर आप दिल्ली से आ रहे हैं तो रेवाड़ी या तावडू तक आसानी से बस मिल जाती है। अगर बस की सुविधा न मिले तो सोhna से तावडू के लिए कई बसें चलती हैं। वहीं, अलवर या जयपुर की ओर से आने वालों के लिए भी तावडू तक सीधी बस सेवा है। अगर आप अपनी गाड़ी से आते हैं तो और भी आसान है।
Tauru Tombs की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ प्रवेश के लिए किसी टिकट की ज़रूरत नहीं है। यहाँ कोई औपचारिक नियम या व्यवस्थापक नहीं है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि यहाँ सफाई और देखरेख बिल्कुल नहीं होती। यही वजह है कि अक्सर परिसर में गंदगी फैली रहती है।
इतिहासकार मानते हैं कि इन मकबरों को अगर सही ढंग से संरक्षित किया जाए तो ये पूरे हरियाणा और मेवात के लिए एक प्रमुख पर्यटन स्थल बन सकते हैं। लेकिन फिलहाल यह स्थिति है कि ये मकबरे गुमनाम होते जा रहे हैं। हालाँकि एक दौर में मंसूर अली खान की पत्नी टेगोर ने यहाँ कुछ मरम्मत और संरक्षण कार्य कराया था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद काम रुक गया और आज तक अधूरा ही पड़ा है।
इन मकबरों का महत्व सिर्फ स्थापत्य कला तक सीमित नहीं है। यह मेवात की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक हैं। यहाँ की मस्जिदें और कब्रें यह बताती हैं कि किस तरह से मेवात हमेशा से गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल रहा है। यही कारण है कि जब भी हम Top 5 Mewat Historical Place की बात करते हैं, तो तावडू के मकबरे उसमें अवश्य शामिल होते हैं।
आज की स्थिति में ये मकबरे हमें यह एहसास कराते हैं कि अगर हमने अपनी धरोहरों की देखभाल नहीं की तो आने वाली पीढ़ियाँ इन्हें सिर्फ़ किताबों और तस्वीरों में ही देख पाएँगी। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम सब मिलकर इन धरोहरों को बचाने और संवारने का प्रयास करें। यही धरोहरें हमें हमारे अतीत से जोड़ती हैं और यही असली Mewat Heritage है।
Tauru Tombs Rules
हालाँकि यहाँ प्रवेश के लिए कोई औपचारिक नियम या टिकट की व्यवस्था नहीं है, लेकिन कुछ अनकहे नियम और सावधानियाँ हैं, जिनका पालन हर आगंतुक को करना चाहिए।
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अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें।
यह जगह अक्सर गंदी रहती है और ज़मीन पत्थरीली है। इसलिए यहाँ जाते समय आरामदायक जूते पहनें। कई मकबरों में ऊपर तक जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं, लेकिन अंदर गंदगी और दरारें होने के कारण ज़रा-सी लापरवाही से हादसा हो सकता है। -
साँप और बिच्छुओं से सावधान रहें।
क्योंकि यहाँ सफाई नहीं होती, इसलिए जंगली जीव जैसे साँप और बिच्छू अक्सर मिल सकते हैं। अंदर जाते समय सतर्क रहें और बच्चों को अकेले अंदर न जाने दें। -
पानी और सामान साथ ले जाएँ।
यहाँ कोई दुकान या सुविधा नहीं है। इसलिए पानी की बोतल और थोड़ा-बहुत खाने का सामान साथ रखें। -
स्थानीय लोगों का सहयोग लें।
गाड़ी पार्किंग के लिए आप स्थानीय लोगों को कुछ पैसे देकर सुरक्षित जगह बना सकते हैं। इससे आपकी गाड़ी भी सुरक्षित रहेगी और स्थानीय लोगों को भी मदद मिलेगी। -
संरचनाओं का सम्मान करें।
मकबरों की दीवारें पुरानी और कमजोर हो चुकी हैं। उन पर चढ़ना, लिखना या पत्थर तोड़ना धरोहर का अपमान है।
Tauru Tombs हमें यह बताते हैं कि Mewat History सिर्फ किलों और दरगाहों तक सीमित नहीं है, बल्कि मकबरों और कब्रिस्तानों में भी वह अतीत ज़िंदा है। इन नियमों का पालन करके आप न सिर्फ़ अपनी सुरक्षा करेंगे, बल्कि इस धरोहर को बचाने में भी योगदान देंगे।
Tijara Fort-Palace
तावडू से हमारी अगली मंज़िल है Tijara Fort-Palace, जो राजस्थान के अलवर ज़िले में अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है। यह किला अपनी अधूरी कहानी और भव्यता के लिए जाना जाता है। जब आप इस किले में कदम रखते हैं तो लगता है जैसे अतीत और वर्तमान दोनों एक साथ सांस ले रहे हों।
Mewat History के पन्नों में दर्ज है कि इस किले का निर्माण 1835 ई. में अलवर के महाराजा बलवंत सिंह ने अपनी माँ, जिन्हें मूसी महारानी के नाम से जाना जाता था, की याद में शुरू करवाया था। यह योजना बेहद भव्य थी और इसका मक़सद एक शानदार महल का निर्माण करना था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था—महाराजा की 1845 में असमय मृत्यु हो गई और किले का निर्माण अधूरा रह गया। यही कारण है कि इसे आज भी "अधूरा किला" कहा जाता है।
इसकी वास्तुकला में राजपूताना की मज़बूत शैली और अफ़गान कला की झलक देखने को मिलती है। बड़े-बड़े मेहराब, मोटी दीवारें और ऊँचे बुर्ज आज भी इसकी शान को बयान करते हैं। भले ही यह अधूरा रह गया हो, लेकिन अधूरापन भी इसकी खास पहचान बन गया।
कई सालों तक यह किला वीरान पड़ा रहा। यहाँ न तो कोई यात्री आता था और न ही इसे संभालने वाला कोई था। लेकिन किस्मत ने एक बार फिर करवट ली। Neemrana Hotels ने इस खंडहर को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया और जीर्णोद्धार करके इसे एक शानदार Heritage Hotel में बदल दिया। आज यह किला न केवल ऐतिहासिक धरोहर है बल्कि सैलानियों के लिए एक आलीशान ठिकाना भी है।
यहाँ आकर आप सिर्फ इतिहास ही नहीं देखते, बल्कि उसके बीच जीते हैं। यहाँ के कमरे, आंगन और बाग़ आपको मेवात और अलवर के बीते समय में ले जाते हैं। यही कारण है कि इसे अब Top 5 Mewat Historical Place में गिना जाता है।
रोचक लोककथाएँ और किस्से
तिजारा फोर्ट-पैलेस से जुड़ी कई लोककथाएँ भी प्रचलित हैं। कहा जाता है कि अलवर के महाराजा बख्तावर सिंह को एक मुस्लिम महिला से प्रेम हो गया था। पिता के विरोध के कारण उन्हें अलवर से निकाल दिया गया और फिर उन्होंने तिजारा में एक महल बनाने की ठानी। यह कहानी पूरी तरह ऐतिहासिक प्रमाणों से जुड़ी हो या न हो, लेकिन इसने किले को एक रोमांटिक पहचान ज़रूर दी है।
इस क्षेत्र का पुराना नाम त्रिगत नगर भी बताया जाता है, जो महाभारत काल के मत्स्य जनपद का हिस्सा था। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि यह इलाक़ा सिर्फ मध्यकालीन ही नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की धरोहर से भी जुड़ा है।
वर्तमान स्थिति और टिकट व्यवस्था
आज Tijara Fort-Palace एक शानदार Heritage Resort है। यहाँ ठहरने और घूमने के लिए आपको पहले से online booking करनी होगी।
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Tatkal entry ticket की सुविधा यहाँ नहीं मिलती।
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बिना ticket या booking के आपको प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
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टिकट की वर्तमान कीमत और कमरे की दरें समय-समय पर बदलती रहती हैं, इसलिए इन्हें आधिकारिक वेबसाइट(Neemrana Hotels – Tijara Fort पर पहले से चेक करना ज़रूरी है।
पर्यटन महत्व
आज यह किला पर्यटकों के लिए किसी जादुई अनुभव से कम नहीं। इसकी छत से दिखाई देने वाला अरावली का नज़ारा आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। यहाँ के बाग़, गैलरी और गलियारे न सिर्फ़ वास्तुकला की सुंदरता को बयान करते हैं बल्कि यह भी बताते हैं कि अधूरापन भी कभी-कभी सौंदर्य का हिस्सा बन जाता है।
Mewat Heritage के लिहाज से तिजारा फोर्ट सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक अधूरी दास्तान है जो समय की कसौटी पर भी खड़ी है। और यही कारण है कि यह किला हर उस यात्री की सूची में होना चाहिए जो Mewat Historical Palace और Mewat History को समझना चाहता है
Tijara Fort-Palace Rules
Tijara Fort-Palace घूमने का मन बनाना आसान है, लेकिन यहाँ पहुँचकर अंदर जाना उतना सरल नहीं है। इस ऐतिहासिक धरोहर को अब एक Heritage Hotel के रूप में बदल दिया गया है, इसलिए यहाँ कुछ खास नियम और व्यवस्थाएँ लागू हैं, जिन्हें हर पर्यटक को जानना चाहिए।
सबसे पहला और महत्वपूर्ण नियम यह है कि बिना टिकट या बुकिंग के तिजारा फोर्ट के अंदर प्रवेश संभव नहीं है। यह कोई ऐसा स्मारक नहीं है जहाँ जाकर सीधे टिकट लेकर अंदर जा सकें। यहाँ की व्यवस्था पूरी तरह ऑनलाइन है। टिकट और रूम बुकिंग सिर्फ़ Neemrana Hotels की आधिकारिक वेबसाइट से ही उपलब्ध होती है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि टिकट confirm होने में समय लगता है। अक्सर बुकिंग approve और confirm होने में एक दिन तक का समय लग सकता है। इसलिए अचानक पहुँचकर किले के अंदर जाने की उम्मीद न रखें।
टिकट की कीमत और रहने का खर्च
यहाँ का अनुभव शानदार है, लेकिन काफ़ी महँगा भी है। सामान्यतः टिकट और बुकिंग की कीमत ₹3500 से लेकर ₹5000+ प्रति रात (24 घंटे) तक रहती है। यह दरें मौसम और उपलब्धता के अनुसार ऊपर-नीचे होती रहती हैं, लेकिन लगभग 90% मामलों में कीमत इन्हीं सीमाओं में रहती है।
चूँकि यह एक Heritage Hotel है, इसलिए यहाँ रुकने पर रहना, खाना-पीना सब अंदर ही करना पड़ता है। बाहरी भोजन की अनुमति नहीं है। एक समय का भोजन (लंच या डिनर) लगभग ₹1000 से ₹2000 प्रति व्यक्ति तक का पड़ता है। इस तरह अगर आप 24 घंटे का ठहराव करते हैं तो कुल खर्च आसानी से ₹10,000 तक पहुँच सकता है।
फोटोग्राफी और वीडियो शूटिंग
अगर आप सिर्फ़ निजी यादों के लिए फोटो लेना चाहते हैं तो सामान्यतः अनुमति मिल जाती है। लेकिन वीडियो शूटिंग या प्रफेशनल फोटोशूट के लिए आपको पहले से प्रबंधन से अनुमति लेनी होती है और इसके लिए अतिरिक्त शुल्क भी देना पड़ता है।
अन्य सावधानियाँ
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बिना बुकिंग यहाँ पहुँचना आपके समय और पैसे दोनों की बर्बादी हो सकती है।
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हमेशा अपनी बुकिंग confirm होने के बाद ही यात्रा करें।
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यहाँ का माहौल पूरी तरह से शांत और अनुशासित है, इसलिए स्थानीय नियमों और होटल की गाइडलाइंस का पालन ज़रूरी है।
कुल मिलाकर, Tijara Fort-Palace घूमने का अनुभव अनोखा है, लेकिन यह सिर्फ़ उन लोगों के लिए है जो पहले से तैयारी करके आते हैं। यहाँ के नियम और खर्च इसे आम पर्यटक स्थल से अलग बनाते हैं। यही वजह है कि यह धरोहर न केवल Mewat Historical Palace की शान है, बल्कि Top 5 Mewat Historical Place में से एक विशेष अनुभव भी है।
Firozpur Jhirka History
जब हम Mewat History की गहराई में उतरते हैं तो एक ऐसा कस्बा सामने आता है जिसने हर युग में अपनी अहम पहचान बनाई—Firozpur Jhirka। यह कस्बा अरावली की वादियों में बसा हुआ है और मेवात की राजनीति, संस्कृति और व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। आज यह नूंह जिले का उपमंडल है, लेकिन इसका इतिहास सदियों पुराना है।
स्थापना और शुरुआती दौर
फ़िरोज़पुर झिरका की स्थापना वर्ष 1419 में वली-ए-मेवात खानजादा फ़िरोज़ ख़ान द्वारा की गई थी। वे मेवात के शासक थे और उनके शासनकाल में यह कस्बा एक महत्वपूर्ण ठिकाना बन गया। शुरुआती दौर में इसे सिर्फ़ “झिर” कहा जाता था। बाद में जब फ़िरोज़ ख़ान ने यहाँ अपनी सत्ता स्थापित की तो यह नाम बदलकर Firozpur Jhirka हो गया।
मुगल काल में झिरका
मुगल दौर में झिरका की अहमियत और भी बढ़ी। यहाँ के प्रमुख जमींदारों में मोहम्मद हयात ख़ान नंबरदार और उनके भाई बुर्कात उल्लाह ख़ान का नाम आता है। उन्होंने मखदूम ताहिर (झुमरावत से) के साथ मिलकर इस कस्बे को एक बड़ी रियासत का रूप दिया।
इस समय का एक उल्लेखनीय नाम क़ाज़ी गुलाम मुस्तफ़ा भी है, जिन्हें बहादुर शाह प्रथम ने सम्मानित किया था। उनका विवाह क़ाज़ी सैयद रफ़ी मोहम्मद की बेटी बीबी रस्ती से हुआ था। यही बीबी रस्ती आगे चलकर झिरका की राजनीतिक और सांस्कृतिक धारा में अहम नाम बनीं।
झिरका का किला भी इसी दौर की देन है। इसे ख़ान ज़मान ख़ान अली असगर ने बनवाया था, जो दिल्ली के मुगल सम्राट फर्रुखसियर के दरबारी और 5000 घोड़ों के प्रभारी एक पंज हज़ारी मनसबदार थे। वे बीबी रस्ती और नवाब कार तालाब ख़ान क़ाज़ी गुलाम मुस्तफ़ा के पुत्र थे। उन्होंने अपने करियर में मोअज्ज़म आबाद (सरगोधा) में फौजदारी, मुल्तान में तोपख़ाना प्रभारी, पटना में नायब सूबेदार और अवध में सूबेदार जैसे बड़े पद संभाले। उनकी उपस्थिति ने झिरका को मुगल राजनीति में खास मुकाम दिलाया।
1857 और ब्रिटिश राज
1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास का बड़ा अध्याय है और इसका असर झिरका पर भी पड़ा। विद्रोह के बाद 1858 में ब्रिटिश राज ने Firozpur Jhirka रियासत को समाप्त कर दिया। इस तरह से मेवात की यह महत्वपूर्ण सत्ता धीरे-धीरे अंग्रेज़ों के अधीन हो गई और स्थानीय शासकों का प्रभाव कम होता चला गया।
“छोटा बलूचिस्तान” की पहचान
1828 में ईस्ट इंडिया कंपनी के Imperial Gazetteer of India में फ़िरोज़पुर झिरका को “लघु बलूचिस्तान” कहा गया है। यह नाम इस वजह से पड़ा कि लोधी काल के दौरान बलूचिस्तान से आए लोगों ने यहाँ आकर बसावट की और लंबे समय तक सत्ता चलाई। माना जाता है कि इन्हीं बलूच शासकों ने आगे चलकर तावडू मकबरा परिसर जैसे स्थलों का निर्माण कराया।
झिरका के मकबरों और स्मारकों में बलूच स्थापत्य शैली का असर साफ़ दिखाई देता है। सबसे बड़ा मकबरा भी एक बलूच शासक का माना जाता है। यह उपनाम आज भी झिरका की ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा है।
जिला पुनर्गठन और आधुनिक दौर
आज का Firozpur Jhirka नूंह जिले का हिस्सा है, लेकिन पहले यह गुड़गांव जिले के अधीन आता था। 4 अप्रैल 2005 को हरियाणा सरकार की गज़ट अधिसूचना के बाद इसे नूंह जिले में शामिल कर लिया गया। तब से यह नूंह का उपमंडल है और प्रशासनिक दृष्टि से भी इसकी अहमियत बनी हुई है।
जनसांख्यिकी और सामाजिक स्थिति
झिरका की जनसंख्या समय के साथ बदलती रही।
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2001 की जनगणना के अनुसार, यहाँ की कुल आबादी 17,751 थी।
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पुरुष: 52%
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महिलाएँ: 48%
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औसत साक्षरता दर: 59.5% (पुरुष 70%, महिलाएँ 80%)
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6 वर्ष से कम उम्र के बच्चे: 19%
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अगर हम धर्म के आधार पर देखें तो 1911 की जनगणना के अनुसार झिरका में मुस्लिम जनसंख्या 53.33% थी, जबकि हिंदू जनसंख्या 40.37% थी। सिख और ईसाई धर्मावलंबियों की संख्या बहुत कम थी।
आज का झिरका हिंदू बहुल इलाका है, लेकिन यहाँ गंगा-जमुनी तहज़ीब हमेशा से रही है। यही कारण है कि यहाँ मंदिर और मकबरे दोनों ही एक साथ मौजूद हैं और लोग उनका सम्मान करते हैं।
Firozpur Jhirka का महत्व
फ़िरोज़पुर झिरका सिर्फ़ एक कस्बा नहीं है, बल्कि यह Mewat Heritage की असली पहचान है। यह कस्बा न सिर्फ़ राजनीतिक और प्रशासनिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी इसका विशेष स्थान है।
यहाँ के ऐतिहासिक स्थल और लोककथाएँ यह बताती हैं कि झिरका ने हर दौर में मेवात के भविष्य को आकार दिया। यही कारण है कि जब भी हम Top 5 Mewat Historical Place की बात करते हैं, तो Firozpur Jhirka का नाम सबसे पहले आता है। यहाँ के मकबरे, किले, मंदिर और दरगाहें इसे एक सच्चा Mewat Historical Palace बनाते हैं।
Firozpur Jhirka ke Aitihasik Sthal aur Local Experience
अब तक आपने नूंह, तावडू और तिजारा जैसे स्थलों को देखा। लेकिन जैसे ही आप Firozpur Jhirka पहुँचते हैं, तो महसूस होता है कि यहाँ का हर कोना इतिहास, संस्कृति और परंपरा से भरा हुआ है। यह कस्बा सिर्फ़ एक जगह नहीं, बल्कि पूरा अनुभव है। यहाँ घूमना मतलब है—Mewat History को अपनी आँखों से देखना और अपने स्वाद से महसूस करना।
पांडवकालीन शिव मंदिर (झिरकेश्वर महादेव मंदिर)
सबसे पहले बात करते हैं झिरका के दिल की—झिरकेश्वर महादेव मंदिर की। इसे पांडवकालीन शिव मंदिर भी कहा जाता है। अरावली की पहाड़ियों में स्थित यह प्राचीन गुफा मंदिर मान्यता के अनुसार उस समय का है जब पांडव अज्ञातवास में थे।
कहा जाता है कि पांडवों ने यहाँ तपस्या की और शिवलिंग की स्थापना की। यह शिवलिंग स्वयंभू माना जाता है। मान्यता है कि पांडवों ने यहाँ पानी की कमी के कारण भगवान शिव से वरदान माँगा और तभी से इस स्थान पर प्राकृतिक जलस्रोत प्रकट हुआ। यही कारण है कि यह इलाका हमेशा हरा-भरा माना जाता है।
यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। सावन के महीने और महाशिवरात्रि पर यहाँ भारी भीड़ जुटती है और मेले जैसा माहौल बन जाता है। धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सुंदरता का संगम इसे Mewat Heritage का एक अहम हिस्सा बनाता है।
ईदगाह वाला मकबरा
फ़िरोज़पुर झिरका की सबसे रहस्यमय धरोहरों में से एक है ईदगाह वाला मकबरा। यह कस्बे के बिजलीघर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है।
इस मकबरे की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसके भीतर एक शिलालेख मौजूद है, लेकिन वह अरबी/फारसी लिपि में है। कई बार इसे पढ़ने की कोशिश की गई, यहाँ तक कि गूगल ट्रांसलेट का भी सहारा लिया गया, लेकिन पूरी जानकारी सामने नहीं आई। यही कारण है कि इतिहासकारों ने भी इसके बारे में ज़्यादा कुछ नहीं लिखा।
मकबरे की गुम्बद प्याज़ के आकार की है और चारों ओर छोटे-छोटे कंगूरे बने हुए हैं। ऊपर जाने के लिए इसमें दो सीढ़ियाँ भी बनी हैं। देखने में यह अब भी भव्य लगता है, लेकिन इसकी हालत जर्जर है। यदि इसकी सही मरम्मत की जाए तो यह जगह पर्यटकों के लिए बड़ा आकर्षण बन सकती है।
कुतुब शाह मस्जिद
झिरका का अगला रत्न है कुतुब शाह मस्जिद। यह मस्जिद पहाड़ी की चोटी पर बनी हुई है और माना जाता है कि इसका निर्माण लगभग 1670 के आसपास हुआ था। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यहाँ कुतुब नाम का एक अल्लाह का बंदा साधना किया करता था। उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उनकी याद में यह मस्जिद बनाई।
मस्जिद भले ही आकार में बड़ी न हो, लेकिन इसकी सादगी और पहाड़ी पर बना होना इसे बहुत ख़ास बनाता है। यहाँ से अरावली की वादियाँ दिखती हैं और दूर तक फैला प्राकृतिक दृश्य किसी भी यात्री को मंत्रमुग्ध कर देता है। फोटो खींचने के लिए यह जगह बिल्कुल परफ़ेक्ट है।
नाहर खोल मस्जिद
थोड़ा नीचे उतरेंगे तो आपको मिलेगी नाहर खोल मस्जिद। यह मस्जिद बहुत पुरानी नहीं है—इसका निर्माण 2014 में हुआ था। लेकिन यह स्थान प्राचीन काल से ही साधकों और फ़कीरों का ठिकाना माना जाता रहा।
यहाँ पहले से ही एक छोटा-सा आला था जहाँ लोग ध्यान और इबादत किया करते थे। उनकी याद में इस मस्जिद का निर्माण किया गया। आज भी यहाँ नियमित नमाज़ होती है और पानी जैसी ज़रूरी सुविधाएँ मौजूद हैं।
मस्जिद के आस-पास की पहाड़ियाँ बिल्कुल हिमाचल की वादियों जैसी लगती हैं। यहाँ पहुँचकर आप समझेंगे कि Top 5 Mewat Historical Place में झिरका को क्यों गिना जाता है।
झिर तालाब और शक्ति पीठ मंदिर
मकबरे और मस्जिदों को देखने के बाद जब आप आगे बढ़ते हैं तो आपको झिर तालाब दिखाई देगा। यह तालाब कभी झरने के पानी से भरा रहता था, लेकिन अब पानी यहाँ तक पहुँच नहीं पाता। फिर भी, यह तालाब अब भी मौजूद है और झिरका की ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा है।
तालाब के पास ही एक शक्ति पीठ मंदिर भी है। यहाँ का माहौल बेहद शांत और आध्यात्मिक है। श्रद्धालु यहाँ आकर शांति का अनुभव करते हैं और मंदिर का आशीर्वाद पाते हैं।
फ़िरोज़पुर झिरका का स्वाद
इतिहास देखने के बाद अगर आपका मन कुछ चखने का करे तो फ़िरोज़पुर झिरका आपको निराश नहीं करेगा। यहाँ की मिठाई, बिरयानी और देसी स्टाइल बर्गर पूरे हरियाणा में मशहूर हैं।
मिठाई: बाज़ार के भीतर आपको दो बड़े नाम मिलेंगे—राजू मिठाईवाला और चावला मिठाई।
चावला मिठाई के बारे में तो यह भी कहा जाता है कि रात को जिन्न भी यहाँ से मिठाई ले जाते हैं और पैसे गल्ले पर रख जाते हैं। चाहे आप इस कहानी को मानें या न मानें, लेकिन मिठाई का स्वाद वाकई ऐसा है कि कोई भी खिंचा चला आए।
बर्गर: बस स्टैंड के पास देसी अंदाज़ में मिलने वाला बर्गर यहाँ की खास पहचान है।
बिरयानी: अगर आप non-veg पसंद करते हैं तो यहाँ की बिरयानी ज़रूर चखें। यह बिरयानी पूरे मेवात की खास डिश मानी जाती है।
गोश्त-रोटी: non-veg खाने वालों के लिए झिरका की गोश्त-रोटी का स्वाद कभी भुलाया नहीं जा सकता।
फ़िरोज़पुर झिरका की यह यात्रा सिर्फ़ ऐतिहासिक धरोहरों तक सीमित नहीं है। यह एक ऐसा अनुभव है जिसमें आप वास्तुकला, धार्मिक स्थल, प्राकृतिक सौंदर्य और स्वादिष्ट खानपान सबको एक साथ जीते हैं।
यही कारण है कि Firozpur Jhirka को हमेशा Top 5 Mewat Historical Place में गिना जाता है। यहाँ के मकबरे, मंदिर, मस्जिदें और साथ ही स्थानीय ज़ायके इसे एक सच्चा Mewat Historical Palace और Mewat Heritage की अनमोल धरोहर बनाते हैं।
12 दरवाज़ों वाला अज्ञात मकबरा – फ़िरोज़पुर झिरका
फ़िरोज़पुर झिरका का सबसे रहस्यमयी स्मारक है 12 दरवाज़ों वाला मकबरा, जिसे स्थानीय लोग बारादरी मकबरा भी कहते हैं। आज तक किसी इतिहासकार या शोधकर्ता को यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इस मकबरे में किसकी कब्र मौजूद है। यही कारण है कि इसे “अज्ञात मकबरा” कहा जाता है। इसकी पहचान से जुड़ा रहस्य ही इसे और अधिक रोचक बनाता है, क्योंकि यहाँ दफन व्यक्ति का नाम और वंश आज तक अज्ञात है।
रहस्य और संभावनाएँ
कई इतिहासकार इसे फ़िरोज़ ख़ान का मकबरा मानते हैं, जिसने 1419 ई. में फ़िरोज़पुर झिरका नगर की स्थापना की थी। इसका आधार वह प्रसिद्ध संधि है जो राजा हसन ख़ान मेवाती और राणा सांगा के बीच बाबर के विरुद्ध हुई थी। माना जाता है कि यह संधि इसी मकबरे के प्रांगण में संपन्न हुई थी।
यह तर्क इसलिए भी मज़बूत लगता है कि हसन ख़ान मेवाती और उनके वंशजों के लिए यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण था। यदि केवल राजनीतिक बातचीत करनी होती तो यह संधि अलवर (जहाँ उस समय मेवात की राजधानी और बाला क़िला था) में भी हो सकती थी। लेकिन हसन ख़ान का विशेष रूप से फ़िरोज़पुर झिरका आना और इस स्थल को चुनना इस बात की ओर संकेत करता है कि यह स्थान उनके पूर्वजों से गहराई से जुड़ा हुआ था।
अरावली घाटी और नगर का नाम
यह मकबरा अरावली पर्वतमाला की एक संकरी घाटी के निकट स्थित है, जो राजस्थान के तिजारा क्षेत्र को हरियाणा के झिरका कस्बे से अलग करती है। सदियों से यहाँ एक झरना बहता आया है, जिसे स्थानीय लोग “झिर” कहते थे। इसी झिर से इस नगर का नाम पड़ा।
इतिहासकार बताते हैं कि कोटिला के वीर नाहर ख़ान के भाई छज्जू ख़ान ने इस नगर को “फ़िरोज़पुर झिरका” नाम दिया था। उससे पहले यह इलाका केवल “झिर” के नाम से जाना जाता था।
बाबरनामा में उल्लेख
इस घाटी और मकबरे की प्रसिद्धि इतनी थी कि बाबर ने भी अपने अभियान के दौरान इसका उल्लेख अपनी आत्मकथा बाबरनामा में किया। बाबर लिखता है –
“मैं हुमायूँ के साथ घुड़सवारी करते हुए पिरोज़पुर पहुँचा। वहाँ एक भव्य बारादरी और झरना देखा। घाटी में कनेर के पुष्प खिले हुए थे, दृश्य इतना आकर्षक था कि उसका वर्णन कठिन है। मैंने तराशे गए पत्थरों से दस फ़ुट का जलाशय बनाने का आदेश दिया। हमने उसी घाटी में विश्राम किया और अगले दिन कोटिला के तालाब की ओर बढ़े।”
इतिहासकार मानते हैं कि बाबर द्वारा वर्णित यही घाटी आज झिर घाटी के नाम से जानी जाती है और यही वह स्थल है जिसे उसने “प्राकृतिक सौंदर्य की पराकाष्ठा” कहा।
राजनीतिक महत्व – खानवा की संधि
यह मकबरा केवल स्थापत्य का नमूना नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम रहा। कहा जाता है कि यहीं पर 1527 ई. में राणा सांगा और हसन ख़ान मेवाती ने बाबर के खिलाफ़ संधि की थी। यह संधि भारतीय इतिहास की दिशा बदलने वाली थी, क्योंकि खानवा की लड़ाई में मेवात और अन्य राजपूत शासकों ने एकजुट होकर बाबर का सामना करने का निश्चय किया।
भले ही हसन ख़ान इस युद्ध में शहीद हो गए, लेकिन यह मकबरा उस संधि और मेवात के साहस का मौन गवाह है।
स्थापत्य कला: Mewat Heritage का यह स्मारक स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण है।
चौकोर आकार में निर्मित इस मकबरे में चार बड़े और आठ छोटे प्रवेश द्वार हैं। बारह दरवाज़ों की वजह से ही इसे “बारादरी” कहा गया। दीवारों और मेहराबों पर उत्कृष्ट प्लास्टर का काम है, जिन पर पुष्पाकृतियाँ और अरबी लिपि में कुरान की आयतें अंकित हैं।
इसका गुम्बद अर्धगोलाकार है, जो एक सुदृढ़ अष्टकोणीय आधार पर टिका है। चारों कोनों पर बनी मीनारें समय की मार झेल चुकी हैं, लेकिन अब भी इसकी भव्यता झलकती है।
वर्तमान स्थिति
आज यह मकबरा एक मदरसे की देखरेख में है। प्रबंधन समय-समय पर इसकी मरम्मत करता है, लेकिन मौसम और उपेक्षा की वजह से इसका बहुत हिस्सा जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। इसके बावजूद, इसकी भव्यता और रहस्यात्मकता आज भी intact हैं।
फ़िरोज़पुर झिरका का यह 12 दरवाज़ों वाला अज्ञात मकबरा सिर्फ़ एक स्मारक नहीं, बल्कि Mewat History का जीवंत दस्तावेज़ है। यहाँ की रहस्यमयी पहचान, बाबरनामा का उल्लेख, खानवा की संधि और स्थापत्य कला—ये सब मिलकर इसे Top 5 Mewat Historical Place में स्थान दिलाते हैं।
यह मकबरा आज भी पर्यटकों, शोधकर्ताओं और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है और यही मेवात की धरोहरों की सबसे बड़ी खूबी है कि इनमें हर एक इमारत एक नई कहानी, एक नया रहस्य और एक नया रोमांच समेटे हुए है।
समापन – मेवात की धरोहरों की ओर अगला कदम
यह Artical अभी तक काफी लंबा हो चुका है इसलिए हम इसका समापन यही कर रहे हैं। इस लेख के दूसरे भाग में हमने मेवात की कुछ अनमोल धरोहरों को करीब से जाना। नूंह से शुरुआत करते हुए हमने तावडू का किला, तिजारा फोर्ट और फ़िरोज़पुर झिरका के कई अद्भुत ऐतिहासिक स्थलों का दर्शन किया। हर जगह ने हमें यह एहसास दिलाया कि Mewat History सिर्फ़ ईंट-पत्थरों का ढेर नहीं है, बल्कि यह साहस, संस्कृति और एकता की जिंदा गवाही है।
फिरोज़पुर झिरका की गलियों से लेकर अरावली की घाटियों तक, हर एक कोना हमें Top 5 Mewat Historical Place की इस श्रृंखला में एक नई कहानी सुनाता रहा। पर अभी भी यह यात्रा अधूरी है। इस भाग में हमने कई रहस्यमयी स्थलों को देखा, मगर कुछ बेहद खास स्थान जैसे – Firozpur Jhirka का देहरा मंदिर और मेरी सबसे प्रिय जगह शाद की बैठक अभी बाकी हैं।
इसी तरह, आने वाले Part 3 में हम और भी रोचक अध्याय खोलेंगे।
Shad Ki Baithak की कहानी – जहाँ स्थानीय लोकगीत अब भी गूंजते हैं।
Dehra Mandir– जिसका इतिहास और आस्था एक अलग ही रंग पेश करते हैं।
पिंगावा नगर का इतिहास – और
कामां के 84 खंभे (जिन्हें 84 खंभों वाली मस्जिद भी कहा जाता है) का रहस्य।
ये स्थल न सिर्फ़ मेवात बल्कि पूरे भारत की Mewat Heritage का गौरव हैं। भाई, आपको यह भाग कैसा लगा, हमें कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताएँ।
👉 अगले भाग यानी Part 3 का लिंक भी आपको यहीं मिलेगा, और अगर आपने अभी तक Part 1 नहीं पढ़ा है तो उसका लिंक भी यहीं उपलब्ध है।
अगर आपको हमारी यह Mewat Historical Palace श्रृंखला पसंद आ रही है तो कृपया इस लेख को अपने सोशल मीडिया पर शेयर करें, ताकि और लोग भी मेवात की इस अनकही विरासत को जान सकें। साथ ही, अगर आपके आसपास भी कोई ऐतिहासिक स्थल है, तो हमें बताइए – हम उस पर भी इसी तरह विस्तृत लेख लिखकर आपके सामने लाएँगे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
❓ क्या मेवात सच में इतना खूबसूरत है?
✅ हाँ, बिल्कुल! मेवात सचमुच बेहद खूबसूरत है। यहाँ की अरावली पर्वतमाला, हरे-भरे जंगल, प्राचीन किले और धार्मिक स्थल इसे एक अलग ही पहचान देते हैं। अक्सर मीडिया में मेवात की सही तस्वीर नहीं दिखाई जाती, लेकिन जब आप खुद यहाँ आएँगे तो पाएँगे कि यह इलाका इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता का खजाना है।
❓ क्या मेवात में किसी ऐतिहासिक स्थल का दोबारा निर्माण हुआ है?
✅ अब तक मेवात के ऐतिहासिक स्थलों का बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण या संरक्षण नहीं किया गया है। अक्सर चर्चाएँ और योजनाएँ तो होती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर काम बहुत कम हुआ है। यही वजह है कि कई धरोहरें धीरे-धीरे खंडहर बनती जा रही हैं।
❓ क्या मेवात के सभी ऐतिहासिक स्थल अभी तक सुरक्षित हैं?
✅ अभी तक तो हाँ, लेकिन यह सुरक्षा बहुत मज़बूत नहीं है। कई किले, मकबरे और मंदिर समय और मौसम की मार झेल रहे हैं। अगर जल्द ही इनका संरक्षण और पुनर्निर्माण नहीं किया गया तो आने वाले समय में कई धरोहरें हमेशा के लिए मिट सकती हैं। यही कारण है कि इन्हें बचाने और इनके महत्व को समझाने की ज़रूरत है।
Mewat Historical Palace: Top 5 Mewat History Sites (Part 1)