तालेबान का उदय 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ जब अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी.
पशतूनों के नेतृत्व में उभरा तालेबान अफ़ग़ानिस्तान के परिदृश्य पर 1994 में सामने आया.
माना जाता है कि तालेबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के ज़रिए उभरा जिसमें ज़्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था.
80 के दशक के अंत में सोवियत संघ के अफ़ग़ानिस्तान से जाने के बाद वहाँ कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरु हो गया था और मुजाहिद्दीनों से भी लोग परेशान थे
ऐसे हालात में जब तालेबान का उदय हुआ था तो अफ़ग़ान लोगों ने उसका स्वागत किया था.
कुछ ऐसे हुआ तालिबान का उदय
शुरु शुरु में तालेबान की लोकप्रियता इसलिए थी क्योंकि उन्होंने भ्रष्ट्राचर पर लगाम कसी, अव्यवस्था पर अंकुश लगाया और अपने नियंत्रण में आने वाले इलाक़ों को सुरक्षित बनाया ताकि लोग व्यवसाय कर सकें.
दक्षिण-पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान से तालेबान ने जल्द ही अपना प्रभाव बढ़ाया. सितंबर 1995 में तालेबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया.
इसके एक साल बाद तालेबान ने बुरहानुद्दीन रब्बानी सरकार को सत्ता से हटाकर अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा किया.
1998 आते-आते लगभग 90 फ़ीसदी अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान का नियंत्रण हो गया था.
गंभीर आरोप भी लगे
धीरे-धीरे तालेबान पर मानवाधिकार उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप लगे.
जैसे 2001 में अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद तालेबान ने विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया.
पाक-अफ़ग़ान सीमा पर पशतून इलाक़े में तालेबान का कहना था कि वो वहाँ शांति और सुरक्षा का माहौल लाएगा और सत्ता में आने के बाद शरिया लागू करेगा.
पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दोनों जगह तालेबान ने या तो इस्लामिक क़ानून के तहत सज़ा लागू करवाई या ख़ुद ही लागू की- जैसे हत्या के दोषियों को सार्वजनिक फाँसी, चोरी के दोषियों के हाथ-पैर काटना.
पुरुषों को दाढ़ी रखने के लिए कहा गया जबकि स्त्रियों को बुर्क़ा पहनने के लिए कहा गया.
तालेबान ने टीवी, सिनेमा और संगीत के प्रति भी कड़ा रवैया अपनाया और 10 वर्ष से ज़्यादा उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर भी रोक लगाई.
अमेरिका ने भी किया हमला
दुनिया का ध्यान तालेबान की ओर तब गया जब न्यूयॉर्क में 2001 में हमले किए गए. अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान पर आरोप लगाया गया कि उसने ओसामा बिन लादेन और अल क़ायदा को पनाह दी है जिसे न्यूयॉर्क हमलों को दोषी बताया जा रहा था.
सात अक्तूबर 2001 में अमरीका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया.
9/11 के कुछ समय बाद ही अमरीका के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने तालेबान को अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता से बेदख़ल कर दिया हालांकि तालेबान के नेता मुल्ला उमर और अल क़ायदा के बिन लादेन को नहीं पकड़ा जा सका.
पाकिस्तान इस बात से इनकार करता रहा है कि तालेबान के उदय के पीछे उसका ही हाथ रहा है. लेकिन इस बात में शायद ही कोई शक़ है कि तालेबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ली.
90 के दशक से लेकर 2001 तक जब तालेबान अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में था तो केवल तीन देशों ने उसे मान्यता दी थी-पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब. तालेबान के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने वाला भी पाकिस्तान आख़िरी देश था.
20 साल बाद फिर वापस तालिबान
पिछले कुछ समय से अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान का दबदबा फिर से बढ़ा है और वो पाकिस्तान में भी मज़बूत हुआ है. विशलेषकों का कहना है कि वहाँ तालेबान और कई चरमपंथी संगठनों में आपसी तालमेल है.
पाकिस्तानी धड़े के मुखिया बैतुल्लाह महसूद रहे हैं जिनके संगठन तहरीक तालेबान पाकिस्तान पर कई आत्मघाती हमले करने का आरोप है. कुछ दिन पहले अमरीका और पाकिस्तान ने दावा किया था कि बैतुल्लाह महसूद ड्रोन हमले में मारे गए हैं लेकिन तालेबान इससे इनकार कर रहा है.
माना जाता है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान का नेतृत्व अब भी मुल्ला उमर के हाथों में है. 1980 में सोविघत संघ की सेना के साथ लड़ते हुए उनकी एक आँख चली गई थी.
उमर और उनके साथी अब तक पकड़ से बाहर हैं और माना जाता है कि वे फिर से सर उठा रहे तालेबान को दिशा निर्देश देते हैं.
हालांकि अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान दोनों जगह अब इन लोगों पर पाकिस्तानी सेना और नैटो का दबाव बढ़ रहा है.
अफ़ग़ानिस्तान में नैटो ने सैनिकों की संख्या लगातार बढ़ाई है लेकिन बावजूद उसके तालेबान का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक हमले लगातार बढ़े हैं- 2001 के बाद से ऐसी हिंसा नहीं देखी गई.
इस दशक के शुरुआत में तालेबान कुछ समय के लिए पीछे ज़रूर हटा था और इस दौरान उसके कम लड़ाके हताहत हुए और साथ ही उसने अपना ज़खीरा भी बढ़ाया. इस कारण अब तालेबान पूरे ज़ोर के साथ वापस लौटा है.
तालिबान 2.0 मैं और 1.0 में क्या फर्क है
साल 1996 और साल 2021 के ऊपर के दो वाक़ये - तब और अब के तालिबान के वो चेहरे हैं जो मज़ार-ए-शरीफ़ और काबुल के हालात को तालिबान शासन के दौरान बयान करते हैं. दोनों में बहुत फ़र्क हो- ऐसा आपको नज़र नहीं आएगा.
लेकिन इन दोनों घटनाओं के बीच तालिबान का एक तीसरा चेहरा भी मंगलवार की देर शाम दुनिया को नज़र आया.
अफ़ग़ानिस्तान पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने के बाद तालिबान का पहला संवाददाता सम्मेलन मंगलवार को देर शाम काबुल में आयोजित हुआ.
तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद अपने दो और साथियों के साथ कैमरों के सामने पहली बार आए. स्थानीय भाषा में उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए तालिबान का वो 'उदार' चेहरा दिखाया जो 1996-2001 वाले तालिबान से बिल्कुल अलग था.
जबीहुल्लाह मुजाहिद ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, "हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. हम यह तय करेंगे कि अफ़ग़ानिस्तान अब संघर्ष का मैदान नहीं रह गया है. हमने उन सभी को माफ़ कर दिया है जिन्होंने हमारे ख़िलाफ़ लड़ाइयां लड़ीं. अब हमारी दुश्मनी ख़त्म हो गई है. हम शरिया व्यवस्था के तहत महिलाओं के हक़ तय करने को प्रतिबद्ध हैं. महिलाएं हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने जा रही हैं."
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यानी आज का तालिबान टीवी कैमरे के सामने बात तो महिलाओं को काम करने की छूट और बदला न लेने की कर रहा है, लेकिन ज़मीन पर वो स्थिति दिखाई नहीं पड़ती. इसलिए चर्चा है कि क्या 2021 का तालिबान 1996 वाले तालिबान से काफ़ी अलग है? या ये महज़ एक दिखावा है? या फिर समय की माँग?
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