Saturday, August 28, 2021

हाय मैं नासिर हुसैन आज के इस ब्लॉग में मैं आपको बताऊंगा तालिबान talibaan की कहानी काबुल में आतंकवादी और अफगानिस्तान के हारने की कहानी ‌। अफगानिस्तान इस जंग को क्यों हारा |


talibaan तालिबान कौन है.  और कैसे इतना मजबूत हुआ इतना पैसा इनके पास आया कहां से आया | जो इनके पास इतने बड़े बड़े हथियार थे ‌। इन सब चीजों की पीछे की कहानी में ईस आर्टिकल में आपको बताने की कोशिश करूंगा ‌‌। काबुल मैं तालिबान talibaan कैसे घुसे इतने बड़े शहर पर कैसे  इतनी जल्दी कब्ज़ा करलिया | किया यह आतंकवादी थे |

talibaan तालिबान
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तालिबान talibaan और अफगानिस्तान अमेरिका की बहुत लंबी कहानी है | इसको इसी एक आर्टिकल में तो लिखा नहीं जा सकता |  पर तालिबान के पास पैसा कैसे आया शुरुआत किसी से करते हैं ‌। इस कड़ी में मैंने दो आर्टिकल पहले और भी लिखे थे तालिबान कौन है‌। और कहां से आए थे ‌।


तालिबान talibaan के पास पैसा अफीम से आया है

आज जो आप तालिबान देख रहे हैं‌। अब से 20 साल पहले पहले भी तालिबान आया था‌। पर वह कमजोर था उसके पास पैसे नहीं थे ‌। अब का तालिबान काफी ज्यादा मजबूत और ताकतवर है ‌। अब इसके पास बेशुमार पैसा भी है ‌। और सबसे ज्यादा पैसे की इनकम इसकी अफीम की खेती से ही आती है ‌। 60% परसेंट सालाना इनकम ईसकी अफीम से होती है ‌। पर इसके विपरीत तालिबान अपना दावा दूसरा ही पेश करता रहता है ‌।
talibaan तालिबान का दावा है कि उसने अफ़ग़ानिस्तान में अपने पिछले शासन के दौरान अफ़ीम की खेती पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी जिसके चलते ग़ैर-क़ानूनी ड्रग्स का कारोबार थम गया था.
हालांकि 2001 में अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम के उत्पादन में कमी ज़रूर देखी गई थी, लेकिन बाद के सालों में यह देखने को मिला है कि तालिबान नियंत्रित इलाकों में अफ़ीम की खेती बढ़ती गई.



सबसे ज्यादा अफीम कहां होती है


अफ़ीम को इस तरह से परिष्कृत किया जाता है कि उससे काफ़ी अधिक नशा देने वाले हेरोइन जैसे ड्रग्स तैयार होते हैं।
यूनाइटेड नेशंस ऑफ़िस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम्स (यूएनओडीसी) के मुताबिक़, अफ़ीम का सबसे बड़ा उत्पादक देश अफ़ग़ानिस्तान है‌।
दुनिया भर में अफ़ीम के कुल उत्पादन का 80 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा अफ़ग़ानिस्तान में होता है.
2018 में यूएनओडीसी के आकलन के मुताबिक़, अफ़ग़ानिस्तान की कुल अर्थव्यवस्था में 11 प्रतिशत की हिस्सेदारी अफ़ीम उत्पादन की थी.
अफीम के ऊपर तालिबान ने सरकार बनने के बाद कहा है ‌। तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा है, 
जब हमलोगों की सरकार रही है तब ड्रग्स का उत्पादन नहीं हुआ है. हम लोग एक बार फिर अफ़ीम की खेती को शून्य तक पहुंचा देंगे. कोई तस्करी नहीं होगी। 



तालिबान talibaan  का रिकॉर्ड अफीम की खेती में


मेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, तालिबान के शासन में अफ़ीम की खेती बढ़ी है. यह 1998 के 41 हज़ार हेक्टेयर से 2000 में 64 हज़ार हेक्टेयर तक पहुंच गयी थी‌‌।
दुनिया के कुल अफ़ीम उत्पादन का क़रीब 39% हिस्सा हेलमंद प्रांत में होता है और इस प्रांत के अधिकांश हिस्से पर तालिबान का नियंत्रण रहा है। 
लेकिन जुलाई, 2000 में तालिबान ने अपने नियंत्रण वाले हिस्से में अफ़ीम की खेती पर पाबंदी लगा दी थी‌।
मई, 2001 की एक यूएन रिपोर्ट के मुताबिक़, 'तालिबान नियंत्रित इलाक़ों में अफ़ीम उत्पादन पर लगी पाबंदी पूरी तरह से कामयाब रही है‌‌।
तालिबान की पाबंदी के दौर में 2001 और 2002 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अफ़ीम और हेरोइन पकड़े जाने के मामले भी कम देखने को मिले थे‌।
हालांकि इसके बाद स्थिति में काफ़ी बदलाव देखने को मिला है।
वैसे पिछली सरकार की ओर से नियंत्रित खेती किए जाने के बाद भी यह स्पष्ट है कि अधिकांश अफ़ीम तालिबान नियंत्रित इलाक़ों में उत्पादित हो रहा था।
उदाहरण के लिए हेलमंद दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान का प्रांत है. इसके अधिकांश ज़मीन पर 2020 में अफ़ीम की खेती हो रही थी, वह भी तब जब वहां तालिबान का नियंत्रण था‌।



अफीम से तालिबान talibaan की इनकम काबुल कीबर्बादी


अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम की खेती रोज़गार का सबसे अहम ज़रिया है,  यूएनओडीसी के अफ़ग़ानिस्तान के अफ़ीम सर्वे के मुताबिक़, क़रीब एक लाख 20 हज़ार लोग इस पर निर्भर थ‌‌।
अमेरिकी विदेश विभाग के मुताबिक़, तालिबान को अफ़ीम पर टैक्स लगाने से आमदनी होती है इसके अलावा ग़ैर-क़ानूनी ढंग से अफ़ीम रखने और उसकी तस्करी करने पर भी अप्रत्यक्ष तौर पर आमदनी होती है. अफ़ीम उगाने वाले किसानों ने 10% टैक्स लिया जाता है‌।
अफ़ीम से हेरोइन बनाने वाले प्रोसेसिंग लैब से भी टैक्स वसूला जाता है और इसके कारोबारी भी टैक्स चुकाते हैं. एक आकलन के मुताबिक़, ग़ैरक़ानूनी ढंग से इस ड्रग्स के कारोबार से तालिबान को कम से कम 100 से 400 मिलियन डॉलर के बीच सालाना आमदनी होती है। 
अमेरिकी वॉचडॉग स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल फ़ॉर अफ़ग़ान रिकंस्ट्रक्शन के मुताबिक़, तालिबान की सालाना आमदनी में 60% हिस्सा ग़ैरक़ानूनी ड्रग्स कारोबार से आता है‌।



talibaan तालिबान की कहानी काबुल मैं आतंकवादी | अफगानिस्तान 


अफ़ग़ान पत्रकार बिलाल सरवरी ने साल 2001 में तालिबान के पांव उखड़ते देखे और अपने देश को फिर से खड़ा होते देखा है‌।
अब वो मानते हैं कि अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति क़ायम करने का एक अच्छा मौका गंवा दिया‌।
पिछले दो हफ़्तों के दौरान उनके देश में घटनाओं ने एक भयावह मोड़ लिया है, 
जिससे ख़ुद की उनकी जान ख़तरे में पड़ गई. उनकी कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी।
मैं साल 2001 में पाकिस्तान के पेशावर के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल में कालीन बेचने वाला सेल्समैन था. काम के लिहाज़ से वो एक आम सा दिन था‌।
काम करते-करते अचानक टीवी पर नज़र गई और जो देखा उसे मैं कभी नहीं भू​ल सकता. मैंने न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से विमान टकराने का लाइव फ़ुटेज देखा और फिर एक अन्य विमान पेंटागन की इमारत से टकराया ‌।
उसके बाद हमारी ज़िंदगी ही बदल गई।
पूरी दुनिया का ध्यान अफ़ग़ानिस्तान पर टिक गया. तब अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का राज था. तालिबान पर आरोप लगा कि उसने हमले के प्रमुख संदिग्ध- ओसामा बिन लादेन और उनके सगंठन अल-क़ायदा को अपनी पनाह में रखा है‌।
अगले ही दिन होटल की लॉबी में अचानक विदेशी मीडिया के सैंकड़ो लोग जमा हो गए थे. उन्हें किसी ऐसे किसी व्यक्ति की तलाश थी जो अंग्रेज़ी बोलना जानता हो और पास के बॉर्डर को पार करके जब वो अफ़ग़ानिस्तान जाएं तो उनके लिए दुभाषिए का काम कर सके. मैंने वह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और तब से मेरी यात्रा लगातार जारी है‌।

talibaan तालिबान



दहशत के वह दिन रात को भी ना सोना


मैं बचपन से अफ़ग़ानिस्तान के बाहर रह रहा था. 1990 के दशक में सोवियत सेना के जाने के बाद गृह युद्ध भड़का और हमारा परिवार वहां से पलायन कर गया.
जब कई साल बाद मैं पहली बार काबुल पहुंचा तो वहां हुई बर्बादी देखकर दंग रह गया. इमारतें मलबे का ढेर बन चुकी थीं. उनमें लगाया गया लोहा कबाड़ बन गया था. काबुल की चहल-पहल गायब हो चुकी थी. चारों ओर गरीबी और डर फैला हुआ था‌।
शुरू में मैं अबू धाबी टीवी के साथ काम कर रहा था और पांच अन्य पत्रकारों के साथ इंटर कॉन्टिनेंटल होटल में रह रहा था. हर रोज मेरी नींद डर के साए में खुलती थी, क्योंकि काबुल अमेरिकी हवाई हमलों का मुख्य केंद्र बन गया था. अल-क़ायदा और तालिबान के लड़ाके हमारे होटल आते-जाते रहते थे. हमने उन्हें पास की गलियों में घूमते देखा. रात भर विस्फोट होते रहते थे. ऐसे में मुझे डर लगता था कि कहीं अगला नंबर हमारे होटल का न हो‌।



नया अफगानिस्तान भाग गए तालिबान


और फिर दिसंबर की एक सुबह, तालिबान काबुल छोड़कर चले गए.
इसके कुछ घंटे बाद, लोग अपनी दाढ़ी कटवाने के लिए नाई की दुकानों पर उमड़ पड़े. साथ ही, धमाकों से वीरान हो चुकी गलियों को सुरीले अफ़ग़ानी संगीत ने भर दिया. उस सुबह अफ़ग़ानिस्तान का फिर से जन्म हुआ था.
उस घटना के बाद, मैं आम अफ़ग़ानों के जीवन को गहराई से सीधे तौर पर देख रहा था, अब मैं अनुवादक की बजाय पत्रकार बन गया था. तोरा बोरा की लड़ाई कवर करने से लेकर, पख़्तिया में शाई कोट की लड़ाई तक, मैंने तालिबान को हारते देखा था‌।
उनके लड़ाके पहाड़ी ग्रामीण इलाकों में छिप गए, जबकि उनके नेता पाकिस्तान भाग गए. पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे लगता है कि वह मौका हाथ से निकल गया‌।
अमेरिका को उस समय तालिबान के साथ शांति समझौते के लिए बैठना चाहिए था. मैंने तालिबान के आम लड़ाकों के बीच अपने हथियार डालने और अपना जीवन फिर से शुरू करने की बेचैनी देखी थी
हालांकि अमेरिकी ऐसा नहीं चाहते थे. मेरी रिपोर्टिंग से, मुझे और कई दूसरे अफ़ग़ानों को ये महसूस हुआ था कि अमेरिका की इच्छा 9/11 की घटना का बदला लेने की थी‌।


फिर अमेरिका ने की गलतियां


गरीब और निर्दोष अफ़ग़ान ग्रामीणों पर बमबारी की गई. उन्हें हिरासत में लिया गया. विदेशी ताक़तों को युद्ध करते रहने की अनुमति देने की अफ़ग़ान सरकार की इच्छा ने उसके और आम लोगों के बीच एक खाई पैदा कर दी‌।
मुझे साफ तौर पर एक घटना याद है, जब अमेरिकी सैनिकों ने ग़लती से काबुल और गरदेज़ के बीच के राजमार्ग पर सैयद अबासिन नाम के एक टैक्सी ड्राइवर को गिरफ़्तार करके हिरासत में ले लिया था‌।
उनके पिता रोशन जो बुजुर्ग थे और एरियाना एयरलाइंस के एक नामी कर्मचारी थे‌।
 जब अमेरिकी सैनिकों की ग़लती सामने लाई तब अबासन को छोड़ दिया गया. हालांकि अन्य ऐसे लोग इतने भाग्यशाली नहीं थे‌।
अमेरिकियों ने काफी सख़्त रुख अपनाया था. इससे आम अफ़ग़ानों को जान-माल का काफी नुक़सान उठाना पड़ा‌।
हताहत होने वाले अमेरिकी सैनिकों की संख्या को कम करने के लिए अमेरिका ने जमीनी सैनिकों की बजाय बम और ड्रोन को प्राथमिकता दी‌।
 धीरे-धीरे लोगों के बीच अमेरिका को लेकर भरोसा लगातार कम होता गया और शांति वार्ता की उम्मीदें फीकी पड़ती गईं‌।
 कुछ सालों के लिए ही सही पर यह पता चला ​कि अफ़ग़ानिस्तान क्या बन सकता है? 
 उस समय मैं बिना मौत के डर के खुली सड़क पर हजारों किलोमीटर गाड़ी चला सकता था‌।
  मैंने देर रात या अहले सुबह काबुल से ख़ोस्त और पक्तिका प्रांतों के दूरदराज के गांवों के साथ पूरे देश का भ्रमण किया. 
  इस दौरान, अफ़ग़ानिस्तान के असाधारण ग्रामीण इलाकों को जानना भी संभव हो गया था‌।


2003 से फिर बदला अफगानिस्तान


उस समय विद्रोहियों ने नए सिरे से हमला करना शुरू कर दिया था‌। मुझे अच्छे से याद है कि एक दिन एक विशाल 'ट्रक बम' काबुल के बीचोबीच फट गया‌।
 इस धमाके ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया और खिड़कियों को चकनाचूर कर दिया‌।
  मैं घटनास्थल पर पहुंचने वाले कुछेक पत्रकारों में से एक था‌।
   मैंने वहां जो देखा था, उसके बारे में सोचकर अब भी सिहर जाता हूं. वहां चारों ओर खून, मांस और लाशें फैली थीं. वैसा मंज़र तब मैंने पहली बार देखा था‌।
और सब बर्बाद हो गया. बाद में हमें समझ में आया कि अफ़ग़ान और विदेशी सुरक्षा बलों के साथ निहत्थे नागरिकों के खिलाफ़ शहर के बीचोबीच ट्रक बमों और आत्मघाती धमाकों से हमला, संघर्ष के एक बहुत ही क्रूर अध्याय की शुरुआत के प्रतीक होंगे. इसके जवाब में, अमेरिका ने हवाई हमले बढ़ा दिए. उसके बाद, तालिबान को लक्ष्य बनाते हुए गांवों में होने वाली शादियों और अंतिम यात्राओं पर भी हवाई हमले होने लगे.
आम अफ़ग़ानी आसमान देखकर भी डरने लगे. ख़ुद को प्रसन्न रखने के लिए सूर्योदय, सूर्यास्त या तारों को देखने के दिन लद गए.
एक बार कंधार शहर के क़रीब, हरी-भरी अरगंडब नदी घाटी की यात्रा पर, मैं देश के सबसे प्रसिद्ध अनारों को देखने को बेचैन था‌।
 लेकिन जब मैं वहां पहुंचा तो पाया कि वहां अनार की बजाय लोगों का ख़ून बह रहा था‌।
  मैंने जो देखा था‌। वह देश के गांवों में जो हो रहा था, उसकी एक छोटी सी झलक थी‌।




अमेरिका और तालिबान में फिर हुई बमबारी


तालिबान अपने लड़ाकों को घाटी में धकेलने को बेताब था, लेकिन सरकारी बल उन्हें पीछे धकेलने की हरसंभव कोशिश कर रहे थे‌। इलाके पर दोनों पक्षों का नियंत्रण आगे-पीछे होता रहा‌।
इस माहौल में आम अफ़ग़ानी फंस गए थे‌।
उस दिन मैंने 33 अलग-अलग हवाई हमलों की गिनती की थी. इसके जवाब में, तालिबान के शुरू किए गए आत्मघाती कार बम हमलों की गिनती करनी मैंने छोड़ दी. घर, पुल और बाग़ सभी नष्ट हो गए.
अमेरिका के कई हवाई हमले तो ग़लत खुफ़िया जानकारी के आधार पर किए गए. ऐसी सूचनाएं किसी ऐसे इंसान ने दिए थे, जो गांव में अपनी निजी लड़ाई या भूमि विवाद को सुलझाना चाहता था. जमीन पर मौजूद सुरक्षा बलों और आम अफ़ग़ानों के बीच बढ़ रही भरोसे की कमी का यह मतलब था कि अमेरिकी सेना झूठ का सहारा लेकर सच नहीं बता सकती थी. तालिबान ने इन हमलों का इस्तेमाल अफ़ग़ानों को उनकी ही सरकार के खिलाफ करने के लिए किया. यह स्थिति उनके भर्ती अभियान के लिए उपजाऊ जमीन तैयार कर दी.
2001 से 2010 के बीच, अफ़ग़ानिस्तान की 9/11 पीढ़ी यानी भारत, मलेशिया, अमेरिका और यूरोप पढ़ने गए युवा अफ़ग़ानी, देश के पुनर्निर्माण के प्रयास में शामिल होने को अपने वतन लौट आए थे. इस नई पीढ़ी को एक महान राष्ट्रीय कायाकल्प कार्यक्रम का हिस्सा बनने की उम्मीद थी. इसकी बजाय, उन्होंने ख़ुद को नई चुनौतियों से घिरा पाया. वे देख रहे थे कि देश में अमेरिका द्वारा तैयार किए गए नए सरदार उभर आए थे. और उनके बीच घोर भ्रष्टाचार मौजूद था. जब किसी देश की वास्तविक दशा उसके आदर्शों से बहुत दूर चली जाती है, तो रोजमर्रा की व्यावहारिकता ही इंसान की मुख्य संचालक बन जाती है. अब देश में माफ़ी की संस्कृति प्रचलित होने लगी थी‌।



अफगानिस्तान के खूबसूरती का नजारा है मायावी


इसकी खूबसूरत घाटियां, नुकीली चोटियां, घुमावदार नदियों और छोटी बस्तियों का नज़ारा बेहद आम है. लेकिन इससे जो शांति देने वाली तस्वीर उभरती है, वाकई में इससे आम अफगानों को कोई शांति नहीं मिलती. आप अपने घर में सुरक्षा के बिना शांति नहीं पा सकते.
क़रीब चार साल पहले मैं वर्दाक प्रांत के एक छोटे से गांव में एक शादी में गया था. जब रात हुई और लोग इकट्ठे हुए तो बिल्कुल खुले आसमान के नीचे खाने लगे. अचानक ड्रोन और विमानों की आवाज से पूरा आसमान गूंज उठा. ज़ाहिर सी बात है कि पास में एक ऑपरेशन चल रहा था. इस शोरगुल ने शादी के जश्न को क़यामत के माहौल में बदल डाला था।
उस रोज़ मैंने बाद में, खुद को एक तालिबानी लड़ाके के पिता के साथ काबुली पुलाव, रोटी और गोश्त बांटते हुए पाया. उन्होंने हेलमंद में अपने बेटे की हत्या के बारे में विस्तार से बताया. उनका बेटा तब केवल 25 का था और अपने पीछे एक विधवा और दो छोटे बच्चों को छोड़ गया था।
मैं तब अवाक रह गया, जब उसके पिता ने उदासी भरे गर्व के साथ बताया था कि वह भले एक मामूली किसान है, पर उसका बेटा प्रतिभाशाली लड़ाका था, जो अलग जीवन के लिए लड़ने में विश्वास करता था. मैं उस बूढ़े शख़्स के चेहरे पर केवल दर्द और उदासी देख सकता था. तालिबान के नियंत्रण में, शादियों में भी संगीत की अनुमति नहीं थी. इसकी बजाय, गांव वालों की सभी बैठकें ऐसी ही दुखद कहानियों से भरी हुई थीं.
लोग अक्सर तालिबान को ख़त्म करने की चाह में इंसानी कीमत को नज़रअंदाज़ कर देते हैं. देश में विधवा औरतों, अपने बेटों को खोने वाले पिताओं और युद्ध में अपंग हो चुके युवाओं की भरमार हो गई.
जब मैंने तालिबानी लड़ाके के पिता से पूछा कि वे क्या चाहते हैं, तो उनकी आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने कहा, "मैं लड़ाई का अंत चाहता हूं. अब बहुत हो गया. मैं एक बेटे को खोने का दर्द जानता हूं. अब अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रक्रिया शुरू करने और युद्धविराम लगाने की जरूरत है."

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सपने में भी नहीं सोचा काबुल पर भी कब्जा कर लेगा तालिबान


हमने बीते कुछ हफ़्तों में अपनी प्रांतीय राजधानियों को तालिबान के हवाले कर दिया. सुरक्षा बलों ने बिना लड़ाई किए आत्मसमर्पण कर दिया. हालांकि मैंने नहीं सोचा था कि वे काबुल में घुसकर शहर पर कब्जा कर लेंगे.
काबुल पर क़ब़्जा होने के एक रात पहले, जिन अधिकारियों से मेरी बात हुई थी, वे तब सोच रहे थे कि वे अमेरिकी हवाई हमलों की मदद से कब्ज़ा बनाए रख सकते हैं. वे कह रहे थे कि एक समावेशी सरकार बनाने के लिए सत्ता के शांतिपूर्ण परिवर्तन की बात चल रही है. लेकिन तभी पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी हेलीकॉप्टर से काबुल छोड़कर चले गए. और अचानक से तालिबान काबुल में आ गए. डर हवा में घूम रहा था कि तभी तालिबान को वापस आता देखकर सब बहुत डर गए.


तब मुझे बताया गया कि मेरी जान को ख़तरा है.


मैंने अपने कपड़े लिए. उसके बाद मुझे अपनी पत्नी, बेटी और माता-पिता के साथ एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया. एक ऐसा शहर, जिसके चप्पे-चप्पे से मैं वाकिफ़ था और अब यकीन नहीं हो रहा था कि वहां की कोई भी जगह मेरे लिए सुरक्षित नहीं थी.
मैंने अपनी बेटी सोला, जिसका अर्थ 'शांति' होता है, के बारे में सोचा. यह सोचना बहुत दर्दनाक था कि हम उसके जिस भविष्य की आशा कर रहे थे, वो अब बर्बाद हो गया है. मैं जैसे ही हवाई अड्डे के लिए निकला, मुझे याद आया कि मैं अपने जीवन में दूसरी बार अफ़ग़ानिस्तान छोड़ रहा हूं. वहां लौटने के बाद सालों किए काम की यादें मुझे अभिभूत कर गईं. मुझे अपनी यात्राएं याद आईं, जो मैंने अधिकारियों के साथ या एक पत्रकार के रूप में की थीं.
फिर मैंने काबुल में देखा कि तमाम लोग और परिवार भागने के लिए कतार में खड़े हैं. अफ़ग़ानों की एक पीढ़ी अपने सपनों और आकांक्षाओं को दफ़न कर रही है.
इस बार मैं वहां कोई स्टोरी कवर करने के लिए नहीं गया था. मैं भी उन्हीं की तरह देश छोड़ने जा रहा था.


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Monday, August 23, 2021

 The Taleban originated in northern Pakistan in the 90s when Soviet troops were withdrawing from Afghanistan.


The Taliban emerged under the leadership of the Pashtuns on the scene of Afghanistan in 1994.


The Taliban is believed to have first emerged through religious gatherings or madrasas, with most of the money coming from Saudi Arabia.



After the departure of the Soviet Union from Afghanistan in the late 80s, there had been conflict between many factions and people were also troubled by the Mujahideen.

In such a situation, when the Taliban emerged, it was welcomed by the Afghan people.


Something like this happened with the rise of Taliban 

Initially, the Taleban's popularity was because they curbed corruption, curbed disorder and made the areas under their control safe so that people could do business.

The Taliban soon expanded their influence from south-west Afghanistan. In September 1995, the Taliban captured Herat province, which borders Iran.

A year later, the Taliban captured Kabul, the capital of Afghanistan, by overthrowing the Burhanuddin Rabbani government.

By 1998, the Taliban had controlled almost 90 percent of Afghanistan.


serious allegations also

Gradually, the Taliban were accused of human rights violations and cultural abuse.

For example, in 2001, the Taliban destroyed the world famous Bamiyan Buddha statues despite international criticism.

In the Pashtun area on the Pak-Afghan border, the Taliban said that they would bring an atmosphere of peace and security there and would implement Sharia after coming to power.

In both Pakistan and Afghanistan, the Taliban either enforced or enforced punishments under Islamic law—such as public executions of murder convicts, and the amputation of those convicted of theft.

Men were asked to keep a beard while women were asked to wear a burqa.

The Taleban also took a hard line towards TV, cinema and music, and banned girls over the age of 10 from going to school.


America also attacked


The world's attention turned to the Taliban when New York was attacked in 2001. In Afghanistan, the Taliban have been accused of harboring Osama bin Laden and al-Qaeda, which were being blamed for the New York attacks.

On 7 October 2001, a US-led coalition invaded Afghanistan.

Shortly after 9/11, coalition forces led by the US ousted the Taliban from power in Afghanistan, although Taliban leader Mullah Omar and al-Qaeda's bin Laden could not be captured.

Pakistan has been denying that it was behind the rise of the Taliban. But there is hardly any doubt that early Taliban fighters took education in madrassas of Pakistan.

From the 1990s to 2001, when the Taliban was in power in Afghanistan, only three countries recognized it – Pakistan, the United Arab Emirates and Saudi Arabia. Pakistan was also the last country to break diplomatic ties with the Taliban.


Taliban back after 20 years

For some time, the Taliban's dominance in Afghanistan has increased again and it has also strengthened in Pakistan. Analysts say that there is a synergy between the Taliban and many extremist organizations.


The head of the Pakistani faction has been Baitullah Mehsud, whose organization Tehreek Taleban Pakistan is accused of carrying out several suicide attacks. A few days ago, the US and Pakistan claimed that Baitullah Mehsud was killed in a drone strike, but the Taliban denies it.

It is believed that the leadership of the Taliban in Afghanistan is still in the hands of Mullah Omar. In 1980, he lost one eye while fighting with the Soviet Union army.

Omar and his accomplices are still out of control and are believed to be giving directions to the Taliban who are raising their heads again.

However, in both Afghanistan and Pakistan, these people are now under increasing pressure from the Pakistani Army and NATO.

NATO has continuously increased the number of troops in Afghanistan, but despite its influence, the Taliban's influence is increasing. Violent attacks have steadily increased in Afghanistan – a violence not seen since 2001.

The Taliban did retreat for some time at the beginning of this decade, and during this time it had fewer fighter casualties and also increased its stockpile. Because of this, the Taleban has now returned with full force.


What is the difference between Taliban 2.0 and 1.0

The two incidents above the year 1996 and the year 2021 - then and now are the faces of the Taliban who describe the situation in Mazar-e-Sharif and Kabul during the Taliban rule. There is a lot of difference between the two - you will not see it.

But between these two incidents, a third face of Taliban was also visible to the world late on Tuesday evening.

The Taliban's first press conference since regaining control of Afghanistan was held in Kabul late on Tuesday.

Taliban spokesman Zabihullah Mujahid appeared in front of the cameras for the first time along with two other accomplices. Addressing the media in the local language, he showed the 'liberal' face of the Taliban, which was completely different from the 1996-2001 Taliban.

Zabihullah Mujahid said at the press conference, "We want to assure the international community that they will not be discriminated against. We will decide that Afghanistan is no longer a battleground. We have forgiven all those who fought wars against us. Now our enmity is over. We are committed to fix the rights of women under the Sharia system. Women are going to work shoulder to shoulder with us."
Who is the Taliban


That is, today's Taliban is talking in front of the TV camera about allowing women to work and not to take revenge, but that situation is not visible on the ground. So the discussion is whether the Taliban of 2021 is much different from the Taliban of 1996? Or is this just a sham? Or the need of the hour?




 तालेबान का उदय 90 के दशक में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ जब अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत संघ की सेना वापस जा रही थी.


पशतूनों के नेतृत्व में उभरा तालेबान अफ़ग़ानिस्तान के परिदृश्य पर 1994 में सामने आया.


माना जाता है कि तालेबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के ज़रिए उभरा जिसमें ज़्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था.

talibaan


80 के दशक के अंत में सोवियत संघ के अफ़ग़ानिस्तान से जाने के बाद वहाँ कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरु हो गया था और मुजाहिद्दीनों से भी लोग परेशान थे

ऐसे हालात में जब तालेबान का उदय हुआ था तो अफ़ग़ान लोगों ने उसका स्वागत किया था.



कुछ ऐसे हुआ तालिबान का उदय


शुरु शुरु में तालेबान की लोकप्रियता इसलिए थी क्योंकि उन्होंने भ्रष्ट्राचर पर लगाम कसी, अव्यवस्था पर अंकुश लगाया और अपने नियंत्रण में आने वाले इलाक़ों को सुरक्षित बनाया ताकि लोग व्यवसाय कर सकें.

दक्षिण-पश्चिम अफ़ग़ानिस्तान से तालेबान ने जल्द ही अपना प्रभाव बढ़ाया. सितंबर 1995 में तालेबान ने ईरान सीमा से लगे हेरात प्रांत पर कब्ज़ा कर लिया.

इसके एक साल बाद तालेबान ने बुरहानुद्दीन रब्बानी सरकार को सत्ता से हटाकर अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा किया.

1998 आते-आते लगभग 90 फ़ीसदी अफ़ग़ानिस्तान पर तालेबान का नियंत्रण हो गया था.


गंभीर आरोप भी लगे


धीरे-धीरे तालेबान पर मानवाधिकार उल्लंघन और सांस्कृतिक दुर्व्यवहार के आरोप लगे.

जैसे 2001 में अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बावजूद तालेबान ने विश्व प्रसिद्ध बामियान बुद्ध प्रतिमाओं को नष्ट कर दिया.

पाक-अफ़ग़ान सीमा पर पशतून इलाक़े में तालेबान का कहना था कि वो वहाँ शांति और सुरक्षा का माहौल लाएगा और सत्ता में आने के बाद शरिया लागू करेगा.

पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दोनों जगह तालेबान ने या तो इस्लामिक क़ानून के तहत सज़ा लागू करवाई या ख़ुद ही लागू की- जैसे हत्या के दोषियों को सार्वजनिक फाँसी, चोरी के दोषियों के हाथ-पैर काटना.

पुरुषों को दाढ़ी रखने के लिए कहा गया जबकि स्त्रियों को बुर्क़ा पहनने के लिए कहा गया.

तालेबान ने टीवी, सिनेमा और संगीत के प्रति भी कड़ा रवैया अपनाया और 10 वर्ष से ज़्यादा उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर भी रोक लगाई.


अमेरिका ने भी किया हमला


दुनिया का ध्यान तालेबान की ओर तब गया जब न्यूयॉर्क में 2001 में हमले किए गए. अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान पर आरोप लगाया गया कि उसने ओसामा बिन लादेन और अल क़ायदा को पनाह दी है जिसे न्यूयॉर्क हमलों को दोषी बताया जा रहा था.

सात अक्तूबर 2001 में अमरीका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया.

9/11 के कुछ समय बाद ही अमरीका के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने तालेबान को अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता से बेदख़ल कर दिया हालांकि तालेबान के नेता मुल्ला उमर और अल क़ायदा के बिन लादेन को नहीं पकड़ा जा सका.

पाकिस्तान इस बात से इनकार करता रहा है कि तालेबान के उदय के पीछे उसका ही हाथ रहा है. लेकिन इस बात में शायद ही कोई शक़ है कि तालेबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ली.

90 के दशक से लेकर 2001 तक जब तालेबान अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में था तो केवल तीन देशों ने उसे मान्यता दी थी-पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब. तालेबान के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने वाला भी पाकिस्तान आख़िरी देश था.


20 साल बाद फिर वापस तालिबान


पिछले कुछ समय से अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान का दबदबा फिर से बढ़ा है और वो पाकिस्तान में भी मज़बूत हुआ है. विशलेषकों का कहना है कि वहाँ तालेबान और कई चरमपंथी संगठनों में आपसी तालमेल है.

पाकिस्तानी धड़े के मुखिया बैतुल्लाह महसूद रहे हैं जिनके संगठन तहरीक तालेबान पाकिस्तान पर कई आत्मघाती हमले करने का आरोप है. कुछ दिन पहले अमरीका और पाकिस्तान ने दावा किया था कि बैतुल्लाह महसूद ड्रोन हमले में मारे गए हैं लेकिन तालेबान इससे इनकार कर रहा है.

माना जाता है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान का नेतृत्व अब भी मुल्ला उमर के हाथों में है. 1980 में सोविघत संघ की सेना के साथ लड़ते हुए उनकी एक आँख चली गई थी.

उमर और उनके साथी अब तक पकड़ से बाहर हैं और माना जाता है कि वे फिर से सर उठा रहे तालेबान को दिशा निर्देश देते हैं.

हालांकि अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान दोनों जगह अब इन लोगों पर पाकिस्तानी सेना और नैटो का दबाव बढ़ रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान में नैटो ने सैनिकों की संख्या लगातार बढ़ाई है लेकिन बावजूद उसके तालेबान का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में हिंसक हमले लगातार बढ़े हैं- 2001 के बाद से ऐसी हिंसा नहीं देखी गई.

इस दशक के शुरुआत में तालेबान कुछ समय के लिए पीछे ज़रूर हटा था और इस दौरान उसके कम लड़ाके हताहत हुए और साथ ही उसने अपना ज़खीरा भी बढ़ाया. इस कारण अब तालेबान पूरे ज़ोर के साथ वापस लौटा है.


तालिबान 2.0 मैं और 1.0 में क्या फर्क है

साल 1996 और साल 2021 के ऊपर के दो वाक़ये - तब और अब के तालिबान के वो चेहरे हैं जो मज़ार-ए-शरीफ़ और काबुल के हालात को तालिबान शासन के दौरान बयान करते हैं. दोनों में बहुत फ़र्क हो- ऐसा आपको नज़र नहीं आएगा.

लेकिन इन दोनों घटनाओं के बीच तालिबान का एक तीसरा चेहरा भी मंगलवार की देर शाम दुनिया को नज़र आया.

अफ़ग़ानिस्तान पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने के बाद तालिबान का पहला संवाददाता सम्मेलन मंगलवार को देर शाम काबुल में आयोजित हुआ.

तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद अपने दो और साथियों के साथ कैमरों के सामने पहली बार आए. स्थानीय भाषा में उन्होंने मीडिया को संबोधित करते हुए तालिबान का वो 'उदार' चेहरा दिखाया जो 1996-2001 वाले तालिबान से बिल्कुल अलग था.

जबीहुल्लाह मुजाहिद ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, "हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा. हम यह तय करेंगे कि अफ़ग़ानिस्तान अब संघर्ष का मैदान नहीं रह गया है. हमने उन सभी को माफ़ कर दिया है जिन्होंने हमारे ख़िलाफ़ लड़ाइयां लड़ीं. अब हमारी दुश्मनी ख़त्म हो गई है. हम शरिया व्यवस्था के तहत महिलाओं के हक़ तय करने को प्रतिबद्ध हैं. महिलाएं हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने जा रही हैं."

Weight Management Products

यानी आज का तालिबान टीवी कैमरे के सामने बात तो महिलाओं को काम करने की छूट और बदला न लेने की कर रहा है, लेकिन ज़मीन पर वो स्थिति दिखाई नहीं पड़ती. इसलिए चर्चा है कि क्या 2021 का तालिबान 1996 वाले तालिबान से काफ़ी अलग है? या ये महज़ एक दिखावा है? या फिर समय की माँग?




Sunday, August 22, 2021

हाय मैं नासिर हुसैन और आप रीड कर रहे हैं हिंदी मेवाती । आज की इस पोस्ट में मैं आपको बताऊंगा‌। वेट लॉस्ट बिफोर एंड आफ्टर weight lose before and after यानी वजन घटाना  Dr Sakunat Tiger  के बारे में ‌। 



आज के इस आर्टिकल में में वज़न घटाना के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश करूंगा‌। वजन क्यों नहीं कम हो रहा है‌। वजन घटाने weight lose before and after के क्या-क्या फायदे हैं‌। अगर आपने वजन नहीं घटाया है, तो इसके क्या क्या नुकसान है‌। Dr Sakunat Tiger  इन सब चीजों के बारे में आज विस्तार से बात करूंगा ‌

Weight lose before and after


Dr Sakunat Tiger की जानकारी से वजन घटाना के बारे में जानेंगे‌। इसको आप वेट लॉस्ट weight lose के रिव्यु के बारे में देख सकते हैं ‌। वेट लॉस्ट एक बहुत बड़ी समस्या है । आज इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए ईसे सुलझाने की कोशिश करेंगे‌‌। इस पोस्ट में Dr Sakunat Tiger के बारे में भी जानेंगे।


मोटापा क्या है ‌। Weight lose kiya hai

जब किसी व्यक्ति का शरीर का वजन सामान्य से ज्यादा हो उसे मोटापा कहते हैं ‌। जितनी रोज हम कैलोरी भोजन के रूप में खाते हैं ‌। उतने आपका शरीर रोज खर्च नहीं कर पाता है। जिससे शरीर में ज्यादा कैलोरी भेंट के रूप में जमा हो जाती है। जिससे शरीर का वजन बढ़ता है। यही कारण है, मोटापा होने का और इसी को ही मोटापा कहते हैं ‌।Dr Sakunat Tiger 



मोटापा होने के कारण

वैसे इस पोस्ट में में वजन घटाना के बारे में आपको बताऊंगा । लेकिन उससे पहले उसके होने के कारण क्या है । यह सब जानकारी भी आपको होनी चाहिए। अधिक वजन ( Over weight ) वाले व्यक्ति में अधिक मात्रा में चर्बी (toxins ) जमा होती है ‌। यह शरीर में धीरे-धीरे गलत दिनचर्य,  प्रदूषण,  और अपच,  के कारण होती रहती है । वजन बढ़ने के दो कारण होते हैं । 

और यह हैं

  • अस्वस्थ खानपान
  • शरीरिक गतिशीलता में कमी



मोटापा होने के लक्षण 

किस व्यक्ति का कितना वजन होना चाहिए यह निर्धारित करता है बीएमआई पर। 

बीएमआई का यह फार्मूला होता है‌।

 वजन (किलोग्राम में ) 

कद (मीटर में)/

TIMEX Analog Blue Men Watch TW00ZR262E



watch
  • अगर आपकी बीएमआई 18.5 से कम है तो आपका वजन  अंडरवेट माना जाएगा।
  • अगर आपकी बीएमआई 18.5 से 24.9 है तो आपका वजन सामान्य है। 
  • इसी तरह 25 से 29.9 तक की बीएमआई होने पर ओवरवेट माना जाता है ।
  • 30 से ज्यादा की बीएमआई होने पर ओबीज या मोटापा कहलाता है ‌।
  • गर्भावस्था के दौरान बीएमआई लागू नहीं होती है।



वजन कम मोटापा घटाने के कुछ नुक्से

आप मोटापा घटाने के यह तरीके अपना सकते हैं। जो बिल्कुल आसान और सिंपल हैं। साथ में घर पर ही बना सकते हैं खुद से तैयार भी कर सकते हैं। और इनका कोई भी साइड इफेक्ट भी नहीं है। ना ही आपको ज्यादा पैसे लगाने की जरूरत है। बस लॉन्ग टाइम तक इस्तेमाल करने की जरूरत है। जिससे आपका मोटापा घटाने में काफी असरदार है |



मोटापा घटाने के लिए दालचीनी का इस्तेमाल करें

200 एम एल पानी में 3 से 6 ग्राम पाउडर डालकर 10 मिनट तक अच्छी तरह उबालें। गुनगुना होने पर एक चम्मच शहद मिला लें। सुबह खाली पेट और रात को सोने से पहले पिए। दालचीनी एक शक्तिशाली एंटी-बैक्टीरियल है। जो नुकसानदायक बैक्टीरिया से छुटकारा दिलाने में मदद करती है।

Daalcheeni


और जाने:- दालचीनी के और फायदे



वजन घटाने में अश्वगंधा का इस्तेमाल कर सकते हैं

अश्वगंधा के 2 पत्ते लेकर बारीक पीस लें । सुबह खाली पेट इसे गर्म पानी के साथ पीले। अश्वगंधा तनाव के कारण मोटापा होने मैं कम करने के लिए मदद करता है। ज्यादा तनाव में कोर्सीटोल (Cortisol)   नामक हारमोन बनता है। शोध के अनुसार अश्वगंधा, शरीर में कोर्सीटोल का लेवल कम करता है। 

ashwagandha


और जाने:- अश्वगंधा के बारे में और जाने



Wajan lost dr sakunat tiger 

उपर मैंने आपको कई घरेलू उपचार बताएं हैं‌। अब मैं आपको एक ऐसी दवा के बारे में बताने जा रहा हूं ‌। जो अपने आप में काफी पावरफुल और सक्सेसफुली बेस्ट क्वालिटी की दवा है ‌। साथ ही साथ यह काफी सस्ती भी दवा है ‌। यह दवा आपको मेवाती दवाखाना में मिलेगी ‌। इस दवा को डॉक्टर शकुनी टाइगर बनाकर तैयार करती है ‌। इसका कोई भी साइड इफेक्ट नहीं है। ओरिजिनल और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट है जिससे आपका मोटापा 100% घटेगा। इसको मैंने खुद इस्तेमाल किया है,  मेरे 14 दोस्तों ने भी इसको यूज़ किया है । जिनके नाम यह हैं। अरशद, वसीम जताना, आवेदक रस,  हाकम रणसीका,  मुस्ताक कोर्ट,  अरविंद अलंदा,  मुजाहिद भुजाका, आजाद पजाका, अजरुदीन बली |



मेवाती दवाखाना क्या है what is mewati dawakhana

एक आयुर्वेदिक दवा खाना है ‌। यह मेवात जिला के फिरोजपुर खंड के गांव बूचाका में है ‌। यह अपने लोकल एरिया में बहुत ही ज्यादा फेमस दवा खाना है ‌। लोग दूर दूर तक इस दवाखाना से दवा लेने आते हैं ‌। इसमें हकीम अशरफ अली और डॉक्टर सकुनत टाइगर बैठते हैं ‌। इसमें आपको सभी चीजें की दवा गारंटी के साथ मिलती हैं ‌। जैसे पर्सनल केयर, वेट गैन, वेट लॉस्ट, बीपी हाई, एंड लो,  शुगर, पाइल्स, लकवा, जैसी सभी बीमारियों की‌।

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की सभी दवा

टाइगर मेवाती ई-कॉमर्स वेबसाइट मेवाती दवाखाना


माय ओपिनियन

मैंने कई दवाई यूज की थी। पर जब इसको मैंने यूज किया था तो तब मुझे रिजल्ट ज्यादा देखने को मिला था। इसके बाद मैंने अपने एक दोस्त को बताया उसने कई दोस्तों को बताया। जिन सबका ऊपर मैंने आपको नाम गिना आया है। यह सब होने के बाद मैं खुद अपनी तरफ से ही यह आर्टिकल लिख रहा हूं। ना मुझे इसके लिखने के पैसे मिले हैं ना मैं इसका रिव्यु कर रहा हूं। पर कुछ चीजें इन सब चीजों से अलग होती हैं | अगर किसी की कोई वाकई में चीज अच्छी है तो उसका प्रमोशन करना भी मेरा हक बनता है। क्योंकि इसका रिजल्ट मैं गारंटी के साथ कहता हूं, सौ परसेंट निकलता है ‌।


निष्कर्ष नोट

आपको मेरी यह जानकारी कैसी लगी। weight lose बिफोर एंड आफ्टर weight lose before and after | यानी वजन घटाना के बारे में अगर आपको मेरी यह जानकारी अच्छी लगी है। तो इसको आगे शेयर जरूर करें और कमेंट करके जरूर बताएं। आप लोगों से गुजारिश है एक बार मेवाती दवाखाना के पेज और यूट्यूब चैनल को जरूर ओपन करें।


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