भारतीय इतिहास में "बौद्ध धर्म के पतन के कारण" caused the decline of Buddhism कैसे हुआ और कियों हुआ। आज यही जानेगे।
भारतीय इतिहास एक रिच और गहरी कहानी है जो हज़ारों वर्षों तक विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तनों का संवाद है। इस कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बौद्ध धर्म का था, जिसने अपने प्रारंभिक दिनों से ही भारतीय समाज को प्रभावित किया। लेकिन समय के साथ, Buddhism बौद्ध धर्म के पतन के कारण ने इसके प्रभाव को कम किया और उसका अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो गया।
10 बौद्ध धर्म के पतन के कारण drishti ias
1. दार्शनिक विभिन्नता: बौद्ध धर्म के विकास के समय में विभिन्न दार्शनिक प्रवृत्तियों का संघर्ष देखने को मिलता है। वेदांतिक दर्शन और बौद्ध दर्शन के बीच विचारशील विरोध था, जिसने बौद्ध धर्म के प्रचार को रोक दिया।
2. राजनीतिक परिवर्तन: बौद्ध धर्म के प्रारंभिक दिनों में यह शांतिपूर्ण आंदोलन था, लेकिन समय के साथ इसने राजनीतिक आक्रमणों का सामना किया। बौद्ध संघ को अनेक राजवंशों के प्रति संवादी या असहमति रूपी व्यवहार का सामना करना पड़ा, जिससे इसका प्रभाव कम हुआ।
3. हिन्दू धर्म की पुनरुत्थान: बौद्ध धर्म के पतन के दौरान, हिन्दू धर्म में नये उत्थान का समय आया। धार्मिक विचारधारा में बदलाव के साथ ही हिन्दू तात्त्विकता ने अपने पूर्ववर्गीय रूप को पुनरुत्थित किया, जिससे बौद्ध धर्म का प्रभाव घटता गया।
ब्राह्मण धर्म में शंकराचार्य, कुमारिल भट्ट आदि इतने उच्चकोटि के विद्वान तथा दार्शनिक हुए कि उन्होंने हिन्दू धर्म में नई जान पैदा कर दी और बौद्ध धर्म का खण्डन कर उसे बड़ी हानि पहुंचाई। रामानुज आदि भक्तिमार्गी सन्तों ने भक्ति का सरल मार्ग दिखा कर हिन्दू धर्म की बड़ी सेवा की और बौद्ध धर्म के प्रभाव को कम किया।
4. सामाजिक परिवर्तन: समाज में बदलते समय के साथ, individual और सामाजिक आवश्यकताओं में बदलाव हुआ। बौद्ध धर्म का पारंपरिक तंत्र इन बदलावों के साथ समर्थन नहीं कर सका। और यही आगे Buddhism बौद्ध धर्म के पतन के कारण बन गया।
5. बौद्ध संघ की दुर्बलता: बौद्ध संघ की अंतर्नाशक विवादों और आंदोलनों में दुर्बलता ने इसके पतन को तेजी से बढ़ाया। संघ के अंतर्नाशक दौर में, बौद्ध संघ का अध्यात्मिक और सामाजिक महत्व ह्रास हो गया। जो एक बौद्ध धर्म के पतन के कारण का एक बहुत बड़ा कारण बन गया। "Buddhism" बौद्ध संघ इस दुर्बलता से उभर नहीं पाया।
6. विदेशी आक्रमण: बौद्ध धर्म के पतन का एक महत्वपूर्ण कारण विदेशी आक्रमण को भी माना जाता है और व्यापारिक संबंधों में बदलाव भी। हलाकि ये ज्यादा सटीक नहीं है, कयास है। विदेशी शासकों के साथ हुए संघर्ष ने बौद्ध धर्म को असमर्थ किया और उसके पतन को गति दी।
(7) राजाओं के आश्रय का अभाव- बौद्ध धर्म के उत्थान में राजाओं से बड़ी सहायता मिली थी, परन्तु कालान्तर में बौद्ध धर्म इससे वंचित हो गया और ब्राह्मण धर्म को राजाओं का आश्रय प्राप्त हो गया। शुंगवंश के राजा ब्राह्मण थे, अतएव उन लोगों ने ब्राह्मण धर्म को आश्रय दिया और उसके उत्थान का प्रयत्न करने लगे।
गुप्तकाल के शासकों ने भी ब्राह्मण धर्म को अपनाया और उसे अपना आश्रय दिया। आगे चलकर राजपूत शासकों ने, जो बहु ही रणप्रिय थे, अहिंसा धर्म का तिरस्कार किया और ब्राह्मण धर्म का स्वागत किया। इससे ब्राह्मण धर्म की उन्नति और बौद्ध धर्म का ह्रास होने लगा ।
(8) तन्त्र-मन्त्र का विचार- Idea of Tantra-Mantra बौद्धों में एक शाखा ऐसी थी जो 'वज्रयान' कहलाती थी। वास्तव में यह महायान सम्प्रदाय की एक विकसित शाखा थी। इन लोगों ने विनय के नियमों को भंग कर दिया और अनैतिक कर्मों में लिप्त रहने के नियम बना डाले। फलतः मंत्र-तंत्र के विषय में ग्रंथ लिखे गये और बौद्ध भिक्षु सीधे सादे संन्यासी न रहकर तंत्र विद्या के प्रवीण पण्डित हो गये और महिला तथा मदिरा से इनका प्रेम हो गया।
अब बौद्ध केन्द्रो में तंत्र-मंत्र तथा झाड़-फूंक की शिक्षा दी जाने लगी। इस प्रकार बुद्ध का सरल धर्म जब तंत्र-मंत्र का जाल बन गया तो उसका विनष्ट हो जाना स्वाभाविक था।
(9) तुर्कों के आक्रमण-मुसलमानों के आक्रमण का बौद्ध धर्म पर बड़ा घातक प्रभाव पड़ा। मुसलमानों ने बौद्धों के मन्दिरों तथा विहारों को लूटा और उन्हें ध्वस्त किया। जिनका फिर से निर्माण न हो सका। उस संघर्ष और हिंसा के काल में अहिंसात्मक बौद्ध धर्म के लिए कोई स्थान न था।
(10) राजपूतों का उत्कर्ष - Rise of Rajputs राजपूतों के उत्कर्ष से बौद्ध धर्म को बहुत बड़ा आघात लगा। राजपूतों की हिंसावृत्ति तथा युद्धप्रियता ने अहिंसा धर्म स्वीकार नहीं किया। फलतः राजपूत बौद्ध धर्म के स्थान पर हिन्दू धर्म की ही ओर अधिक आकृष्ट हुए और उन्होंने उसी का आलिंगन किया।
बौद्ध धर्म के पतन के कारण था जैन धर्म
Jainism was the reason for the decline of Buddhism बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की तुलना-इन दोनों धर्मों का प्रादुर्भाव एक ही समय तथा एक ही प्रकार की परिस्थितियों में हुआ। ये दोनों ही धर्म छठी शताब्दी ई०पू० में ब्राह्मण धर्म के विरुद्ध चलाये गये थे, अतएव इन दोनों का लक्ष्य ही ब्राह्मण धर्म में सुधार करना था। चूंकि ब्राह्मण धर्म के प्रवर्तक तथा प्रचारक ब्राह्मण थे और उस धर्म पर ब्राह्मणों का ही एकाधिकार था, अतएव ऐसे धर्म की आवश्यकता थी जो जनसाधारण का धर्म कहा जा सके।
इसके अतिरिक्त ब्राह्मण धर्म बड़ा दुरूह तथा अव्यावहारिक था। अतएव ऐसे धर्म की आवश्यकता थी जो अत्यन्त सरल तथा व्यावहारिक हो। इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का प्रचार किया गया था। चूंकि इन दोनों धर्मों का लक्ष्य एक ही था अर्थात् ब्राह्मण धर्म के दोषों को दूर करना, अतएव इनमें समानता का होना स्वाभाविक ही था।
समापन:
इस प्रकार, भारतीय इतिहास Indian history में बौद्ध धर्म के पतन के कारण विभिन्न दार्शनिक, राजनीतिक, सामाजिक, और आर्थिक परिवर्तनों का मिश्रण था। बौद्ध धर्म के पतन के कारण यह पतन उस समय की सांस्कृतिक, धार्मिक, और विचारधारा की परिवर्तनाओं का परिणाम था जो भारतीय समाज में हुए थे। यह हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की महत्वपूर्ण एक अध्याय थी, जो हमें हमारे इतिहास की महत्वपूर्ण गतिविधियों की समझ दिलाती है।
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